पढ़िए सीएम जगन की वो चिट्ठी, जिसने खोली चंद्रबाबू-जस्टिस रमन्ना की साजिश की पोल:-
आंध्र प्रदेश सरकार ने अपनी तकलीफों को सबूतों के साथ भारत के मुख्य न्यायाधीश (chief justice of India) साझा की है, क्योंकि जांच के दौरान स्थगनादेश नहीं दिए जाने की सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में एक के बाद एक स्थगनादेश जारी हो रहे हैं। इससे कोई भी मामले की जांच आगे नहीं बढ़ रही है। छोटे-छोटे मामलों में भी फैसलों की बात करें तो भी ऐसा माहौल पैदा किया जा रहा है कि राज्य सरकार निर्ष्क्रिय बन गई है और एक वर्ग का मीडिया उन खबरों को बड़े प्रमुखता देते हुए प्रसारित कर रही है।
सरकार ने जब इसकी वजह जानने की कोशिश की तो पता चला कि यह सब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमणा के हस्तक्षेप की वजह से हो रहे हैं। सीएम जगन ने इससे संबंधित सबूतों के साथ सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस ए. ए. बोबड़े को पत्र लिखा है।
सीएम ने भारत के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखने के अलावा तेलुगु देशम पार्टी के कार्यकाल में महाधिवक्त रहे दम्मलपाटी श्रीनिवास के साथ मिलकर जस्टिस एनवी रमणा ने संपत्ति कैसे जुटाई इसका भी ब्यौरा दिया है।
जस्टिस रमणा ने हाईकोर्ट के न्यायाधीश रहते एक मामूली वकील रहे दम्मलपाटी श्रीनिवास के अनुकूल कितने फैसले दिए हैं, इसके सबूत भी सौंपे गए हैं। इनसबके अलावा चंद्रबाबू नायडू और जस्टिस एनवी रमणा के बीच अत्यंत करीबी संबंध होने का खुलासा करने वाला एक और सबूत का भी पत्र में उल्लेख किया है।
इससे पहले पांच न्यायाधीशों की नियुक्ति से संबंधित कोलिजियम सदस्य के रूप में जस्टिस एनवी रमणा की तरफ से व्यक्त की गई राय… उस वक्त मुख्यमंत्री रहे चंद्रबाबू नायडू की राय बिल्कुल एक जैसी थी और इसमें केवल उनके हस्ताक्षर अलग-अलग थे। । इस बात को कोलिजियम में शामिल एक अन्य सदस्य जस्टिस चलमेश्वर ने खुद कहा था। इस मिलीभगत की वजह से कोई घोटाले की जांच करने की राज्य सरकार की कोशिश पर पानी फेर रहा है और सभी स्तर पर दबाव बनाया जा रहा है। इससे संबंधित सभी सबूत भी सीजेआई को सौंपे गए हैं।
CJI को पत्र, सर्टिफिकेट्स भी…
‘अमरावती भूमि घोटाले की जांच के लिए सरकार द्वारा गठित कैबिनेट उपसमिति की पूछताछ और सिट की जांच पर रोक लगाते हुए हाल ही में हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस डी वी सोमयाजुलू द्वारा दिए गए आदेश पर आंध्र प्रदेश सरकार ने स्पेशल लीव पिटिशन दाखिल की है। राज्य हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जितेंद्र कुमार माहेश्वरी ने भी इस घोटाले में पूर्व महाधिवक्ता दम्मलपाटी श्रीनिवास और सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान न्यायाधीश के परिजनों के खिलाफ जारी जांच भी रोक दी है। यही नहीं, इससे संबंधित खबरें मीडिया में प्रसारित न हो इसके लिए गैग आदेश दि गया। हालांकि इसे राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
