व्यवस्थाएं और नियम खूब, लेकिन रूट पर सब बेकार
लखनऊ [ व्यवस्थाओं और नियमों की बात करें तो परिवहन निगम के पास एक लंबी-चौड़ी फेहरिस्त है। चाहे वह गाड़ी संचालन के लिए बने नियम हों या फिर चालक की ट्रेनिंग अथवा ड्यूटी के घंटे तक। लेकिन सफर के दौरान अक्सर यह नियम खरे नहीं उतरते और बड़े हादसों का कारण बन जाते हैं। सोमवार की भोर यमुना एक्सप्रेस-वे पर हुई घटना में 29 लोगों की जान चली गई और कई गंभीर रूप से घायल हैं उनका इलाज चल रहा है। सीधा सवाल इसके लिए कौन जिम्मेदार? व्यवस्था चाक-चौबंद है तो फिर घटनाओं पर नकेल क्यों नहीं लग पा रही है।
दो फेज में सफर का नियम पर मानता कोई नहीं
रोडवेज संयुक्त परिषद के महामंत्री गिरीश मिश्र के मुताबिक, मोटर ट्रांसपोर्ट वक्र्स एक्ट के अनुसार साढ़े सात घंटे का संचालन दो फेज में होना चाहिए। यानी करीब साढ़े तीन घंटे बाद चालक को कुछ देर का ब्रेक मिलना चाहिए, पर ऐसा होता नहीं। चालक लगातार ड्यूटी करता है, जो हादसे का सबब बनता है। सोमवार हुई घटना में प्रथम दृष्टया जो कारण सामने आ रहा है। वह झपकी लगने का है।
डबल क्रू के मानक की दूरी पर भी सवाल
लंबी दूरी बस संचालन के मानक के अनुसार तकरीबन 1100 किमी. लंबी दूरी चलने वाली बसों में ही सिर्फ डबल ड्राइवर की व्यवस्था है। उससे नीचे किमी. वाले रूट पर यह व्यवस्था लागू नहीं होती है। लखनऊ से दिल्ली के बीच करीब 1040 किमी. की दूरी है। लिहाजा दूसरा ड्राइवर बस में नहीं था।
कोई खूब पाता है ड्यूटी, किसी को नहीं मिलती स्टेयरिंग
दरअसल, परिवहन निगम की बसों को संचालन के लिए साढ़े तीन सौ किमी. प्रतिदिन चलने का नियम है, लेकिन रुपये कमाने के फेर में कुछ संविदा चालकों को तो जुगाड़ के बल पर खूब ड्यूटी मिलती है। कुछ प्रतिदिन की ड्यूटी पाने को ही तरस जाते हैं। नतीजा कई थके ड्राइवरों को गाड़ी की कमान बार-बार सौंपी जाती है।
त्रिस्तरीय जांच के बाद सौंपी जाती है बस की कमान
नियमों पर गौर करें तो रोडवेज बस की स्टेयरिंग थामने के लिए चालक को त्रिस्तरीय टेस्ट से गुजरना होता है। पहला डिपो स्तर, दूसरा क्षेत्रीय स्तर और तीसरा टेस्ट कानपुर स्थित ड्राइविंग टे्रनिंग इंस्टीटयूट में विशेषज्ञों की मौजूदगी में होता है। इसमें पास होने के बाद गाड़ी चालक को सौंपी जाती है। बावजूद इसके रोडवेज से हादसे नहीं रोके जा पा रहे हैं।
जिनके हाथ 52 जिंदगियां उनके स्वास्थ्य का ख्याल नहीं
एक चालक के कंधे पर 52 जिंदगियों का जिम्मा होता है। उनके लिए स्थाई तौर पर स्वास्थ्य कैंप तक की व्यवस्था नहीं है। गिने-चुने लगे स्वास्थ्य शिविरों में कई चालकों में नजर कम होने की दिक्कत आई। चश्मा बांट पल्ला झाड़ लिया गया।