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मुस्लिम महिलाएं भी ले रहीं रामलीला पंडाल में मेले का लुत्फ

 देश की गंगा-जमुनी संस्कृति पर कुछ लोग निहित स्वार्थों के चलते चाहे जितने भी प्रहार कर रहे हों, पर समय के साथ ही यह और निखर रही है। इसकी बानगी इन दिनों गाजियाबाद के घंटाघर क्षेत्र में चल रही सुल्लामल रामलीला में देखने को मिल रही है।

करीब 118 वर्षों से हर साल इस रामलीला का मंचन होता आ रहा है। मथुरा-वृंदावन से आने वाले कलाकार लीला को जीवंत बना देते हैं। इसे देखने दूर-दराज से लोग आते हैं। पर इस बार रामलीला की एक और खासियत है।

यहां पर बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाएं भी आ रही हैं। बुर्का पहनकर आई महिलाएं रामलीला पंडाल परिसर में लगने वाले मेले में जरूरी सामान खरीदती हैं, तो बच्चे झूले आदि का आनंद उठाते हैं।

सुल्लामल रामलीला पंडाल में लगने वाले मेले में बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलाओं को देख यहां वर्षों से आने वाले लोगों का कहना है कि पहली बार मेले में एक सुखद बदलाव देखने को मिल रहा है।

मुस्लिम महिलाएं मेले में चाट-पकौड़े के ठेले पर गोलगप्पे खातीं, झूलों पर बच्चों को झुलाती तो कहीं घर के जरूरी सामान को खरीदती दिख रही हैं। शाम छह बजे के बाद से ही मेला परिसर गुलजार नजर आता है।

 नफीसा बानो रामलीला में लगने वाले मेले में पहली बार आईं कैला भट्टा की रहने वाली नफीसा बानो ने कहा कि ‘यहां घूमने का अपना अलग ही आनंद है। देश का कानून हम औरतों को पूरी आजादी देता है। हमारे देश में ही ऐसा देखने को मिलता है।

वर्तमान सरकार द्वारा महिलाओं के हित में लिए गए फैसलों से आत्मविश्वास बढ़ा है।’ वहीं एक अन्य महिला गजाला परवेज ने बताया कि ‘सरकार हमारे हित के लिए फैसले ले रही है। इससे हमें प्रोत्साहन मिला है।’

मुस्लिम पुरुष भी कर रहे शिरकत

महिलाएं और बच्चे ही नहीं, मुस्लिम पुरुष भी बड़ी संख्या में मेले में पहुंच रहे हैं। कैला भट्टा से आए नौशाद का कहना था कि सुल्लामल रामलीला के मेले में काफी अच्छा लगता है। सही मायने में ये हमारे गाजियाबाद की पहचान है। हिदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी इस मेले में हिस्सा लेते हैं।

इसी तरह प्रेमनगर से आए सलमान ने कहा कि वह पहली बार गाजियाबाद आए हैं। उनके आसपास के लोगों ने इस मेले के बारे में बताया तो यहां देखने चले आए। उन्होंने कहा, वाकई यह मेला धार्मिक एकता की मिसाल है। यहां आकर बहुत अच्छा लगा।

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