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कागजों पर बच्चों की संख्या बढ़ाकर एमसीडी दे रही बड़ी लूट को अंजाम : सौरभ भारद्वाज

आम आदमी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने कहा कि भाजपा साउथ एमसीडी के 29 स्कूल बंद कर बच्चों को दूसरे स्कूलों में मर्ज कर रही है। एक तरफ एमसीडी इस सत्र में करीब एक लाख बच्चे बढऩे का दावा कर रही है, दूसरी तरफ 29 स्कूल बंद करने जा रही है। एमसीडी के स्कूलों में बच्चे बढ़े तो हैं लेकिन सिर्फ कागजों पर। संख्या बढ़ाकर बच्चों के नाम पर एमसीडी एक बड़ी लूट को अंजाम दे रही है। खुद एमसीडी स्कूल टीचर्स एसोसिएशन के प्रमुख कुलदीप खत्री का कहना है कि एमसीडी के आंकड़े संग्दिंध हैं क्योंकि स्कूल तभी मर्ज होते हैं जब बच्चों की संख्या बहुत कम हो। उन्होंने कहा कि जहां दिल्ली सारकार ने अपने स्कूलों में लगभग 20 हज़ार स्कूल बढ़ाए हैं, वहीं एमसीडी ने लगभग 100 स्कूल बंद कर दिए हैं। एक तरफ दिल्ली सरकार के स्कूल शिक्षा क्रांति के लिए दुनियाभर में चर्चित हैं, वहीं एमसीडी के स्कूल दिन प्रतिदिन कम होने के लिए चर्चा में हैं। सौरभ भारद्वाज ने शनिवार को पार्टी मुख्यालय में प्रेसवार्ता को संबोधित किया। सौरभ भारद्वाज ने कहा कि जिस तरह से एमसीडी दिल्ली वालों की संपत्तियों को बेच रही है, हम हर हफ्ते लगभग दो प्रेसवार्ता इस मुद्दे पर करते ही हैं कि आज इस संपत्ति को बेच दिया और आज इस नई संपत्ति को बेचा। आज एक बहुत गंभीर मामला हमारे सामने आया जो एमसीडी में शासित भाजपा पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। जहां दिल्ली की, पूरे देश और पूरी दुनिया में इस बात के लिए चर्चा हो रही है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में एक शिक्षा क्रांति चल रही है। दिल्ली सरकार के स्कूल प्राइवेट स्कूलों को टक्कर दे रही है। चाहे इमारतों का मामला हो, पंचायत का मामला हो, पढ़ाई का मामला हो, टीचरों का मामला हो, बच्चों के 10वीं और 12वीं के परिणामों का मामला हो या बच्चों के नीट जैसे मेडिकल क्वालिफाइंग एग्जाम का मामला हो, सरकारी स्कूलों के बच्चे प्राइवेट स्कूलों के बच्चों को टक्कर दे रहे हैं। कई जगह अच्छा भी कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ नर्सरी से 5वीं कक्षाओं की प्रार्थमिक शिक्षा की जि़म्मेदारी एमसीडी के स्कूलों पर होती है।एक चौकाने वाली खबर आई है। साउथ एमसीडी अपने यहां 29 स्कूल बंद कर रही है। और उन 29 स्कूलों के बच्चों को दूसरे स्कूलों के बच्चों के साथ मर्ज कर रहा है। जाहिर है, टीचर्स और छात्रों का रेशियो नहीं बदला। अगर कल तक 100 स्कूलों की जरूरत थी, अगर आज वह कुछ स्कूल कम कर रहे हैं तो जाहिर है स्कूलों में बच्चे घटे होंगे। वर्ना, यदि छात्र उतने ही हों और स्कूल कम हो जाएं तो छात्रों और शिक्षकों का रेशियो खराब हो जाएगा। तो जब 29 स्कूल बंद कर रहे हैं, तो सवाल उठता है कि जरूर छात्रों की गिनती कम हुई होगी। मगर इसके बिल्कुल विपरीत, साउथ एमसीडी का दावा था कि इस साल की शुरुआत में उनके यहां करीब 96 हज़ार बच्चे और बढ़े हैं। पिछले साल के मुकाबले इनके यहां 96000 बच्चे बढ़े हैं।  एमसीडी का दावा था कि हमने इस एक ही सत्र में 93696 बच्चे बढ़ाए हैं। इसपर एमसीडी स्कूल टीचर्स एसोसिएशन के कुलदीप खत्री ने सवाल पूछा है कि यह कैसे संभव है कि स्कूलों में तो करीब एक लाख बच्चे बढ़े हैं और आप 29 स्कूल बंद कर रहे हैं। यह बड़ा सावल है। इससे बड़ा सवाल आम आदमी पार्ट यह करना चाहती है कि इसके पीछे क्या गणित है कि बीजेपी ने कहा कि हमारे एमसीडी के स्कूलों में एक लाख बच्चे बढ़े हैं। उसका कारण यह है कि चूंकि कई एमसीडी के शिक्षकों ने इसकी तरफ इशारा किया है कि, और जो कई अखबारों में छपा भी है, मैं आप लोगों को पढ़कर सुना देता हूं। नगर निगम शिक्षक न्याय मंच के प्रमुख कुलदीप खत्री का कहना है कि स्कूलों का विलय बच्चों की संख्या एक लाख बढऩे के दावों को खोखला साबित करता है। विलय व शिक्षकों का ट्रांसफर स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि छात्रों की संख्या में लगभग एक लाख छात्रों की संख्या में वृद्धि से संबंधित डाटा संदिग्ध है। स्कूलों का विलय तभी किया जाता है जब डबल शिफ्ट सिस्टम वाले स्कूलों में छात्रों की संख्या कम हो जाती है।
कई अखबारों में इसपर इशारा किया गया है कि बच्चे बढ़े तो हैं लेकिन सिर्फ कागजों पर बढ़े हैं। सिर्फ बच्चों के नाम और आधार कार्ड कागजों पर अपडेट कर दिया गया है। वह बच्चे स्कूलों में नहीं बढ़े हैं और यह एक बहुत बड़े भ्रष्टाचार की तरफ इशारा करता है। इसका मतलब यह है कि 93 हज़ार तो यह अपने मुंह से बता रहे हैं। हमारा मानना यह है कि बहुत सारे बच्चों ने एमसीडी का स्कूल छोड़ा है। एमसीडी के स्कूलों की खस्ता हालत के चलते, एमसीडी के शिक्षकों की हड़ताल के चलते, एमसीडी के शिक्षकों को तनख्वाह न मिलने के चलते, एमसीडी के स्कूलों में मिड-डे-मील न बंटने के चलते, बहुत सारे बच्चों ने एमसीडी के स्कूलों को छोड़ा है। मगर एमसीडी के स्कूलों के डेटा के साथ गड़बड़ी और छेड़छाड़ की जा रही है। उन बच्चों के नाम पर जो पैसा आता है, चाहे मिड-डे-मील का पैसा आता हो, सूखे राशन का पैसा आता हो, चाहे कपड़े, बस्ते और किताबों का पैसा आता हो, या अन्य कोई पैसा आता हो, यह एक बड़े भ्रष्टाचार की ओर इशारा कर रहा है कि एमसीडी में कागजों में तो बच्चों को बढ़ाया गया है। बच्चों की बढ़त का जो दावा है, वह संदिग्ध है।

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