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जाने कजरी तीज की पौराणिक व्रत कथा। .

हरियाली तीज की तरह ही कजरी तीज का व्रत हिंदू धर्म की सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है. हिंदी पंचांग के अनुसार, कजरी तीज का पर्व हर साल भाद्रमास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है.

ऐसे में आज कजरी तीज है. इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, सुख-समृद्धि और संतान सुख की प्राप्ति के लिए व्रत रखती हैं. कजरी तीज व्रत का पारण चंद्रमा के दर्शन करने और उन्हें अर्घ्य देने के बाद किया जाता है.

इस दिन सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना करती हैं. इससे माता पार्वती और भगवान शिव प्रसन्न होकर मनवांछित फल देते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. आइए जानते हैं कजरी तीज की व्रत कथा.

पौराणिक मान्यता के अनुसार एक गांव में एक ब्राह्मण रहता था. गरीबी की वजह से जीवन यापन करना मुश्किल हो गया था. एक दिन ब्राह्मण की पत्नी ने भाद्रपद महीने की कजली तीज के व्रत का संकल्प ले लिया था.

माता तीज की पूजा के लिए घर में सत्तु नहीं था. पत्नी ने कहा की आप चाहे जहां से सत्तु लेकर आइए. पत्नी की जिद्द और भक्ति देखकर ब्राह्मण चोरी करने के लिए तैयार हो गया.

वह संध्याकाल में एक साहूकार की दुकान में चोरी करने के लिए घुस गया और वहां से सत्तु लेकर जाने लगा, तभी किसी चीज के गिरने से सभी नौकर जग गए और उस ब्राह्मण को पकड़ लिया.

ब्राह्मण को साहूकार के पास लेकर जाया गया. जहां पर वह जोर-जोर से चिल्लाकर कह रहा था कि वह चोर नहीं है. सिर्फ अपने पत्नी के व्रत की पूर्ति के लिए सत्तु लेने आया था बस. ब्राह्मण की बात सुनकर साहूकार ने उसकी तलाशी लेने को कहा.

हालांकि उसके पास सत्तु के अलावा और कुछ नहीं मिला. साहूकार ने ब्राह्मण को माफ करते हुए सत्तु के साथ-साथ गहने, मेहंदी, रुपये देकर विदा किया. उसके बाद सभी ने मिलकर कजली माता की पूजा की. माता की कृपा से ब्राह्मण परिवार के जीवन में खुशहाली आ गई.

हिंदू धर्म के अनुसार, कजरी तीज को नीमड़ी माता का पूजन किया जाता है. इन्हें माता पार्वती का ही रूप माना जाता है. कजरी तीज के दिन सुबह स्नान आदि करके साफ कपड़ा पहने लें. उसके बाद घर के पूजा स्थल पर व्रत करने और पूजा करने का संकल्प लें.

अब नीमड़ी माता की पूजा में भोग लगाने के लिए माल पुआ बनाएं. पूजन के लिए मिट्टी या गाय के गोबर से तालाब बनाएं. उसमें नीम की टहनी डाल कर उस पर लाल चुनरी रखकर नीमड़ी माता की स्थापन करें.

अब निर्जला व्रत रखते हुए 16 श्रृंगार कर माता का पूजन करें. नीमड़ी माता को हल्दी, मेहंदी, सिंदूर, चूड़ियां, लाल चुनरी, सत्तू और माल पुआ चढ़ाएं. चंद्रमा का दर्शन करें और उन्हें अर्घ्य दें. इसके पति के हाथ से पानी पीकर व्रत का पारण करें. धार्मिक मान्यता है कि मां की कृपा से अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है.

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