पूर्व आतंकी ने कहा, चुनाव का बहिष्कार करने वाले कश्मीर के दुश्मन

कभी भारतीय संविधान को नकारने वाले फारूक अहमद खान आज भाजपा के टिकट पर निकाय चुनाव लड़ रहे हैं। उनका कहना है कि नेशनल कांफ्रेंस, पीडीपी ने हुíरयत कांफ्रेंस व अन्य अलगाववादी संगठनों की तरह चुनाव बहिष्कार कर रखा है। कांग्रेस की राजनीति मुझे पसंद नहीं है। इसलिए भाजपा का विकल्प बेहतर और सही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियां स्पष्ट हैं।
वैसे भी यह चुनाव कश्मीर मसले के हल के लिए नहीं, लोगों के रोजमर्रा के मसलों के हल के लिए हो रहा है। फारूक खान को आज भी कश्मीर के आतंकी संगठनों और अलगाववादी हलकों में हरकत-उल-मुजाहिदीन के पूर्व कमांडर सैफुल्ला के नाम से जाना जाता है। श्रीनगर नगर निगम के वार्ड-33 में भाजपा के उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे फारूक अहमद खान 1989 में आतंकी ट्रे¨नग लेने के लिए पाकिस्तान गया था और दो साल बाद हरकत कमांडर सैफुल्ला बनकर लौटा था।
श्रीनगर निवासी फारूक अहमद खान उर्फ सैफुल्ला ने कहा कि मैं यह चुनाव बहुत सोच समझकर लड़ रहा हूं। मैं यहां सभी की असलियत जानता हूं। आतंकियों को शहीद बताने वाले हमारे अलगाववादी नेता, सड़कों पर रोजी रोटी के लिए रोज संघर्ष कर रहे मेरे जैसे पुराने आतंकी कमांडरों से क्या सुलूक कर रहे हैं, मैं जानता हूं। मुख्यधारा में शामिल होने वाले और जेल से रिहा होने के बाद नए सिरे से ¨जदगी शुरू करने को प्रयासरत पूर्व आतंकियों और उनके परिजनों के कल्याण के लिए संघर्षरत एक संगठन को चला रहे फारूक खान ने कहा कि जब तक मैंने बंदूक उठा रखी, सभी बहुत तारीफ करते थे। एक दिन मैं पकड़ा गया और जब 1997 में जेल से रिहा हुआ तो मैंने एक अलग ही दुनिया को सामने पाया
पाकिस्तान और जिहाद की हकीकत को मैं पहले ही समझ चुका था, लेकिन दिल नहीं मानता था। जेल से रिहा होने के बाद मैंने देखा जो लोग पहले मुझे नायक मानते थे, मेरी तरफ ऐसे देखते थे जैसे मैं उनकी ¨जदगी का सबसे बड़ा खलनायक हूं। कोई मेरी मदद को आगे नहीं आया। मेरे ही एक जानने वाले ने मेरे अतीत के बारे में बताकर मेरी नौकरी खत्म करवा दी।उसने बताया कि मैं अलगाववादी नेताओं से भी मिला। मैंने जब उनसे पूछा कि मेरे जैसे आतंकियों के लिए वह क्या कर रहे हैं तो कोई जवाब नहीं मिला।
पूर्व आतंकियों और मुठभेड़ में मरने वाले आतंकियों के परिजनों के लिए जो मदद आती है, वह भी इनके घर से आगे नहीं जाती। इसलिए मैंने बंदूक छोड़ने वाले पूर्व आतंकियों की बेहतरी के लिए जेएंडके हयूमन वेलफेयर ऑर्गेनाइजेशन बनाई।चुनाव लड़ने वालों को कौम का गद्दार बताने के लिए अलगाववादियों और आतंकियों को आड़े हाथ लेते हुए उन्होंने कहा कि मैं कौम का कैसे गद्दार हो सकता हूं। मैंने अपनी जवानी में आजादी और जिहाद के झूठे नारे पर बंदूक उठाई थी। मैं इस नारे की असलियत को समझ चु़का हूं। जो चुनाव लड़ने वालों को गद्दार कह रहे हैं, वही कश्मीर और कश्मीरियों के दुश्मन हैं।