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आइये जाने भगवान गणेश की लीलाओं की पौराणिक कथाओं के बारे में। …

हिन्दू धर्म में हर शुभ काम से पहले भगवान गणेश की स्तुति की जाती है. पौराणिक कथाओं में भगवान गणेश को गजानन, एकाक्षर, विघ्नहर्ता, एकदंत के अलावा और भी कई नामों से बुलाया जाता है. वैसे तो भगवान गणेश की लीलाओं और उनसे जुड़ी पौराणिक कथाओं का कोई अंत नहीं है,

आज की इस कड़ी में हम जानेंगे कि कैसे भगवान गणेश का नाम एकदन्त पड़ा? आपने भी गौर किया होगा कि भगवान गणेश की हर मूर्ति या तस्वीर में एक दांत टूटा हुआ दर्शाया जाता है, आइए जानते हैं कैसे टूटा सिद्धी विनायक का यह दांत और कैसे बने वह एकदंत.

भगवान गणेश के टूटे दांत को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. जिसमें प्रमुख है भगवान गणेश और भगवान परशुराम का युद्ध. पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान शंकर के परम भक्त परशुराम कैलाश पर भोलेनाथ के दर्शन के लिए आए.

उस समय भोलेनाथ और माता पार्वती आराम कर रहे थे. जब परशुराम कैलाश पर पहुंचे तो गणपति ने उन्हें अंदर जाने से रोक दिया. भगवान परशुराम ने भगवान गणेश से बहुत प्रार्थना की, लेकिन वे नहीं माने अंत में परशुराम को क्रोध आ गया और उन्होंने गणेश को युद्ध की चुनौती दी.

भगवान गणेश ने परशुराम की इस चुनौती को स्वीकार कर लिया. परशुराम और गणेश में भयंकर युद्ध हुआ. भगवान गणेश परशुराम के हर वार को रोकते रहे, लेकिन अंत में परशुराम ने अपने परशु जो भगवान शंकर ने उन्हें दिया था उससे गणपति पर प्रहार किया.

गणपति ने अपने पिता के दिए परशु का मान रखते हुए उस वार को अपने ऊपर ले लिया और परशुराम के उस वार से भगवान गणेश का एक दांत टूट गया और पीड़ा से वे तड़प उठे. पुत्र की पीड़ा सुन माता पार्वती वहां आई और गणेश को ऐसी अवस्था में देखकर वे परशुराम पर क्रोधित हो दुर्गा रूप में आ गईं.

माता को क्रोधित देख भगवान परशुराम ने उनसे क्षमा याचना की और भगवान गणेश को अपना समस्त तेज, बल, कौशल और ज्ञान आशीष स्वरूप प्रदान किया. कालांतर में उन्होंने ही इस टूटे दांत से महर्षि वेदव्यास द्वारा उच्चरित ‘महाभारत-कथा’ का लेखन किया.

देवताओं में प्रथम पूज्य श्रीगणेश को ‘एकदंत’ रूप आदिशक्ति पार्वती, आदिश्वर भोलेनाथ और जगतपालक श्रीहरि विष्णु की सामूहिक कृपा से प्राप्त हुआ. गणेश इसी रूप में समस्त लोकों में पूजे जाते हैं.

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