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जम्‍मू-कश्‍मीर में पूंछ आतंकवादियों के खिलाफ चल रहा लगातार अभियान

जम्‍मू-कश्‍मीर में पूंछ की पहाड़ियों में छिपे आतंकवादियों के खिलाफ चल रहा सेना का अभियान साल 2003 के बाद से अब तक का सबसे लंबा अभियान है. इस अभियान में सेना कितने आतंकवादियों से लड़ रही है और वे कितने समय से पीरपंजाल के पहाड़ों पर घने जंगलों में छिपे हुए हैं, इसके बारे में अभी तक कोई स्‍पष्‍ट जानकारी नहीं मिली है.

राजौरी-पुंछ जिले की मिलती सीमा पर डेरा की गली क्षेत्र के जंगल में आतंकियों के छिपने की जानकारी पहले भी मिलती रही है. डेरा की गली का जंगल भिंभर गली बालाकोट से शुरू होता है और पीरपंजाल के पहाड़ों के साथ कश्मीर में शोपियां तक फैला है.

यह इलाका राजौरी और पुंछ दोनों जिलों से सटा है. सर्दी के मौसम में यहां पर इतनी बर्फबारी होती है कि यहां से आवाजाही पूरी तरह से बंद हो जाती है. इसी की आड़ में आतंकी राजौरी और पुंछ से होते हुए कश्‍मीर में दाखिल होते हैं.

आतंकी इस क्षेत्र में लंबे समय तक रहने के लिए जाने जाते हैं, क्योंकि यहां पर हिंदू-मुस्लिम आबादी एक साथ रहती है. यही कारण है कि इस इलाके में पाकिस्‍तानी और कश्‍मीरी दोनों आतंकवादियों की मौजूदगी रहती है.

यही कारण है कि इस इलाके में हफ्तों से आतंकियों की संभावित मौजूदगी ने सुरक्षा एजेंसियों की नींद उड़ा दी है. इसकी तुलना उस समय से भी की जा रही है जब पुंछ आतंकियों का गढ़ था और सुरक्षा के लिए एक बुरा सपना था.

2003 में यहां पर आतंकियों को खदेड़ने के लिए एक लंबा अभियान चला. सूत्रों के मुताबिक कश्मीर में सेना की ओर से की जा रही बड़ी कार्रवाई के बाद आतंकी राजौरी-पुंछ में घाटी से सटे

इलाको को नया ठिकाना बना रहे हैं. ये काफी हद तक उसी तरह से है जैसे साल 1990 से 2000 के बीच पीरपंजाल के पहाड़ों में हिलकाका में आतंकियों ने ट्रेनिग कैंप बना रखा था.

लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद, अल-बद्र और कुछ अन्य समूहों से संबंधित पाकिस्तानी आतंकवादियों ने गांव को अपने किले में बदल दिया था. उन्होंने कंक्रीट और पत्थरों से पूरे इलाके को बंकरों में तब्‍दील कर दिया था और एक अस्पताल सहित अन्य किलेबंदी का निर्माण किया था.

यहां पर रहने के लिए उन्‍होंने दो महीने के लिए 500 पुरुषों को खिलाने के लिए राशन जमा किया था. पाकिस्‍तान की मदद से आतंकी 1999 से यहां पर जमे हुए थे लेकिन साल 2003 में सेना ने इस इलाके को खाली कराने के लिए अभियान शुरू कर दिया था.

अप्रैल और मई 2003 के बीच सेना द्वारा ऑपरेशन सर्प विनाश को अंजाम देने से पहले क्षेत्र में कई मुठभेड़ हुई थीं. हिलकाका से आतंकियों को खदेड़ने के लिए जम्मू और कश्मीर में तब तक का सबसे बड़ा विद्रोह विरोधी अभियान था.

चौतरफा हमले की तैयारी जनवरी 2003 में शुरू हुई. यह अभियान पीर पंजाल के पश्चिमी क्षेत्रों में तीन प्रमुख पर्वतमालाओं के बीच 150 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में चलाया गया.

लगभग 15 हजार सैनिक लगभग दो सप्ताह तक चले ऑपरेशन में शामिल थे. MI-17 हेलीकॉप्टरों के जरिए सैनिकों को हिलकाका तक पहुंचाया गया और हेलीकॉप्टरों के जरिए ही ऊंचाई पर बने कंक्रीट बंकरों को नष्ट कर दिया गया था.

भारतीय सेना के अनुसार, मारे गए आतंकवादियों की कुल संख्या 62 थी. कहा जाता है कि सैनिकों ने इस इलाके से बड़ी संख्‍या में AK -47 राइफलें, बंदूकें, स्नाइपर राइफल्स, ग्रेनेड लांचर, सेल्फ-लोडिंग राइफल, विस्फोटक और बड़ी संख्या में रेडियो सेट बरामद किए थे.

इस अभियान में सेना ने अपने दो जवानों को खो दिया था. ऑपरेशन के दौरान, तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य की सरकार ने बकरवाल चरवाहों को 7.5 करोड़ रुपये के मुआवजे के पैकेज का भुगतान किया, जिन्हें इस क्षेत्र से दूर रखने का आदेश दिया गया था.

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