सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को लोन मोरेटोरियम मामले में अपना बहुप्रतीक्षित फैसला सुनाया। उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि लोन मोरेटोरियम की अवधि के ब्याज को पूरी तरह माफ करने का आदेश नहीं दिया जा सकता है। जस्टिस एम आर शाह ने यह फैसला सुनाते हुए कहा कि पूरे ब्याज को माफ करना इसलिए मुमकिन नहीं है क्योंकि इस फैसले का असर डिपोजिटर्स पर भी पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा आरबीआई और केंद्र सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न कदमों के बाद ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि उन्होंने बॉरोअर्स की समस्याओं का समाधान नहीं किया।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में मुख्य रूप से ये बातें कहीं
- लोन मोरेटोरियम मामले पर अपना निर्णय सुनाते हुए जस्टिस एम आर शाह ने कहा कि इस केस में किसी तरह का परमादेश (रिट ऑफ मैंडेमस) जारी नहीं कर सकता है। उन्होंने कहा कि इस मामले में केंद्र सरकार को निर्णय करना है।
- जस्टिस शाह ने कहा है कि न्यायालय व्यापार और वाणिज्य से जुड़े अकादमिक मामलों पर डिबेट नहीं करेगा। हम यह निर्णय नहीं कर सकते हैं कि पब्लिक पॉलिसी और बेहतर हो सकती थी। इस मुद्दे को सुलझाने को लेकर सरकार की अपनी सीमाएं हैं।
- जस्टिस शाह के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में संबंधित पक्षों को सुना है और इस मामले में न्यायिक समीक्षा की गुंजाइश नहीं है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ब्याज को पूरी तरह से माफ करना संभव नहीं है क्योंकि उन्हें अकाउंटहोल्डर्स से जमाकर्ताओं और पेंशनभोगियों को ब्याज का भुगतान करना है।
- उच्चतम न्यालाय ने सरकार और आरबीआई की लोन मोरेटोरियम पॉलिसी में किसी तरह के हस्तक्षेप से इनकार कर दिया। इसके साथ ही लोन मोरेटोरियम की अवधि को छह माह से अधिक करने से भी मना कर दिया।