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जम्मू कश्मीर : डीजीपीसी चुनाव में इस बार आरोप-प्रत्यारोप नहीं, इस भाषा को बनाया अहम मुद्दा

पंजाबी भाषा को केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर की राजभाषाओं में शामिल न होने का मुद्दा सिख संगठनों को नजदीक ले आया हैं। जिला गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटियों (डीजीपीसी) के चुनाव की घोषणा होने के बाद भी सिख संगठनों के बीच आरोप प्रत्यारोप नहीं लग रहे है। अक्सर डीजीपीसी चुनाव में सिख संगठनों के बीच गुरुद्वारों की सही देखभाल न करने, सिख समुदाय के लंबित पड़े मसलों को न उठाने, गुरुद्वारा एक्ट में खामियों को लेकर आरोप प्रत्यारोप शुरु हो जाते हैं। पांच साल के बाद होने वाले चुनाव में चुनाव में संगठन आपस में उलझ जाते हैं। खूब राजनीति होती है।

कोरोना से उपजे हालात के बीच होने जा रहे चुनाव में इस बार पंजाबी भाषा एक अहम मुद्दा बन गया है। डीजीपीसी चुनाव का ऐलान हो चुका है। बारह अक्टूबर को जारी की गई अधिसूचना में मतदाता सूचियों की समीक्षा का काम शुरु हुआ है। चुनाव करवाने का जिम्मा वित्त आयुक्त राजस्व को सौंपा गया है। जिला कमेटियों के चुनाव संबंधित डिप्टी कमिश्नर करवाएंगे। जारी अधिसूचना के अनुसार मतदाता सूचियों के ड्राफ्ट 17 अक्टूबर को जारी किए जा चुके हैं। मतदाता 2 नवंबर तक आपत्तियां दर्ज करवा सकते हैं और दावे कर सकते हैं। आपत्तियों और दावों का निपटारा दो नवंबर से लेकर सात नवंबर तक होगा। फाइनल मतदाता सूचियों का प्रकाशन 9 नवंबर को होगा। जारी आदेश के अनुसार जिला आधार पर चुनाव की तिथियां अलग से घोषित की जाएगी।

एक मंच पर आने की तैयारी: जम्मू कश्मीर की राजभाषाओं में पंजाबी को स्थान न मिलने पर खफा सिख संगठनों ने इस मुद्दे पर एक मंच पर आने की तैयारी शुरु कर दी है। संगठन इस मामले पर उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से मुलाकात करेंगे। साथ ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी भेंट करेंगे। नेशनल सिख फ्रन्ट के चेयरमैन वीरेंद्र जीत सिंह का कहना है कि जम्मू कश्मीर में पंजाबी भाषा बोलने वालों में सिर्फ सिख समुदाय ही नहीं बल्कि हर समुदाय के लोग शामिल है। पंजाबी भाषा के लिए हमारा संघर्ष जारी रहेगा। यह सही है कि इस मुद्दे पर सभी एक जुट है। हम गुरुद्वारा एक्ट को प्रभावी तरीके से लागू करने के हक में है। निर्धारित छह महीने या एक साल के बाद गुरुद्वारा कमेटियों को अपना आडिट करना चाहिए।

पंजाब भाषा को दिलाकर रहेंगे न्याय: जम्मू कश्मीर गुरुद्वारा प्रबंधक बोर्ड के प्रधान टीएस वजीर का कहना है कि पंजाबी भाषा को न्याय दिलाने के लिए सभी संगठन संघर्षरत है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि कमेटियों के चुनाव में पंजाबी भाषा को इंसाफ दिलाने का मुद्दा प्रमुख रहेगा। इस मुद्दे को हम उपराज्यपाल से लेकर केंद्र सरकार तक ले जाएंगे। जम्मू कश्मीर में कोरोना के बीच हालात में भी काफी विरोध प्रदर्शन हुए हैं। इसमें सिख संगठनों ने ही नहीं बल्कि समाज के अन्य वर्गों के लोग भी सामने आए हैं।

डीजीपीसी चुनाव को लेकर तैयारियां शुरू: डीजीपीसी चुनाव का बिगुल बजते ही कमेटियों के निवर्तमान पदाधिकारियों और सिख संगठनों के प्रतिनिधियों ने अपनी तैयारी शुरु कर दी है। मोहल्लों के गुरुद्वारों में बैठक हो रही है और चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवार मतदाताओं के बीच जा रहे हैं। सिख समुदाय के मसलों का समाधान करने के अलावा पंजाबी भाषा को लागू करवाने के लिए सब का सहयोग का मांगा जा रहा है। नवंबर के पहले सप्ताह में गतिविधियां तेज हो जाएगी।

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