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आज से 50 साल पहले ये प्राइवेट बैंक बन गए थे सरकारी बैंक

आज बैंकों के राष्ट्रीयकरण के 50 वर्ष पूरे हो गए हैं. 19 जुलाई 1969 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश के टॉप 14 बैंकों का पहली बार राष्ट्रीयकरण किया था. साल 1969 के बाद 1980 में दोबारा 6 बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया गया था. उस समय देश के बड़े औद्योगिक घराने इन बैंकों का संचालन करते थे. 14 निजी बैंकों को राष्ट्रीयकृत करने के अपने फैसले को उचित ठहराते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था कि बैंकिंग को ग्रामीण क्षेत्रों तक ले जाना बेहद जरूरी है, इसलिए यह कदम उठाना पड़ रहा है.

इन बैंकों का हुआ था राष्ट्रीयकरण

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक, इंदिरा गांधी ने जिन बैंकों को राष्ट्रीयकृत किया था उन बैंकों में सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ इंडिया , पंजाब नेशनल बैंक  बैंक ऑफ बड़ौदा , देना बैंक , यूको बैंक , केनरा बैंक , यूनाइटेड बैंक , सिंडिकेट बैंक , यूनियन बैंक ऑफ इंडिया , इलाहाबाद बैंक , इंडियन बैंक , इंडियन ओवरसीज बैंक  और बैंक ऑफ महाराष्ट्र  शामिल थे.

बड़े औद्योगिक घराने चलाते थे बैंक

उस समय देश के बड़े औद्योगिक घरानों में शामिल टाटा, बिड़ला, Pais और समाज की बड़ी हस्तियों जैसे बड़ौदा के महाराज आदि बैंकों को चला रहे थे. 19 जुलाई 1969 को 14 सरकारी बैंकों का कुल प्रॉफिट 5.7 करोड़ रुपया था. वहीं आज इन बैंकों का कुल घाटा 47,700 करोड़ रुपये हैं.

14 निजी बैंकों को राष्ट्रीयकृत करने के अपने फैसले को न्यायोचित ठहराते हुए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कहा था कि बैंकिंग को ग्रामीण क्षेत्रों तक ले जाना बेहद जरूरी है, इसलिए यह कदम उठाना पड़ रहा है. हालांकि, उनपर आरोप लगा कि उन्होंने अपने राजनीतिक लाभ के लिए यह कदम उठाया था. प्रधानमंत्री के इस फैसले के क्रियान्वयन में आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर लक्ष्मीकांत झा ने बड़ी भूमिका निभाई थी, लेकिन विडंबना यह रही कि इस फैसले की शायद उन्हें पहले से जानकारी नहीं दी गई थी और वह बाद में इस मुहिम का हिस्सा बने. लक्ष्मीकांत झा की तरह इंद्रप्रसाद गोर्धनभाई पटेल को भी प्रधानमंत्री के फैसले की पहले से जानकारी नहीं थी. तत्कालीन आर्थिक मामलों के सचिव पटेल को प्रधानमंत्री के फैसले की घोषणा से महज 24 घंटे पहले इसका मसौदा तैयार करने के लिए कहा गया था.

परमेश्वर नारायण हक्सर प्रधानमंत्री के तत्काली प्रधान सचिव निजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण के फैसले के क्रियान्वयन का जिम्मा संभाल रहे थे. आरबीआई के तत्कालीन डेप्युटी गवर्नर ए. बख्शी उन लोगों में से एक थे, जिन्हें प्रधानमंत्री के फैसले की पहले से जानकारी थी. डी.एन घोष ने अपनी आत्मकथा में इस बात का वर्णन किया है कि केंद्रीय वित्त मंत्रालय में उप सचिव होते हुए कितने सक्रिय रहे थे और इस फैसले के क्रियान्वयन में अपनी अहम भूमिका निभाई थी. भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति वी. व. गिरि ने अध्यादेश पर हस्ताक्षर किया था, जिसके एक दिन बाद उन्हें चुनाव लड़ने के लिए अपने पद से इस्तीफा देना था. निजी बैंकों के राष्ट्रीयकरण करने की प्रधानमंत्री की योजना से मोरारजी देसाई बेहद नाराज थे. नाराजगी प्रकट करते हुए घोषणा के एक सप्ताह पहले उन्होंने वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था.

बैंकों के राष्ट्रीयकरण में राजनीतिक हित भी शामिल
आरबीआई के पूर्व गवर्न सी रंगराजन ने कहा, 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण न सिर्फ आर्थिक निर्णय था बल्कि इसमें राजनीति भी शामिल थी. आज यह सवाल उठता है कि क्या हमें बहुत सारे सरकारी बैंकों की जरूरत है या सिर्फ कुछ निश्चित संख्या में सरकारी बैंक होने चाहिए. सवाल है कि क्या बैंकों में सरकारी हिस्सेदारी 51 फीसदी से नीचे घटानी चाहिए. 1969 में बैंकों का राष्ट्रीयकरण एक बड़ा कदम था जिससे बैंकों का विस्तार हुआ. 1990 में बैंकिंग रिफॉर्म्स से एफिसेंट बैंकिंग सिस्टम बनाने में मदद मिली. बैंकों के राष्ट्रीयकरण से ग्रामीण इलाकों और नए इलाकों में बैंकों को पहुंचने में मदद मिली और 1991 में बैंकिंग रिफॉर्म्स ने बैकों को स्थिरता दी.

इंदिरा गांधी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ओवरराइड किया
14 बैंकों का राष्ट्रीयकृत किए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. जिसे 10 फरवरी 1970 को सुप्रीम कोर्ट ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण में भेदभाव किया गया है और मुआवजा 9000 करोड़ रुपये से दिया जा रहा है, जो बहुत ही कम है. लेकिन इंदिरा ने चार दिन बाद एक नया अध्यादेश लाकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ओवरराइड करने का फैसला किया. जिसे बाद में बैंकिंग कंपनियों (उपक्रमों का अधिग्रहण और हस्तांतरण) अधिनियम, 1970 द्वारा बदल दिया गया.

आज, अधिकांश बैंकर इस बात से सहमत हैं कि राष्ट्रीयकरण ने नुकसान की तुलना में अधिक अच्छा किया है, हालांकि यह अब एक प्रासंगिक मॉडल नहीं हो सकता है. SBI के पूर्व अध्यक्ष अरुंधति भट्टाचार्य ने कहा, यदि राष्ट्रीयकरण का उद्देश्य देश के सबसे दूरगामी क्षेत्रों तक बैंकिंग को पहुंचाना था, तो यह एक हद तक सफल रहा है.

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