ऐसे में आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में जारी घटनाक्रम.. विशेष रूपसे आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के मामलों में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एनवी रमणा के हस्तक्षेप के बारे में देश के मुख्य न्यायाधीश को अवगत कराया गया है। इससे संबंधित विभिन्न पत्र इस महीने की 8 तारीख को स्वयं सीएम जगन मोहन रेड्डी ने सौंपे हैं जो जस्टिस एनवी रमणा और टीडीपी प्रमुख नारा चंद्रबाबू नायडू के संबंध और टीडीपी नेताओं के हितों की रक्षा के लिए उनके द्वारा की जा रही कोशिशों का पर्दाफास करते हैं।
जस्टिस एनवी रमणा जब हाईकोर्ट के न्यायाधीश थे तब उनके द्वारा दम्मलपाटी श्रीनिवास से जुड़े मामलों में उनके अनुकूल दिए गए फैसले न्यायपालिका के दुरुपयोग को प्रतिबिंबित करते हैं। इनसब बातों को एक पत्र के रूप में सीएम जगन ने सीजेआई को सौंपा है। मुख्य रूप से राज्य हाईकोर्ट के मामले में जस्टिस एनवी रमणा कैसे प्रभावित कर रहे हैं, इसका विस्तृत ब्यौरा दिया है। अमरावती भूमि घाटाले से संबंधित मामले, उसमें हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों को मुख्य रूप से सीजेआई को सामने रखे गए हैं।
संवादादाता सम्मेलन के तहत विभिन्न दस्तावेज मीडिया को सौंपे गए, लेकिन अमरावती भूमि घोटाले के संबंध में हाल ही में दम्मलपाटी और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की बेटी के खिलाफ एसीबी द्वारा दाखिल एफआईआर की कॉपी और उससे जुड़ी शिकायत नहीं दी गई है। हाईकोर्ट ने यह मामला मीडिया में प्रसारित होने से रोकने के लिए गैग आदेश दिए जाने के मद्देनजर ऐसा किया गया, हालांकि अब उन्हें सीजेआई को सौंपा गया है।
टीडीपी के हितों का उद्देश्य… ये हैं हाईकोर्ट के आदेश
*चंद्रबाबू नायडू का माननीय सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान न्यायाधीशों के जरिए अपनी राजनीतिक के लिए व्यवस्था का इस्तेमाल करना बहुत ही चिंता का विषय है।
लोकतांत्रिक पद्धति में चुनी गई सरकार को अस्थिर करने और उसे गिराने के लिए माननीय हाईकोर्ट का इस्तेमाल करने की कोशिश साफ देखने को मिल रही हैं। सरकार विरोधी फैसलों के पीछे जस्टिस एनवी रमणा के जरिए चंद्रबाबू नायडू द्वारा खेला जा रहा एक राजनीतिक षडयंत्र दिख रहा है।
* ये सभी जानते हैं कि अमरावती में विभिन्न कंपनियों के लोग जमीनें करीदे हैं। विधानसभा द्वारा पारित तीन राजधानियों और एक महत्वपूर्ण चर्चा के दौरान
सामने आए एक मुद्दे को चुनौती देते हुए पिछले वर्ष जनवरी में एक के बाद एक कई याचिकाएं दाखिल हुईं। जांच रिपोर्टस के मुताबिक अमरावती में अपने निजी
हितों की रक्षा के लिए ये याचिकाएं दाखिल की गई हैं। इसको लेकर वहां हुए सभी प्रदर्शन कार्यक्रमों के खर्च का वहन स्वार्थी नेताओं ने ही किया है। विभिन्न चरणों
