बिहार

बिहार सत्ता संग्राम : नीतीश सरकार पर शराबबंदी कानून को लेकर उठे सवाल

बिहार में हर दिन गर्माते चुनावी माहौल के बीच कांग्रेस ने नीतीश सरकार पर शराबबंदी कानून के अनुपालन को लेकर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस ने एक बयान जारी कर कहा कि राज्य में शराबबंदी कानून पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।

बिहार विधानसभा में जहां किसी विधेयक को पारित कराने के दौरान तीखी बहस, सदन का बहिष्कार और हंगामा दिख जाना आम बात हुआ करती थी, उसी सदन में शराबबंदी के मुद्दे ने राज्य में पक्ष और विपक्ष को एक मंच पर लाकर एक नया आयाम तय कर दिया था। शराबबंदी विधेयक को सत्तापक्ष और विपक्ष ने सर्वसम्मति से पारित कर संवैधानिक दृष्टि से राज्य की जनता के प्रति जवाबदेही का अनूठा उदाहरण पेश किया था।

बिहार में देशी शराब पर एक अप्रैल, 2016 को प्रतिबंध लगा दिया गया था। इसके बाद मिली लोगों की प्रतिक्रियाओं से उत्साहित राज्य सरकार ने इसके महज चार दिन बाद ही पांच अप्रैल से विदेशी शराब की बिक्री, खरीददारी और सेवन पर भी पूरी तरह रोक लगा दी थी। वर्ष 1977 की कर्पूरी सरकार के बाद राज्य में दूसरी बार नीतीश सरकार द्वारा लागू शराबबंदी को महिलाओं का अनवरत संघर्ष, सरकार की सकारात्मक जिद और विपक्ष का बिना शर्त समर्थन मिला था।

हालांकि, बाद में शराबबंदी कानून के कई अन्य पहलुओं से भी प्रदेश सरकार को रूबरू होना पड़ा। राज्य में शराब की तस्करी होने लगी, नकली शराब के बाजार फलने-फूलने लगे और इसके अवैध कारोबार ने करोड़ों के सामानांतर अर्थव्यवस्था ने जन्म लिया  नकली शराब बनाने का पहला मामला कानून लागू होने के महज एक-दो महीने बाद ही गोपालगंज में सामने आया, जहां नकली शराब पीने से करीब 20 लोगों की मौत हो गई। बाद में यह संख्या बढ़ गई थी।

शराबबंदी कानून प्रभावी होने के बाद 50 हजार रुपये के जुर्माने से लेकर 10 साल तक की सजा का प्रावधान किया गया। इसके बावजूद राज्य में शराब की पातालगंगा बहती रही। शराबबंदी कानून के उल्लंघन से जुड़े लगभग दो लाख से अधिक मामले बिहार के विभिन्न अदालतों में लंबित पड़े हैं। बिहार सरकार के मद्य-निषेध, उत्पाद एवं निबंधन विभाग के अनुसार, कानून बनने के बाद से इस साल के 14 अक्तूबर तक शराब तस्करी मामले के 81 हजार 839 अलग-अलग मामले दर्ज हुए। इसके तहत 67 हजार 785 लोग गिरफ्तार किए गए और 67 हजार 772 लोगों को जेल भेजा गया। इसके साथ ही लगभग 13 लाख 87 हजार लीटर देशी शराब और 15 लाख 98 हजार लीटर विदेशी शराब भी जब्त किए गए।

पूर्ण शराबबंदी के बावजूद शराब तस्करी और उसके खरीद- वृद्धि में बेतहाशा वृद्धि ने विपक्ष को सरकार पर हमला करने का सुनहरा अवसर दे दिया। लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने शुक्रवार को एक चुनावी सभा में कहा कि नीतीश कुमार शराबबंदी कानून को सख्ती से क्यों नहीं लागू करवा पाए? आज ऐसे हालात बना दिए गए हैं कि बिहारी रोजगार के अभाव में मजबूरन शराब की तस्करी कर रहे हैं। वहीं कांग्रेस ने पिछले सप्ताह अपना घोषणापत्र जारी करने के समय कहा कि इस कानून पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।

बिहार के कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों का मानना है कि शराबबंदी कानून लागू करने में सरकार का यह महकमा पूरी तरह से विफल रहा है। इस बारे में राज्य के पूर्व मुख्य सचिव वीएस दुबे का कहना है कि जब तक बिहार के पड़ोसी राज्यों में शराबबंदी लागू नहीं होगी, तब तक बिहार में यह कानून सफल नहीं हो सकता। शराब तस्करी को नियंत्रित किया जा सकता है बशर्ते व्यवस्था भ्रष्टाचार मुक्त हो। किसी कानून का बार-बार टूटना उस कानून को ही समाप्त कर देने का आधार नहीं हो सकता। इस प्रावधान से कई परिवारों विशेषकर महिलाओं को फायदा हुआ है। अगर पूरी जनसंख्या का पांच फीसदी हिस्सा भी इससे सकारात्मक रूप से प्रभावित हुआ है, तो यह सरकार की बड़ी उपलब्धि है।

माना जा रहा था कि शराबबंदी कानून टूटी-फूटी झोपड़ियों में शराब आधारित दरिद्रता को दूर करेगी, परिवार रोज-रोज की कलह से उबरेंगे और महिलाओं को सुकून मिलेगा। लेकिन, आंकड़े कुछ और सच्चाई बयान कर रहे हैं।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के खिलाफ होने वाले कुल अपराधों में बिहार का प्रतिशत 2016 में घटकर चार प्रतिशत हुआ, लेकिन 2019 में यह बढ़कर 4.6 प्रतिशत तक पहुंच गया। घरेलू हिंसा और बलात्कार के मामले में 2016 के बाद कमी आई, लेकिन में बाद में मामले एकाएक बढ़ते चले गए।

लगभग पांच हजार करोड़ के राजस्व की हानि और पूंजी निवेश की संभावनाओं पर विराम की परवाह किए बिना लागू किए इस कानून के असर पटना विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग की अध्यक्ष प्रो. राजलक्ष्मी का मानना है कि इसके दो पक्ष हैं। जब भी कोई आर्थिक इकाई बंद होती है, तो सरकार के राजस्व संग्रह पर नकारात्मक असर पड़ता है, लेकिन पारिवारिक स्तर पर इसका सकारात्मक प्रभाव होता है। प्रश्न यह है कि हम चाहते क्या हैं? शराबबंदी का तात्कालिक प्रभाव राजस्व संग्रह की दृष्टि से ठीक नहीं है, लेकिन कालांतर में इसका अच्छा प्रभाव पड़ता है। इससे अर्थव्यवस्था की सबसे छोटी इकाई कहे जाने वाले परिवार पर सीधा असर पड़ा है, महिलाओं को घरेलू स्तर पर बहुत राहत मिली है।

अपनी तमाम अच्छाईयों के बीच शराबबंदी कानून के अनुपालन को लेकर जो बहस चुनाव के पूर्व विरोधी दलों ने छेड़ दी है उसका आम मतदाताओं पर कितना असर होता है, यह परिणाम के बाद ही पाता चलेगा।

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