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उत्तराखंड में जंगल की आग पर प्रभावी नियंत्रण के लिए अग्नि सुरक्षा नीति बनाने की तैयारी

देहरादून,  उत्तराखंड में जंगल की आग पर प्रभावी नियंत्रण के लिए अब अग्नि सुरक्षा नीति बनाने की तैयारी है। इस संबंध में सरकार मंथन में जुट गई है। नीति में वन बचाने के मद्देनजर ढांचागत व संस्थागत सुविधाओं पर खास फोकस करने के साथ ही कार्मिकों के कौशल विकास, स्थानीय समुदाय की भागीदारी, वनों में गिरने वाली पत्तियों व सूखे-गिरे पेड़ों का उपयोग जैसे बिंदुओं का समावेश किया जाएगा। साथ ही आग को लेकर निकट भविष्य में जिम्मेदारी और जवाबदेही भी तय की जा सकेगी।
पर्यावरणीय लिहाज से संवेदनशील उत्तराखंड में जंगलों की आग एक बड़ी चुनौती के रूप में उभरी है। पिछले 10 साल के आंकड़ों पर ही गौर करें तो हर वर्ष औसतन दो हजार हेक्टेयर से अधिक वन क्षेत्र को क्षति पहुंच रही है। अब न सिर्फ गर्मी के मौसम, बल्कि किसी भी सीजन में जंगल सुलग जा रहे रहे हैं। इस बार भी सर्दियों की दस्तक से जंगल आग की चपेट में आए हैं। दो रोज पहले हुई बारिश व बर्फबारी से आग बुझ गई है, लेकिन आने वाले दिनों के लिए चुनौती बरकरार है। हालांकि, आग लगने पर वनकर्मी इसे बुझाने में जुटते हैं, मगर इसके लिए अभी तक कोई ठोस नीति नहीं है। वन एवं पर्यावरण मंत्री डा. हरक सिंह रावत के अनुसार जिस तरह से वनों में आग लग रही है, उसे देखते हुए इसके लिए पृथक से नीति आवश्यक है। इसके लिए ढांचागत, संस्थागत सुविधाओं के तहत अग्नि नियंत्रण के लिए आधुनिक उपकरण, वाहन, क्रू-स्टेशन जैसी तमाम व्यवस्थाएं जुटाने के साथ ही वन पंचायतों, गैर सरकारी संगठनों, स्वयं सहायता समूहों आदि का सक्रिय सहयोग लेने पर फोकस किया जाएगा। वन के संरक्षण में स्थानीय समुदाय की सक्रिय भागीदारी के मद्देनजर उसे कुछ प्रोत्साहन देने की व्यवस्था जरूरी है। उन्होंने कहा कि आग बुझाने में जुटने वाली टीमों के कौशल विकास में वृद्धि के मद्देनजर उनके लिए समय-समय पर प्रशिक्षण, वन क्षेत्रों में हर साल पतझड़ में गिरने वाली लाखों टन पत्तियों और सूखे, गिरे व उखड़े पेड़ों के उपयोग को भी नीति का हिस्सा बनाया जाना है। डा.रावत ने बताया कि विभागीय अधिकारियों को इन सब बिंदुओं का समावेश करते हुए नीति का मसौदा तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं।

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