में इस बाबत करीब 30 याचिकाएं दाखिल हुई हैं और उनमें मुख्यमंत्री को भी प्रतिवादी के तौर पर शामिल किया गया है।
*2014-19 के दौरान चंद्रबाबू सरकार द्वारा लिए गए फैसलों की जांच जब से शुरू हुई है तबसे एक बात स्पष्ट देखने को मिल रही है कि राज्य में न्यायपालिका
को हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जितेंद्र कुमार माहेश्वरी के जरिए जस्टिस एनवी रमणा प्रभावित कर रहे हैं और इसका असर इस प्रकार है।
► चंद्रबाबू के फैसले के अनुरूप उनके हितों की रक्षा करने के लिए न्यायाधीशों का सिटिंग रोस्टर से छेड़छाड़ किया गया। उन न्यायाधीशों में जस्टिस एवी शेषसाई,
जस्टिस एम. सत्यनारायण मूर्ति, जस्टिस डीवीएसएस सोमयाजुलू, जस्टिस डी. रमेश आदि शामिल हैं।
► अदालत द्वारा दिए गए आदेश पर असर
कई महत्वपूर्ण मामलों में टीडीपी के हितों की रक्षा
अमरावती भूमि घोटाला : अमरावती भूमि घोटाले पर एफआईआर दर्ज होने के तुरंत बाद हाईकोर्ट ने जांच पर रोक लगा दी।
जस्टिस के.ललिता
तेलुगु देशम पार्टी के हितों की रक्षा करने वाले न्यायाधीशों में जस्टिस के. ललिता भी एक हैं। मेडिकल स्कैम में पूर्व मंत्री अच्चेन्नायडू गिरफ्तार हुए हैं। उन्हें जेल में रहते एक सप्ताह भी पूरा नहीं हुआ था कि जस्टिस के. ललिता ने पूर्व मंत्री को अस्पताल शिफ्ट करने का आदेश दे दिया। उसके बाद उन्हें एक और अस्पताल शिफ्ट किया गया और आखिर में ऐसी जमानत दी गई कि पूर्व मंत्री अस्पताल से ही रिहा हो गए। सरकार ने इस आदेश को रोकने की मांग करते हुए याचिका दाखिल की थी, लेकिन उसकी एक नहीं सुनी गई। इससे अच्चेन्नायडू को लाभ मिला।
उसी तरह, ‘रक्षिता’ जमीन पर बने मकानों व निर्माणों को हटाने की पहल तत्कालीन एपीसीआरडीए ने पहल शुरू कर दी थी। उन मकानों में चंद्रबाबू नायडू का भी आवास था। उस प्रक्रिया पर रोक लगी हुई है। बाढ़ के दौरान नदी का पानी उन मकानों में घुस गया। साथ ही वहां बने मकान पानी के प्रवाह में रोड़ा बने।
जस्टिस डी. रमेश
जस्टिस डी रमेश को एक रणनीति के तहत क्रिमिनल मामलों में क्वैश पिटिशनों की सुनवाई और रिट पिटिशन्स के लिए रखा गया है। पिछले सरकार में जस्टिस रमेश पूर्व महाधिवक्ता के लिए सरकार के मुख्य अधिवक्ता के रूप में काम करते थे। टीडीपी के करीब रहने वाले उनका मामला कुछ इस प्रकार है।
► रमेश हॉस्पिटल्स के डॉक्टर रमेश द्वारा दाखिल याचिका के अनुकूल और उनके खिलाफ आगे की कार्रवाई को रोकने के लिए जस्टिस रमेश ने स्टे दे दिया। रमेश
अस्पताल द्वारा चलाए गए कोविड केयर सेंटर में घटी अग्रि दुर्घटना में 10 लोगों की मौत होने के मामले में जस्टिस रमेश ने यह निर्णय लिया था। डॉक्टर रमेश
आज भी फरार हैं। जस्टिस रमेश के आदेशों को सुप्रीम कोर्ट ने किनारे रख दिया है।
► इंफरमेंशन टेक्नोलॉजी कानून के मुताबिक राज्य चुनाव आयोग के सहायक सचिव के खिलाफ दाखिल हुए एफआईआर को क्वैश मांगते हुए राज्य चुनाव अधिकारी
