32 साल बीजेपी में रहीं करुणा शुक्ला को जोगी लाए कांग्रेस में
छत्तीसगढ़ में इस बार राजनांदगांव की सीट सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाली सीट बनी हुई है. यहां पर सीएम रमन सिंह के सामने कांग्रेस ने अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करुणा शुक्ला को मैदान में उतारा. यही कारण है कि ये सीट सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाली सीट बन गई. 63 साल की करुणा शुक्ला पहली बार 1993 में बीजेपी विधायक चुनी गई थीं. बीजेपी की टिकट पर सांसद रहीं करुणा शुक्ला 2009 में कांग्रेस के चरणदास महंत से चुनाव हार गई थीं. 2014 आते आते वह बीजेपी में इतनी अलग थलग पड़ीं कि उन्होंने उस कांग्रेस का दामन थामने का फैसला कर लिया, जिसके सामने अटल बिहारी वाजपेयी पूरी जिंदगी लड़ते रहे.
1 अगस्त 1950 के दिन ग्वालियर में अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करूणा शुक्ला का जन्म हुआ था. भोपाल यूनिवर्सिटी से पढ़ाई पूरी करने के बाद करुणा शुक्ला ने राजनीति में कदम रखा था. उन्हें मध्यप्रदेश विधानसभा में रहते हुए बेस्ट एमएलए का खिताब भी मिला था. वह 1982 से 2014 तक भाजपा में रहीं. करुणा शुक्ला ने 2014 में कांग्रेस ज्वॉइन की. लेकिन वे चुनाव नहीं जीत पाईं.
करुणा 1993 में पहली बार विधानसभा सदस्य चुनी गईं. 2004 के लोकसभा के चुनावों में करुणा ने भाजपा के लिए जांजगीर सीट जीती थी, लेकिन 2009 के चुनावों में करुणा कांग्रेस के चरणदास महंत से हार गईं थीं. उस चुनाव में छत्तीसगढ़ में करुणा ही बीजेपी की अकेली प्रत्याशी थीं जो चुनाव हारी थीं. बाकी की सभी सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं. भाजपा में रहते हुए करुणा कई महत्वपूर्ण पदों पर रहीं जिनमें भाजपा महिला मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद भी है. 32 साल भाजपा में रहने के बाद उन्होंने अचानक कांग्रेस का दामन थाम लिया था. करुणा को कांग्रेस में लाने के लिए अजीत जोगी की अहम भूमिका बताई जाती है.
राजनांदगांव के चुनावी मैदान में भले रमन सिंह और करुणा शुक्ला आमने सामने हों. लेकिन दोनों ही इस विधानसभा में अपने लिए वोट नहीं दे सके. इसका कारण है कि इन दोनों के नाम यहां की वोटर लिस्ट में नहीं है. इन दोनों के दूसरी जगहों की वोटर लिस्ट में है. रमन सिंह का नाम गृह क्षेत्र कवर्धा विधानसभा क्षेत्र क्रमांक 72 में ही मतदाता के रूप में दर्ज है. उनका नाम वार्ड क्रमांक 26 की मतदाता सूची में है. वहीं कांग्रेस उम्मीदवार करूणा शुक्ला रायपुर के आनंद नगर (शंकरनगर) में वोट डालती हैं.