भक्ति से प्रसन्न होकर हनुमान जी अपने भक्तों के हर लेते हैं संकट, पढ़ें मंगलवार व्रत कथा
पराक्रम, बल, सेवा और भक्ति के देवता हनुमान जी को माना जाता है। गोस्वामी तुलसीदास ने भी लिखा है कि- ‘चारो जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा।’ इसका अर्थ है कि ये इकलौते देवता हैं जो किसी न किसी स्वरूप में जगत के लिए संकटमोचक बनकर हर युग में मौजूद रहेंगे। हनुमान जी की भक्ति में लीन कई लोग मंगलवार का व्रत करते हैं और उनकी व्रत कथा पढ़ते हैं। भक्ति से प्रसन्न होकर हनुमान जी अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं। अगर आप भी आज हनुमान जी का व्रत कर रहे हैं तो यहां पढ़ें व्रत कथा।
Hanuman Ji Vrat Katha: काफी समय पहले की बात है। एक ब्राह्मण दम्पत्ति था जिसकी कोई संतान नहीं थी। इससे वो बेहद दुखी रहते थे। संतान सुख पाने के लिए ब्राह्मण वन में जाकर पूजा करने लगा और हनुमान जी से संतान की कामना की। ब्राह्मण की पत्नी भी घर पर पुत्र की प्राप्त के लिए पूरी श्रद्धा से मंगलवार का व्रत करती थी। व्रत के अंत में वो हनुमान जी को भोग लगाती थी और उसके बाद ही भोजन करती थी। फिर एक दिन ऐसा हुआ कि ब्राह्मणी भोजन नहीं बना पाई जिससे वो भोग भी नहीं लगा पाई।
इस पर उसने प्रण लिया कि जब वो अगले मंगलवार को भोग बनाएगी तभी हनुमान जी को भोग लगाकर भोजन ग्रहण करेगी। वो 6 दिन तक भूखी-प्यासी रही। फिर मंगलवार के दिन बेहोश हो गई। हनुमान जी ब्राह्मणी की निष्ठा और लगन को देखकर बेहद प्रसन्न हुए। उन्होंने ब्राह्मणी को दर्शन दिए और कहा कि वो उससे बेहद प्रसन्न हैं और वो उसे संतान का वरदान देंगे। उसकी संतान उसकी बहुत सेवा करेगी। हनुमान जी ब्राह्मणी को बालक देकर अंतर्धान हो गए।
ब्राह्मणी बालक को देखकर बेहद खुश हुई और उसका नाम मंगल रख दिया। कुछ समय बाद ही ब्राह्मण घर आया और उसने बालक तो देखा तो हैरान रह गया। उसने अपनी पत्नी से पूछा कि यह कौन है। पत्नी ने ब्राह्मण को सारी कथा बताई। ब्राह्मण को अपनी पत्नी की बातों पर विश्वास नहीं हुआ। ब्राह्मण ने सोचा कि उसकी पत्नी व्यभिचारिणी है। फिर एख दिन मौका देखकर उसने बालक को कुंए में गिरा दिया। लेकिन जब ब्राह्मण से उसकी पत्नी ने बालक के बारे में पूछा तो वो घबरा गया। पीछे से मंगल मुस्कुरा कर वापस आ गया। बालक को पुन: देखकर ब्राह्मण हैरान रह गाय। रात को हनुमानजी ने उसे सपने में सब कथा बताई। यह सुनकर ब्राह्मण बेहद खुश हुआ। इसके बाद से ही ब्राह्मण और उसकी पत्नी मंगल का व्रत रखने लगे और खुशी-खुशी जीवन व्यतीत करने लगे।