ने याचिका दाखिल की। कुछ दिनों बाद आरोपी ने उसी एफआईआर को क्वैश मांगते हुए दूसरी बार याचिका दाखिल की, लेकिन जब उन्हें सुनवाई के लिए
स्वीकारा गया तो बताया गया कि दोनों याचिकाएं कोर्ट के नियमों के खिलाफ हैं। परंतु जस्टिस रमेश ने बिना कारण बताए मामले की जांच पर स्टे लगा दी।
सत्यनारायण मूर्ति
जस्टिस सत्यनारायण मूर्ति गत 10 वर्षों से जस्टिस एनवी रमणा के भरोसेमंद व्यक्ति रहे हैं। सरकार के खिलाफ उनका रुख स्पष्ट देखने को
मिलता है। प्रशासन से जुड़े मामले में अगर हाईकोर्ट हस्तक्षेप करता है तो उसमें सत्यनारायण मूर्ति का रोल साफ देखा जा सकता है। राजधानियों के मामले से जुड़ी
सुनवाई के दौरान सत्यनारायण मूर्ति एनवी रमणा के बगल में होने की पुष्टि हुई है। सरकारी अधिवक्ताओं के प्रति उनका रवैया बिल्कुल ठीक नहीं होता।
► इंटर कॉलेज संघ द्वारा दाखिल याचिका के मामले में जस्टिस सत्यनारायण मूर्ति ने संविधान के अनुच्छेद 365 के मामले में महाधिवक्ता को निर्देश देते हुए कहा
था कि राज्य सरकार केंद्र सरकार द्वारा जारी गाइडलाइंस का अनुसरण नहीं कर रही है। इस मामले में काउंटर की अनदेखी करते हुए सिर्फ याचिकाकर्ता के हलफनामे
के आधार पर जस्टिस मूर्ति ने सुनवाई को रिजर्व रख दिया। गरीबों को मकान की जमीन आवंटन के मामले में जस्टिस मूर्ति कई बार सरकार का विरोध करते
रहे हैं।
► पूर्व महाधिवक्ता और जस्टिस एनवी रमणा के करीबी दम्मलपाटी श्रीनिवास के खिलाफ दर्ज क्रिमिनल मामले की जांच किए बिना ही उसपर स्टे लगा दिया है।
जस्टिस सोमयाजुलू
► पोलावरम हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट से नवयुग इंजीनियरिंग को हटा दिए जाने के विरोध में उस कंपनी द्वारा दाखिल की गई याचिका सुनवाई के लिए जस्टिस सोमयाजुलू के पास पहुंची। हाईकोर्ट वेबसाइट पर उनकी प्रोफाइल देखने पर जस्टिस सोमयाजुलू इससे पहले नवयुग कंपनी के लीगल सलाहाकर थे। पूछताछ के दौरान उन्होंने इस बात का उल्लेख नहीं किया। उनके द्वारा दिए गए आदेशों को एक जज ने वेकेट किया, लेकिन चीफ जस्टिस की नेतृत्व वाली खंडपीठ ने जस्टिस सोमयाजुलू द्वारा विगत में दिए गए आदेश को फिर से अनुमति दे दी।
►कैबिनेट कमेटी और सिट की रिपोर्ट से जुड़े सभी सरकारी आदेशों पर जस्टिस सोमयाजुलू ने स्टे लगा दी। इस मामले में रिट याचिका दाखिल करने वालों में सभी टीडीपी के कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने अपनी पार्टी की प्रतिष्ठा धुमिल होने की शिकायत की थी।
सरकार के खिलाफ ‘येलो पिल्स’
तेलुगु देशम पार्टी का समर्थन करते हुए उस पार्टी के एजेंडे को प्रसारित कर रहे आंध्रज्योति, टीवी-5 न्यूज चैनल राज्य सरकार के खिलाफ कई जनहित याचिकाएं दाखिल होने की वजह बनी हैं। पहले विभिन्न मुद्दों पर ये दोनों मीडिया संस्थान इन याचिकाओं पर खबरें प्रकाशित करने के साथ चर्चा करवाते हैं। इसके कुछ ही दिन बाद राज्य सरकार के विरोध में हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल हुईं। उनमें से कुछ ऐसी हैं
