धर्म/अध्यात्म
दिसंबर 11 को भगवान दत्तात्रेय का अवतरण दिवस है, पढिये सती अनुसूया की कहानी !
मान्यता अनुसार दत्तात्रेय का जन्म मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को प्रदोषकाल में हुआ था। श्रीमद्भागवत के अनुसार दत्तात्रेय जी ने 24 गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी। भगवान दत्त के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ। दक्षिण भारत में इनके अनेक प्रसिद्ध मंदिर भी हैं। मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय के निमित्त व्रत करने एवं उनके दर्शन-पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
नारद जी 3 देवियों का गर्व चूर करने के लिए बारी-बारी से तीनों देवियों के पास जाते हैं और देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करते हैं। देवी ईर्ष्या से भर उठी और नारद जी के जाने के पश्चात भगवान शंकर से अनुसूया का सतीत्व भंग करने की जिद करने लगी। सर्वप्रथम नारद जी पार्वती जी के पास पहुंचे और अत्रि ऋषि की पत्नी देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करने लगे।
देवी अनुसूया ने अतिथि सत्कार को अपना धर्म मानते हुए उनकी बात मान ली और उनके लिए प्रेम भाव से भोजन की थाली परोस लाई। लेकिन तीनों देवों ने भोजन करने से इंकार करते हुए कहा कि जब तक आप वस्त्रहीन होकर भोजन नहीं परोसेगी तब तक हम भोजन नहीं करेगें। देवी अनुसूया यह सुनते ही पहले तो स्तब्ध रह गई और गुस्से से भर उठी। लेकिन अपने पतिव्रत धर्म के बल पर उन्होंने तीनों की मंशा जान ली।