बड़ा निराला है टीआरपी का खेल, चैनल्स की आमदनी से है इसका संबंध
हम अक्सर टीवी चैनल्स के टीआरपी मतलब टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट (Television Rating Points) में अव्वल रहने की बात सुनते हैं। लेकिन, क्या आप इसके बारे में इससे अधिक कुछ जानते हैं। यदि नहीं तो हम आज आपको इसकी पूरी जानकारी देते हैं। दरअसल, किसी भी टीवी चैनल्स लोगों के बीच कितना पॉपुलर है इसका निर्धारण टीआरपी के माध्यम से ही किया जाता है। इसमें भी टीवी चैनल्स पर आने वाले विभिन्न कार्यक्रमों की टीआरपी अलग-अलग होती है। ये ऊपर-नीचे हो सकती हैं। टीआरपी का अधिक होना किसी भी चैनल्स के लिए कई मायनों में खास होता है। इसका सीधा असर चैनल्स को होने वाली आमदनी पर पड़ता है। टीआरपी के हिसाब से ही चैनल्स को विज्ञापन मिलते हैं और इनकी समय के हिसाब से अलग-अलग कीमत तय होती है। यही वजह है कि टीआरपी का खेल काफी लंबा होता है। इससे ही पता चलता है कोई अमुक चैनल्स का अमुक प्रोग्राम कितना पसंद किया गया और ये कितने समय देखा गया। ये चैनल्स की लोकप्रियता का निर्धारण करता है। टीआरपी मांपने का काम ब्रॉडकास्ट आडियंस रिसर्च काउंसिल इंडिया (Broadcast Audience Research Council) करती है।
कैसे होता है निर्धारण
अब यहां पर दूसरा सवाल ये है कि इसका निर्धारण कैसे किया जाता है। आपको बता दें कि ये दरअसल वास्तविक आंकड़े न होकर एक अनुमानित आंकड़े होते हैं। भारत जैसे देश में जहां करोड़ों दर्शक मौजूद हैं वहां पर इसको मापना काफी मुश्किल होता है। ऐसे में ब्रॉडकास्ट आडियंस रिसर्च काउंसिल इंडिया इसको मापने के लिए सैंपल्स का सहारा लेती है। बीएआरसी अपनी सैंपल में देश के विभिन्न राज्यों के विभिन्न शहरों, इलाकों को इसमें शामिल करती है। इसमें ग्रामीण और शहरी दोनों ही क्षेत्रों को किया जाता है। इसमें भी इसकी सैंपलिंग में विभिन्न आयु वर्ग के लोगों को शामिल किया जाता है। इसमें शामिल सभी लोग विभिन्न कार्यक्षेत्रों से होते हैं। बीएआरसी इसको मापने के लिए सैंपल साइज के आधार पर अपने उपकरण वहां पर लगाती है, जिसको बारओ मीटर (BAR O Meters) कहा जाता है।
बीएआरसी के मुताबिक देशभर के 45 हजार घरों में इस तरह के मीटर लगे हैं। न्यू कंज्यूमर क्लासीफिकेशन सिस्टम (NCCS) के अंतर्गत इन्हें 12 श्रेणियों में बांटा गया है। इसको न्यूएसईसी भी कहा जाता है। ये भी शिक्षा और रहन-सहन के स्तर पर तय किया जाता है। इसकी की 11 अलग-अलग श्रेणियां हैं। इसमें दर्शकों को अलग-अलग आईडी दी जाती है। जब भी कोई दर्शक अपनी रजिस्टर्ड आईडी के तहत किसी प्रोग्राम को देखता है वो आंकड़ों में दर्ज होती जाती है। वर्ष 2015 से बीएआरसी इसी प्रक्रिया के तहत अपने काम को अंजाम दे रही है। आपको जानकर ये हैरानी हो सकती है कि टीआरपी के लिए आप या देश के दूसरे करोड़ों दर्शक क्या देखते हैं ये बातें मायने रखती हैं, लेकिन ये 45 हजार लोग जरूर मायने रखते हैं। क्योंकि यही टीआरपी सेट करने में अहम भूमिका निभाते हैं।
इसके जरिए ये पता चलता है कि किस वक्त में कौन सा चैनल और कौन सा प्रोग्राम सबसे अधिक देखा गया। इनसे मिले आंकड़ों का बाद में विश्लेषण किया जाता है और विभिन्न चैनल्स की टीआरपी तय की जाती है। इन्हीं सैंपल के जरिए दर्शकों की पसंद और नापसंद का अनुमान लगाया जाता है। वर्ष 2018 में ट्राई ने माना था कि एक बेहतर कानून न होना टीआरपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। इसमें कहा गया था कि यदि कोई भी टीआरपी के आंकड़ों में किसी तरह की छेड़ाखानी के लिए काम करता है तो उसके खिलाफ एफआईआर की जा सकती है।