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क्या कोरोना की तीसरी लहर में नहीं होगा बच्चों पर इसका गंभीर असर जाने ?

भारत में कोरोना की दूसरी लहर बेहद जानलेवा साबित हुई. हजारों लोगों की मौत हुई और लाखों संक्रमण के शिकार हुए. अब तीसरी लहर की चर्चा है. कहा जा रहा है कि भारत में कोरोना की तीसरी लहर का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर होगा.

इससे सरकारें बहुत चिंतित हैं. तीसरी लहर से निपटने के लिए सरकार ने देश के अस्पतालों में पेड्याट्रिक्स बेड को बढ़ा दिए हैं. लेकिन इन सब के बीच एक अच्छी खबर आई है.

एक ताजा अध्ययन में दावा किया गया है कि कोरोना की तीसरी लहर आए भी तो बच्चों पर इसका गंभीर असर नहीं होगा. अगर बच्चे कोरोना से संक्रमित भी होंगे तो वे गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़ेंगे.

अध्ययन में यह भी कहा गया है कि कोरोना से संक्रमित 12 साल तक के बच्चों में मृत्यु दर भी नगण्य होगी. यह अध्ययन Paediatric Covid Study Group ने किया है. अध्ययन में देश के कई जाने-माने डॉक्टर शामिल हैं.

यह अध्ययन पिछले साल नंवबर से लेकर इस साल मार्च के बीच किया गया. देश के 5 अस्पतालों में भर्ती कोरोना पीड़ित 402 बच्चों के क्लीनिकल प्रोफाइल का अध्ययन करने के बाद यह बात साबित हुई कि बच्चों पर कोरोना का गंभीर असर नहीं होता.

अध्ययन में देखा गया कि 12 साल तक के बच्चों में मौत के मामले भी बेहद कम हैं. स्टडी में शामिल 45 बच्चे 1 साल से कम उम्र के थे, 118 बच्चे 1 से 5 साल तक के और 221 बच्चों की उम्र 5 से 12 साल के बीच थी.

टीओआई में छपी खबर के मुताबिक अध्ययन में शामिल रहे डॉ. काना राम जाट का कहना है कि कोरोना पीड़ित बच्चों में सबसे सामान्य लक्षण बुखार का था. हालांकि बुखार के मामले केवल 38 फीसदी बच्चों में ही पाए गए.

अन्य लक्षणों में खांसी, गले में खराश, पेट दर्ज, उल्टी और दस्त होना शामिल है. वहीं एम्स की पैडियाट्रिक विभाग की असिस्टेंट प्रोफिसर झुमा शंकर ने बताया, ‘स्टडी में शामिल बच्चों में ज्यादातर में हल्के लक्षण पाए गए, केवल 10 फीसदी में ही सामान्य से लेकर गंभीर लक्षण मिले.

अध्ययन में पता चला है कि कोरोना पीड़ित 402 में से केवल 13 बच्चों (3.2%) की मौत हुई. हालांकि जिन बच्चों की मौत हुई, उन सबको कोई न कोई स्वास्थ्य से जुड़ी अन्य समस्याएं यानी Comorbidities भी थीं. 13 में से 5 बच्चों के नर्वस सिस्टम में समस्या थी

3 को जन्मजात हृदय रोग से पीड़ित थे. एक मृतक को अक्यूट ल्यूकीमिया, 1 को विल्सन डिजीज, 1 को टाइप 1 नेफ्रोटिक सिंड्रोम था. 2 बच्चे अन्य बीमारियों से पीड़ित थे. डॉक्टरों के अनुसार अध्ययन में शामिल रहे लक्षण

वाले बच्चों को सपोर्ट के लिए थेरेपी दी गई. बिना लक्षण वाले मरीजों को इलाज की जरूरत नहीं पड़ी. कुछ बच्चों को ऐंटाबायोटिक और एंटीवायरल जैसी अन्य थेरेपी भी दी गई. डॉक्टर झूमा शंकर ने आगे कहा कि ऐसा कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है

जिससे पुष्टि हो सके की संभावित तीसरी लहर सबसे ज्यादा बच्चों को प्रभावित करेगी. हालांकि डॉक्टरों का कहना है कि देश में बच्चों के लिए कोई वैक्सीन उपलब्ध नहीं है, ऐसी स्थिति अगर आती है

तो हमें पहले से तैयार रहना चाहिए. अमेरिका और ब्रिटेन में 12 साल से अधिक उम्र के बच्चों को फाइजर की वैक्सीन के ट्रायल को मंजूरी मिली है. भारत में भी भारत बायोटेक को बच्चों पर वैक्सीन के ट्रायल को मंजूरी मिल चुकी है.

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