प्रेस की स्वतंत्रता (अधिकार) पर सरकार कब रोक लगा सकती है :-
हमारे भारतीय संविधान में अनुच्छेद 19 (1) (क), के अंतर्गत वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता या प्रेस की स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। वाक और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ है:- शब्दों, लेखों, मुद्राणों, चिन्हों, अंकों, या संकेतों द्वारा किसी भी प्रकार से अपने विचारों को व्यक्त करना। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से तात्पर्य है किसी व्यक्ति के विचारों को किसी ऐसे माध्यम से अभिव्यक्त करना जिससे वह दूसरों तक उन्हें संप्रेषित कर सके।
भारतीय संविधान अधिनियम, 1950 के अनुच्छेद 19 (1) क, के अंतर्गत व्यक्ति को जानने का अधिकार (Right to Know) ,एक मूल अधिकार है। इसी के तहत लोग सरकार से सवाल करते हैं और सरकार को जवाब देना पड़ता है। आज अपन बात करेंगे कि सरकार कब आम नागरिक एवं प्रेस की स्वतंत्रता पर रोक लगा सकती है |
भारतीय संविधान अधिनियम,1950 के अनुच्छेद 19 (2) के अनुसार:-
सरकार निम्न आधारों पर नागरिकों की वाक और अभिव्यक्ति या प्रेस, जानने की स्वतंत्रता पर रोक लगा सकती है जानिए:-
(1). राज्य की सुरक्षा खतरे में हो:-
राज्य की सुरक्षा सर्वोपरि है सरकार के लिए निम्न आधारों पर रोक लगा सकती है जैसे:- आन्तरिक विक्षोभ या विद्रोह, राज्य के विरुद्ध युद्ध प्रारंभ करना, हिंसात्मक अपराध को उकसाना या प्रोत्साहित करना आदि। राज्य की सुरक्षा को खतरा पहुचाने वाली समझी जाएगी। लेकिन सरकार की आलोचना मात्र या सरकार के प्रति अनादर एवं दुर्भावना उकसाना राज्य सुरक्षा को खतरे में डालने वाला नहीं माना जाएगा।
(2). विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध की सुरक्षा के लिए:-
किसी व्यक्ति को ऐसी मिथ्था या झूठी अफवाहें फैलाने से रोकना है जिससे किसी विदेशी राज्य के साथ हमारे मैत्रीपूर्ण संबंधों को आघात पहुँचता हो।
(3). लोक-व्यवस्था (सामान्य जनजीवन प्रभावित हो रहा हो):-
लोक व्यवस्था से अभिप्राय है, समाज की बाह्रा तथा आंतरिक खतरों से सुरक्षा करना। अर्थात कोई भी बात जिससे समाज में अशांति या खलवाली उत्पन्न हो लोक व्यवस्था के विरुद्ध होती हैं। इस प्रकार समाज में साम्प्रदायिक उथल पुथल पैदा करना या हड़ताल करवाने के उद्देश्य से श्रमिकों में विक्षोभ(उथल पुथल) उत्पन्न आदि लोक-व्यवस्था के प्रतिकूल है। लेकिन सरकार सरकार की आलोचना लोक व्यवस्था या लोक सुरक्षा को खतरा पैदा करने वाली नहीं समझी जाती है।
(4). शिष्टाचार या सदाचार या उल्लंघन होने पर:-
ऐसे कथनों या प्रकाशनों पर रोक जो लोक नैतिकता एवं शिष्टता पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है सरकार रोक लगा सकती हैं जैसे:- अश्लील कृत्यों को करना, अश्लीलता वाले विज्ञापन को प्रकाशित करना, अश्लील वीडियो, गाने,चित्र आदि।
(5). न्यायालय की अवमानना की स्थिति में:-
न्यायालय-अवमान के अंतर्गत सिविल ओर आपराधिक दोनों प्रकार के शामिल हैं- अ). सिविल-अवमान का अर्थ है जानबूझकर न्यायालय के फैसले, डिक्री, निदेश, आदेश, रिट या उसकी किसी प्रक्रिया की अवहेलना या न्यायालय को दिये गए वचन को जानबूझकर भंग करना।
ब). आपराधिक अवमान से तात्पर्य ऐसे प्रकाशनों चाहे वे मौखिक या लिखित या किसी माध्यम से हो जो न्यायालयों या न्यायाधीशों की निंदा की प्रवृत्ति वाला या उनके अधिकारों को कम करने वाला।या पक्षपात पर लांछन लगाता हो, या किसी भी प्रकार से न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करने पर प्रकाशन पर रोक लगाना।
(6). मानहानि:- कोई ऐसा कथन या प्रकाशन पर रोक जो किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को क्षति पहुचाता है। इससे सम्बंधित जानकारी हमें हमारे लेख में पूर्व में दे चुके हैं भारतीय दंड संहिता की धारा 499 में।
(7). अपराध-उद्दीपन की स्थिति में:-
इसका अर्थ है संविधान लोगों को यह अधिकार नहीं देता की वे लोगों को अपराध करने के लिए भड़काये या उकसाये। अत: ऐसी अभिव्यक्ति जो लोगों को अपराध के लिए उकसाती हो, प्रतिबंधित की जा सकती है।
(8).भारत की संप्रभुता एवं अखंडता की रक्षा के लिए:-
इसके अंतर्गत सरकार ऐसे कथनों के प्रकाशन पर रोक लगा सकती है, जिससे भारत की अखंडता एवं सम्प्रुभता पर किसी प्रकार की आँच आती हो या भारत के किसी भाग को संघ से अलग होने के लिए उकसाया जाता हो। इसके अंतर्गत गंभीर रूप से आपत्तिजनक सूचनाएं जो कम्प्यूटर या मेल, ईमेल या सोशल नेटवर्किंग द्वारा देश की एकता एवं सम्प्रुभता को ठेस पहुंचाने पर भी सरकार रोक लगा सकती है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 |