देहरादून: थराली विधानसभा उप चुनाव में जीत दर्ज कर भाजपा ने न केवल अपनी साख बचाने में कामयाबी हासिल की, बल्कि देश के अलग-अलग राज्यों में हुए उप चुनावों में भाजपा की पराजय के तिलिस्म को तोड़ने में भी सफलता पा ली। हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव की अपेक्षा भाजपा प्रत्याशी की जीत का अंतर आधे से भी कम रहा, लेकिन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में सरकार के सवा साल के कामकाज पर इस जीत से मुहर जरूर लग गई। पार्टी के लिए यह जीत आगामी नगर निकाय चुनाव के लिहाज से खासी मनोबल बढ़ाने वाली साबित होगी।
गत वर्ष संपन्न विधानसभा चुनाव में भाजपा 70 सदस्यों की विधानसभा में 57 सीटें जीत एकतरफा जनादेश पाकर सत्ता तक पहुंची। हालांकि, तब इसे पूरी तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के करिश्मे के तौर पर ही देखा गया। यह उत्तराखंड के 17 साल के इतिहास में पहला अवसर रहा, जब किसी एक पार्टी ने इस कदर भारी बहुमत पाया। इससे पहले के तीन विधानसभा चुनाव में सत्ता तक पहुंची पार्टी, भाजपा हो या कांग्रेस, बस बहुमत के आसपास सिमट गई थी। कुछ अरसा पहले चमोली जिले की थराली सीट के भाजपा विधायक मगनलाल शाह के निधन से सीट रिक्त हुई तो भाजपा ने सहानुभूति लहर का लाभ लेने के लिए उनकी पत्नी मुन्नी देवी को ही मैदान में उतार दिया।
भाजपा और खासकर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के लिए यह उपचुनाव पहली अग्निपरीक्षा के रूप में भी देखा जा रहा था। हालांकि, चुनाव बस एक सीट का ही था, लेकिन इसके बावजूद इसे विपक्ष कांग्रेस ने त्रिवेंद्र सरकार के सवा साल के कामकाज की कसौटी बना दिया। कांग्रेस के इस पैंतरे को भाजपा नेतृत्व और सरकार भी भलीभांति समझ रही थी। यही वजह रही कि पार्टी ने उपचुनाव में अपनी पूरी ताकत झोंक डाली। स्वयं मुख्यमंत्री ने यहां छह जनसभाएं और कई रोड शो किए। प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट और सरकार के अन्य मंत्री तो जुटे रहे ही।
थराली की जीत भाजपा के लिए इस मायने में भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उसके साथ पिछले कुछ समय से अजब सा मिथक जुड़ गया है। राज्य दर राज्य जीत का परचम फहराने के बावजूद भाजपा लोकसभा व विधानसभा उप चुनावों में लगातार पराजित होती रही है। इस बार भी देश के अलग-अलग राज्यों के उप चुनावों में भी कुछ ऐसा ही हुआ। इस लिहाज से देखा जाए तो यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के नेतृत्व में उत्तराखंड में भाजपा उपचुनावों में हार के तिलिस्म को तोड़ने में कामयाब हो गई। थराली की जीत निश्चित तौर पर भाजपा के लिए हवा के सुखद ठंडे झोंके की तरह कही जा सकती है।
भाजपा की जीत आगामी नगर निकाय चुनाव के मद्देनजर भी अहम है। इस जीत के बाद लाजिमी तौर पर भाजपा बढ़े हुए मनोबल के साथ चुनाव मैदान में उतरेगी। हालांकि, भाजपा के लिए यह जरूर मंथन का विषय रहेगा कि सत्ताधारी पार्टी और सहानुभूति लहर पर सवार होने के बावजूद क्यों जीत का अंतर पिछली बार के मुकाबले आधे से भी कम रह गया। महज सवा साल पहले इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी मगनलाल शाह लगभग 4800 मतों के अंतर से कांग्रेस के प्रो. जीतराम को हराने में कामयाब रहे थे, जबकि इस बार यह फर्क केवल 1981 मतों तक सिमट गया।