पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने खुद अंसारी परिवार को पार्टी की दिलाई सदस्यता

उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सूबे की सियासत में दलबदल का खेल शुरू हो गया है. इसी बीच मुख्तार अंसारी के बड़े भाई सिबगतुल्लाह अंसारी के साथ उनके बेटे मन्नू अंसारी ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया है.
जबकि सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने खुद अंसारी परिवार को पार्टी की सदस्यता दिलाई. हालांकि एक समय अखिलेश अपनी छवि को साफ सुथरा रखने के लिए मुख्तार अंसारी को सपा में शामिल होने की वजह से अपने चाचा शिवपाल सिंह यादव से अदावत कर बैठे थे.
बता दें कि अखिलेश यादव ने 2016 में मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में यह कहते हुए विलय रद्द कर दिया था कि माफियाओं की उनकी पार्टी में कोई जगह नहीं है. यही नहीं, इस वजह से सपा अखिलेश और शिवपाल के गुट में बंट गई थी.
जबकि अंसारी और चाचा के बीच सक्रिय भूमिका निभाने वाले मंत्री बलराम यादव को भी अपनी कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया था. वैसे शिवपाल सिंह यादव ने मुलायम सिंह यादव की सहमति से कौम एकता दल का सपा में विलय करवाया था.
मुख्तार अंसारी के बड़े भाई सिबगतुल्लाह अंसारी और उनके बेटे मन्नू अंसारी के समाजवादी पार्टी का दामन थामने के साथ यूपी की सियासत में इस बात की चर्चा हो रही है
कि पिछले दो चुनाव में हार की वजह से अखिलेश यादव अपनी क्लीन इमेज के बजाए जिताऊ उम्मीदवारों की तलाश में हैं. वहीं, इसे मुख्तार अंसारी की सपा में बैकडोर एंट्री करार दिया जा रहा है.
बता दें कि 2016 में अखिलेश यादव ने न सिर्फ कौमी एकता दल का सपा में विलय रद्द कर दिया था बल्कि चाचा द्वारा अंसारी बंधुओं को दी गई सीटें भी रद्द करते हुए उनकी जगह दूसरे प्रत्याशी उतार दिए थे. इसके बाद अंसारी बंधुओं ने अपनी पार्टी का विलय बसपा में कर लिया था.
उस वक्त मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी ने कहा था कि अखिलेश ने अपनी ब्रांडिंग के लिए हमारा अपमान किया है और उनको इसका नुकसान उठाना पड़ेगा. इसका असर न सिर्फ 2017 के विधानसभा चुनाव बल्कि 2019 के लोकसभा चुनावों में भी देखने को मिला.
यही वजह है कि अब सपा का चाल, चरित्र और चेहरा बदलने से ज्यादा जीतने वाले कैंडिडेट पर फोकस है. यही वजह है कि सपा अध्यक्ष लगातार ऐसे लोगों को पार्टी में शामिल कर रहे हैं, जिनकी छवि दागदार रही है.
पूर्वांचल में अंसारी बंधुओं की छवि जेम्स बांड सरीखी है और करीब पांच से छह जिलों में उनकी अच्छी पकड़ है, जिसमें दर्जनभर विधानसभा सीटें आती हैं. ऐसा माना जाता है कि गाजीपुर, मऊ, वाराणसी, बलिया,
आजमगढ़ और चंदौली में मुस्लिम समुदाय में अंसारी बंधुओं की स्वीकार्यता और ये लोग उन्हीं के इशारे पर वोट डालते हैं. लिहाजा सपा ने पुराने नुकसान को देखते हुए अंसारी बंधुओं को पार्टी में जगह दी है. सिबगतुल्लाह अंसारी, मुख्तार और अफजाल तीने भाई हैं.
मुख्तार अंसारी के बड़े भाई सिबगतुल्लाह अंसारी गाजीपुर की मोहम्मदाबाद सीट से दो बार विधायक रहे हैं. हालांकि 2017 में मोदी लहर की वजह से उन्हें भाजपा की अलका राय से हार झेलनी पड़ी थी.
वहीं, यह लगभग तय हो गया है कि इस बार सपा मोहम्मदाबाद से उनको या फिर उनके बेटे को टिकट देगी. वहीं , सपा का दामन थामने वाले मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी को भी सपा मऊ से टिकट दे सकती है.
साफ है कि अंसारी बंधुओं की सपा में एंट्री के साथ गाजीपुर और मऊ की जंग दिलचस्प होने जारी रही है. हालांकि सपा और अखिलेश यादव को इसका कितना फायदा मिलेगा यह वक्त ही बताएगा.
वैसे भाजपा ने अंसारी बंधुओं की सपा में एंट्री को लेकर कहा कि समाजवादी पार्टी का पहिया अपराधियों के बिना पैडल मारे नहीं घूम सकता. सपा और बसपा ने यूपी में अपराध और अपराधियों को बढ़ावा दिया है