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मन्दाकिनी में डुबकी लगाते श्रद्धालु।

चित्रकूट । धर्मनगरी में फाल्गुन अमावस्या के पर्व पर श्रद्धालुओं ने मां मंदाकिनी नदी में डुबकी लगाई। इसके बाद भगवान श्री कामदगिरि की पंचकोसी परिक्रमा की। भगवान कामतानाथ की परिक्रमा लगाने के लिए लोग उत्तर प्रदेश से ही नहीं, बल्कि अन्य राज्यों से भी पहुंचे। हर महीने की अमावस्या में लाखों श्रद्धालु आते हैं। कामतानाथ में दीपदान की अमावस्या और मौनी अमावस्या में सबसे ज्यादा भीड़ रहती है। भरत मंदिर के महंत दिव्यजीवन दास ने बताया कि चित्रकूट में भगवान श्रीराम, जानकी, लक्ष्मण के साथ हमेशा विराजमान रहते हैं। मंदाकिनी नदी ऋषि अत्री की पत्नी अनुसुइया के तपोबल से उद्गम हुआ है। महंत ने बताया कि मंदाकिनी नदी में जो डुबकी लगाता है उसके सारे पाप समाप्त हो जाते हैं। कामतानाथ के महंत मदनदास ने कामतानाथ परिक्रमा की महिमा बताई है। भगवान श्री कामतानाथ की पंचकोसी परिक्रमा करने से लोगों की कामना की पूर्ति होती है। महंत ने बताया कि इसका उल्लेख राष्ट्रीय कवि तुलसीदास ने रामचरितमानस पर किया है। कामतानाथ की रज का भी बहुत बड़ा महत्व है। महंत ने बताया कि एक बार तुलसीदास और रहीम दास परिक्रमा लगा रहे थे। तभी एक राजा परिक्रमा मार्ग के पास हाथी को दंड दे रहा था। तब तुलसीदास जी ने रहीम दास से पूछा था, धूल उड़ा वत गज फिरत कही रहीम किन काज, तभी इस बात का उत्तर रहीम दास जी ने बताया कि जो राज ऋषि पत्नी तरी सो ढूंढात गजराज। मदन दास ने बताया कि यह वह भूमि है जहां की एक-एक कण महत्वपूर्ण हैं। चित्रकूट का उल्लेख रामचरितमानस में ही नहीं, बल्कि श्रीमद्भागवत बाल्मीकि रामायण में भी पढ़ने को मिल रहा है।

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