ड्रिप इरीगेशन से क्षारयुक्त भूमि व कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी गन्ना खेती संभव
प्रदेश के आर्थिक रूप से पिछड़े विशेषकर लघु तथा सीमान्त गन्ना किसानों एवं अन्य वर्गो के कृषकों के हित के प्रति अत्यन्त सजग मा. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रेरणा से तथा मा. मंत्री, गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग, श्री सुरेश राणा के निर्देश पर गन्ना विकास विभाग ने गन्ने की उत्पादकता बढ़ाने तथा खेती की लागत कम करने के लिए अनेक कदम उठाये हैं।
जिसके तहत गन्ना खेती में आधुनिक कृषि यंत्रों के प्रयोग एवं सिंचाई हेतु ‘‘ड्रिप इरीगेशन‘‘ विधि को बढावा देने से गन्ना खेती की लागत कम करने का प्रयास हो रहा है।
इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुए श्री भूसरेड्डी द्वारा बताया गया कि वर्ष 2021-22 में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना ’’पर ड्राप मोर क्रॉप (माईक्रोइरीगेशन) योजना के अन्तर्गत आर्थिक रूप से पिछड़े लघु
सीमान्त कृषकों हेतु 80 प्रतिशत अनुदान दर पर 23,674 हेक्टेयर एवं अनूसूचित जातिध्जनजाति वर्गो हेतु 90 प्रतिशत अनुदान दर पर 6,326 हेक्टेयर कुल 30,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में गन्ने की फसल हेतु ड्रिप सिंचाई संयंत्र की स्थापना का लक्ष्य विभागीय अधिकारियों के लिए निर्धारित किया गया है।
ड्रिप सिंचाई प्रणाली के संबंध में तकनीकी जानकारी प्रदान करते हुए श्री भूसरेड्डी ने बताया कि सिंचाई जल एक क्रिटिकल रिसोर्स है तथा गन्ना की फसल की बुवाई से लेकर काटने तक लगभग 1800-2200 मिमी. पानी की आवश्यकता होती है।
इस प्रकार गन्ने की फसल हेतु औसतन 2,000 मिमी. पानी की आवश्यकता मानने पर 01 हेक्टेयर में गन्ना उत्पादन हेतु लगभग 02 करोड़ ली. पानी की आवश्यकता होगी। इसमें से लगभग 50 प्रतिशत पानी की आवश्यकता की पूर्ति वर्षा जल से हो जाती है जबकि शेष 01 करोड़ लीटरध्हेक्टेयर पानी की पूर्ति सिंचाई द्वारा गन्ना फसल में की जाती है।
इस प्रकार 30 हजार हेक्टेयर में गन्ना उत्पादन हेतु 03 खरब लीटर (300 करोड़ लीटर) पानी सिंचाई के माध्यम से देने की आवश्यकता पड़ती है। ड्रिप सिंचाई विधि को अपनाने से लगभग 50 प्रतिशत सिंचाई जल की बचत होती है अर्थात प्रति हेक्टेयर लगभग 50 लाख लीटर पानी और 30 हजार हेक्टेयर में लगभग 1.5 खरब (150 करोड़ लीटर) पानी की बचत होगी।
अर्थात 30 हजार हेक्टेयर में ड्रिप इरीगेशन पद्धति द्वारा सिंचाई करने से लगभग 150 करोड़ लीटर भू-जल का दोहन रुकेगा। इस 150 करोड़ लीटर पानी को निकालने के लिए एक 10 होर्स पॉवर के विद्युत मोटर को लगभग 15,000 घंटे चलाना पड़ेगा, जिसके लिए 11,25,000 यूनिट (किलोवाट) विद्युत की आवश्यकता पड़ती है
इस विद्युत की बचत से कृषकों को लगभग 33.75 लाख रूपये की बचत भी होगी। इस प्रकार 30 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में ड्रिप इरीगेशन पद्धति को अपनाने से 150 करोड़ लीटर भू-जल दोहन रुकेगा व लगभग 11,25,000 यूनिट (किलोवाट) विद्युत की भी बचत होगी।
गन्ना आयुक्त ने विभागीय अधिकारियों को यह भी निर्देशित किया है कि माइक्रोप्लान तैयार कर कृषकों को ड्रिप सिंचाई संयंत्रों की स्थापना हेतु प्रोत्साहित करने के लिए आवश्यक प्रचार-प्रसार भी सुनिश्चित किया जाये।
उन्होंने यह भी बताया कि ड्रिप सिंचाई से उर्वरकों एवं कीटनाशकों की खपत में उल्लेखनीय बचत होती है, फलस्वरूप गन्ने की उत्पादन लागत में उल्लेखनीय कमी आती है और गन्ना उत्पादन तथा कृषकों की आय में 20 प्रतिशत तक वृद्धि होती है।