मोदी देंगे कश्मीर को बिजली कटौती से मुक्ति
भारी बर्फबारी हो या हाड जमा देने वाली सर्दी, कश्मीर घाटी के लोगों को अब बिजली संकट से जूझना नहीं पड़ेगा। स्टरलाइट कंपनी ने 414 किलोमीटर लंबी एनआरएसएस परियोजना को शुरू कर दिया है। 400/200 केवी डी/सी जालंधर-सांबा-अमरगढ़ ट्रांसमिशन लाइन को अनौपचारिक तौर पर शुरू कर दिया गया है परंतु 3 फरवरी को जम्मू पहुंच रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी श्रीनगर से इस ट्रांसमिशन लाइन का औपचारिक तौर पर उदघाटन कर राज्यवासियों को समर्पित करेंगे। नॉर्दन रीजन स्ट्रेंथनिंग स्कीम-29 (एनआरएसएस) शुरू होने से कश्मीर के लिए पावर ट्रांसमिशन क्षमता में 70 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। इससे पहले घाटी को नार्दन ग्रिड से जोड़े रखने के लिए केवल एक ही पावर ट्रांसमिशन लाइन थी।
स्टरलाइट पावर कंपनी के सीईओ संजय जौहरी ने बताया कि 3000 करोड़ की लागत से तैयार यह प्रोजेक्ट निर्धारित समयावधि से दो माह पहले ही पूरा कर लिया गया। इतने बड़े स्तर पर जम्मू-कश्मीर का यह पहला प्राेजेक्ट होगा जो लोगों को समय से पहले ही समर्पित कर दिया गया। कंपनी ने इस प्राजेक्ट पर काम 4 अगस्त 2014 को की थी। चुनौती भरा प्रोजेक्ट होने के बावजूद कंपनी ने आधुनिक उपकरणों का इस्तेमाल कर 50 महीनों में पूरा की जाने वाली यह परियोजना मात्र 48 महीनों में ही पूरा दी। इस परियोजना के शुरू होने से अब जम्मू-कश्मीर के पास कश्मीर व लद्दाख तक बिजली पहुंचाने के लिए दो लाइन हो गयी हैं। यही नहीं अब 70 प्रतिशत अधिक बिजली घाटी में लाई जा सकती है।
दुर्गम पहाड़ियों पर टावर लगाने के लिए हुआ हेलीक्रेन का इस्तेमाल
कंपनी के सीईओ ने बताया कि जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए यह प्रोजेक्ट काफी महत्वपूर्ण था। प्रोजेक्ट की एहमियत को समझते हुए कंपनी ने इसमें कोई लापरवाही नहीं बरती। प्रोजेक्ट जल्द से जल्द पूरा हो इसके लिए आधुनिक उपकरणों का भी इस्तमाल हुआ। ऊंचाई वाले बर्फीले और दुर्लभ पहाड़ी इलाकों की चुनौतियों से निपटने के लिए पीर पंजाल रेंज में कंपनी ने हेलीक्रेन्स का इस्तेमाल किया। ऐसा साउथ एशिया में पहली बार हुआ। इस कार्य को अंजाम देने के लिए अमरीकी कनसलटेशन कंपनी को सलाह के लिए हायर किया गया।
अगस्त 2018 में हुआ पहला ट्रायल
लाइन को शुरू करने से पहले केंद्र सरकार की एक टीम ने इसका निरीक्षण किया। 21 अगस्त को इस लाइन से ट्रांसमिशन शुरू किया गया और 300 मेगावाट बिजली कश्मीर ट्रांसमिट की गयी। जौहरी ने बताया कि 441 किलोमीटर लंबी इस ट्रांसमिशन लाइन में करीब 482 टावर लगाए गए हैं। सबसे ऊंचा टावर पीर की गली में करीब 13000 फीट ऊंचाई पर स्थित है।
कंपनी 35 साल तक करेगी रखरखाव
कंपनी का विद्युत मंत्रालय के साथ इस ट्रांसमिशन लाइन को लेकर 35 साल का अनुबंध हुआ है। इन सालों में स्टरलाइट कंपनी ही इस लाइन का पूरा रखरखाव रखेगी। कंपनी ने इसके लिए 25 लोग यहां तैनात किए हैं। सर्दियों के 6 महीनों के दौरान इस लाइन का निरिक्षण संभव नहीं है, ऐसे में कंपनी ने एक निजी हेलीकाप्टर कंपनी के साथ हाथ मिलाया है। हर महीने कम से कम दो बार ट्रांसमिशन लाइन का हवाई निरीक्षण किया जाएगा। जल्द ही कंपनी अपनी टेक्निकल टीम को स्नो स्कूटर भी मुहैया करवाएगी। हिमस्खलन के दौरान टावर को कोई नुकसान न पहुंचे इसके लिए टावरों के सामने एवलांच प्रोटेक्शन भी बनाए गए हैं।