जगन मोहन के पिता ने कभी पदयात्रा से हासिल की थी सीएम की कुर्सी, क्या ऐसा हो सकता है दोबारा
आंध्र प्रदेश की राजनीति में पदयात्राओं का एक पुराना इतिहास रहा है. ये सियासी पदयात्राएं हर बार ही अपने मिशन में कामयाब रहीं और सत्ता परिवर्तन का अहम हथियार बनकर उभरीं. अगर संयुक्त आंध्र के इतिहास को देखें तो पता चलता है कि यहां भी चंद्रबाबू नायडू की सत्ता को वाईएस राजशेखर रेड्डी की पदयात्रा ने हिला दिया था.
फिर इस पदयात्रा के जरिये ही नायडू की दोबारा सत्ता में वापसी हुई थी. अब वाईएसआरके बेटे वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने यह जिम्मेदारी संभाल ली है. वह अब तक के राजनीतिक इतिहास की सबसे लंबी पदयात्रा कर रहे हैं. जगनमोहन के लिए ये पदयात्रा 2019 की जंग के लिए नेट प्रैक्टिस की तरह है. असली मुकाबला अभी होना है, क्योंकि 2019 में लोकसभा चुनाव के साथ ही आंध्र प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी होने हैं.
वाईएस जगनमोहन रेड्डी ने नवंबर 2017 में कडप्पा जिले के पुलिवेन्दुला निर्वाचन क्षेत्र के इडुपुलपाया से ‘प्रजा संकल्प यात्रा’ शुरू की थी. वहीं, इससे पहले 2003 में जगनमोहन के पिता और आंध्र के पूर्व सीएम वाईएस राजशेखर रेड्डी ने ‘प्रजा प्रस्थान यात्रा’ शुरू की थी. 60 दिनों की पदयात्रा में उन्होंने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कुल 11 जिलों को कवर किया था.
इस यात्रा के दौरान उठाए गए मुद्दों से वाईएसआर लोगों के दिलों में बस गए. उनकी कोशिशों से ही कांग्रेस यहां लोगों से मजबूत संपर्क बना पाई. इसका नतीजा ये हुआ कि 1995 से सत्ता में काबिज़ चंद्रबाबू नायडू को मई 2004 में सीएम की कुर्सी छोड़नी पड़ी.माना जा रहा है कि यह पदयात्रा एक ऐतिहासिक पदयात्रा बन जाएगी, क्योंकि भारतीय राजनीति के इतिहास में आज तक किसी राजनेता ने अपने प्रदेश में इतनी लंबी पदयात्रा नहीं की. ऐसे में जो लोग जगनमोहन की इस पदयात्रा को हल्के में ले रहे हैं, उन्हें आने वाले दिनों में झटका लग सकता है.
दरअसल, जगनमोहन रेड्डी की जनसभाओं में और पदयात्रा के दौरान आ रही भीड़ को देखते हुए लोग कहने लगे हैं कि यह एक ऐसी पदयात्रा है, जो मील का पत्थर साबित होगी. वाईएस जगनमोहन रेड्डी की पदयात्रा अब तक आंध्र प्रदेश में हुई सारी पदयात्राओं से काफी अलग है. इसके पीछे सबसे बड़ा कारण पदयात्रा में हर दिन उमड़ने वाली भीड़ है. ऐसा जनसमर्थन अब तक किसी राजनेता को नहीं मिला है. जनसमर्थन के मामले में जगनमोहन रेड्डी दोनों पूर्व मुख्यमंत्रियों से आग निकल गए हैं.
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि जगनमोहन रेड्डी ने अपनी इस पदयात्रा से न सिर्फ चंद्रबाबू नायडू की ही सरकार को हिलाकर रख दिया है, बल्कि मोदी सरकार को भी हिलाने का काम किया है. जगनमोहन रेड्डी की पदयात्रा का ही नतीजा है कि मोदी-नायडू अलग-अलग हो गए. इतना ही नहीं चंद्रबाबू तो जगनमोहन के कई मुद्दों को अपने हाथों में लेकर अपनी कुर्सी को बचाने का जुगाड़ कर रहे हैं.