महिलाओं को राजनीति में भागीदार बनाने के लक्ष्य के साथ यूपी चुनाव में उतरेगी चंद्रशेखर आजाद की पार्टी
देश की राजनीति की दिशा को हमेशा से प्रभावित करने वाले राज्य उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा की चुनावी राह में रोड़े अटकाने को तैयार हैं आजाद समाज पार्टी के संस्थापक नेता चंद्रशेखर आजाद.
दलित नेता और पेशे से वकील चंद्रशेखर आजाद राज्य में भाजपा को घेरने और उसकी नीतियों और कथित विफलताओं को उजागर करने के लिए कमर कस चुके हैं. इतना ही नहीं उन्होंने राज्य में अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों में 403 सीटों से उम्मीदवार उतराने का फैसला लिया है.
उत्तर प्रदेश सर्वाधिक आबादी वाला राज्य है, जहां की आबादी ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस की मिश्रित आबादी के बराबर है. इसके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी माने जाते हैं,
और उनके उत्तराधिकारी के रूप में देखे जा रहे हैं. ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के अनुसार, आजाद ने कहा, “मैं जब बहुत छोटा था तो मैंने राजनीति में बहुत भ्रष्टाचार देखा था, लेकिन मैं राजनेता बनना नहीं चाहता था. मैं एक्टिविज्म में जाना चाहता था.”
आजाद का आरोप है कि कोविड से निपटने में केंद्र और राज्य सरकार नाकाम रही है. दलितों और वंचितों की लड़ाई लड़ने के लिए मैदान में उतरे आजाद भाजपा के खिलाफ अपने अभियान को धार देने में जुटे हैं.
यह कोई पहला मौका नहीं है जब उन्होंने मोदी और उनकी पार्टी को निशाने पर लिया हो. वर्ष 2019 में हुए आम चुनावों के दौरान भी आजाद ने प्रधानमंत्री को उनकी सीट से चुनौती देने की घोषणा की थी, लेकिन बाद में उन्होंने दलित मतों के बंटवारा न होने देने के नाम पर इससे हट गए थे.
अपनी घनी मूंछे, आंखों पर शानदार ऐनक और गले में रॉयल ब्ल्यू स्कार्फ वाले आजाद का व्यक्तिगत स्टाइल बागी किस्म का है, जिसके कारण 2015 में गठित भीम आर्मी के सदस्यों के लिए वह आइकॉनिक चेहरा बन चुके हैं.
आजाद भीम आर्मी के सह-संस्थापक भी हैं. आजाद का कहना है कि उनकी नई पार्टी का लक्ष्य बहुजन (दबी-कुचली जातियों के लोगों) और महिलाओं को चुनावी राजनीति में शामिल करना है,
ताकि भारतीय लोकतंत्र में इन्हें आबादी के अनुकूल प्रतिनिधित्व मिल सके. उनका कहना है, “यदि आपकी सरकार बनती है, तो आप अपने लोगों के हिसाब से कानून बनाएंगे.”
आजाद की पार्टी को हाल ही में कुछ राजनीतिक सफलता भी मिली है और उत्तर प्रदेश में हालिया सम्पन्न जिला परिषद के चुनावों में उसे 50 सीटें मिली हैं. उन्होंने 300 सीटों से अपने उम्मीदवार उतारे थे. इसके बाद ही यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में उनकी पार्टी ने अधिकतम सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला लिया है.