जजों का फोन टैंप करने को लेकर दाखिल
तेलुगु दैनिक आंध्रज्योति ने गत 15 अगस्त को एक खबर प्रकाशित किया था, जिसमें कहा गया था कि राज्य सरकार हाईकोर्ट के न्यायाधीशों का फोन टैपिंग करवा रही है, जबकि उसी दिन राज्य गृहसचिव ने इस खबर का खंडन करते हुए हाईकोर्ट के रिजस्ट्रार को बताया था कि अखबर में छपी खबर गलत है। इसके ठीक दो दिन बाद यानी 17 अगस्त को हाईकोर्ट में एक याचिका दाखिल हुई। हाईकोर्ट ने इसकी प्रामाणिकता को परखे बिना उस समाचार पत्र की खबर के आधार पर सरकार को नोटिस जारी कर दिया। साथ ही उस समाचार पत्र की खबर के आधार पर नेता प्रतिपक्ष नारा चंद्रबाबू नायडू ने राज्य में सरकार पर हाईकोर्ट के न्यायाधीशों का फोन टैपिंग करने का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा। गौरतलब है कि इस मामले में न हाईकोर्ट और न ही चंद्रबाबू नायडू फोन टैपिंग से जुड़ा एक भी आधार नहीं बताया है।
विशाखापट्टणम में टेडीपी की रैली को अनुमति से इनकार
विशाखापट्टणम में जनसभा के आयोजन के लिए टीडीपी को अनुमति नहीं दिए जाने को चुनौती देते हुए टीडीपी के एक पूर्व विधायक ने एक हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। चंद्रबाबू को विशाखापट्टणम जाने से रोकने के एक दिन बाद सीआरपीसी की धारा 151 के तहत नोटिस जारी कर गिरफ्तार करने के एक दिन बाद यह याचिका दाखिल की गई है। इस मामले में हाईकोर्ट ने डीजीपी को राज्य में कानून-व्यवस्था को लेकर फटकार लगाई।
YSRCP विधायक पर कोविड-19 गाइडलाइंस के उल्लंघन को लेकर याचिका
लाईएसआरसीपी के विधायक और एक नेता पर कोविड-19 के गाइडलाइंस का उल्लंघन करने और सोशल डिस्टेंसिंग नहीं बरतने का आरोप लगाते हुए एक याचिका दाखिल हुई। मामले की जांच कर उल्लंघन करने वाले अधिकारियों को निलंबित कर दिए जाने की जानकारी देते हुए राज्य सरकार ने एक काउंटर दाखिल की। लेकिन इससे असंतुष्ट हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने उल्लंघन की सीबीआई की जांच के आदेश दिया। इसके अगले ही दिन नेता प्रतिपक्ष नारा चंद्रबाबू नायडू पर कोविड नियमों का उल्लंघन का आरोप लगाते हुए कोर्ट में याचिका दाखिल हुई। जब इन दोनों याचिकाओं को मिलाकर सुनवाई करने के बाद हाईकोर्ट ने इसकी सीबीआई जांच गैर जरूरी बताया।
कई मामलों में सरकार के विरोध में हाईकोर्ट के फैसले…
1. ग्राम पंचायती कार्यालयों पर सत्तारूढ़ पार्टी के झंडे का रंग डालने को को लेकर याचिका
2. राज्य में सभी सरकारी स्कूलों में इंग्लिश मीडिया शुरू करने के विरोध में याचिका
3. राज्य चुनाव आयोग और कुछ अन्य मामलों को लेकर याचिका
4. जस्टिस ईश्वरय्या और निलंबन के शिकार हुए अधिवक्ता रामकृष्णा के बीच हुई निजी बातचीत पर हाईकोर्ट ने सीधी सुनवाई का आदेश। इसपर जस्टिस रविंद्रन को सुनवाई करने के आदेश।