चाणक्य नीति के द्वारा यह करते है आप , तभी आप पति पत्नी कहलाते है
जिस भी व्यक्ति पर विश्वास किया जा सके, जो विश्वासघात ना करे, वही सच्चा मित्र है। सच्चा मित्र कभी भी आपको बुरे समय में छोड़कर नहीं जाता, वह हमेशा आपका साथ देता है। मित्र वही है जो आप पर विश्वास करे और अगर गलत दिशा में जा रहे हों तो बता सके। पत्नी के संदर्भ में आचार्य का कहना है कि वही सही मायने में जीवनसंगिनी है जो हर हाल में पति का साथ निभाए।
घर-परिवार में उनकी मदद करे। जो ऐसा नहीं करते वह संतान कहलाने योग्य नहीं हैं। अपने बच्चों का सही पालन-पोषण, देख-रेख करने वाला और उनको उचित शिक्षा देकर योग्य बनाने वाला व्यक्ति ही सच्चे अर्थ में पिता है।
फेरे लेने मात्र से पत्नी पत्नी नहीं होती, पत्नी के गर्भ से उत्पन्न होने से कोई संतान नहीं होता और मित्र कहने भर से कोई मित्र नहीं हो जाता। ये रिश्ते तभी सही मायने में रिश्ते होते हैं जब उनमें कुछ खास बातें हों सकती है । आचार्य चाणक्य ने कहा है कि संतान वही है, जो अपने पिता की सेवा करे। उनकी सेवा ही संतान के लिए सबसे बड़ा कर्म है। पिता अपना पूरा जीवन संतान की अच्छी परवरिश में व्यतीत कर देता है, ताकि उनके बच्चे का भविष्य सुरक्षित रहे।