लॉकडाउन में मां-बाप का रोजगार छिना तो बच्चों ने हाथ में पकड़ लिया कटोरा, भीख मांगने वाले 200 बच्चों की पहचान :-
कोरोना वायरस महामारी ने बचपन को ऐसा जख्म दिया है कि कभी हाथ में कॉपी, पुस्तक थामने वाले मासूम बच्चे अब भूख से बेहाल होकर सड़कों पर कटोरा लेकर भीख मांग रहे हैं। लॉकडाउन में मां-बाप का रोजगार छीना तो अपना और परिवार का पेट भरने के लिए मजबूरी में भिक्षावृत्ति का रास्ता अपनाना पड़ा है। हालात यह है कि पिछले पांच महीने में दुर्ग जिले में एक दो नहीं लगभग दो सौ मासूम बच्चों को सड़कों पर भीख मांगते हुए चाइल्ड लाइन, महिला बाल विकास विभाग, पुलिस और श्रम विभाग की संयुक्त टीम ने चिन्हित किया है। इनमें 25 बेसहारा बच्चों को रेस्क्यू भी किया गया है। वहीं बच्चों से जबरदस्ती भीख मंगवाने वाले सात पालकों के खिलाफ सुपेला और खुर्सीपार थाने में एफआईआर भी दर्ज किया गया है।
भीख मांगने वाले बच्चों की महिला बाल विकास और चाइल्ड लाइन की टीम ने काउंसलिंग की तो उनकी पीड़ा जानकार वे भी हैरान रह गए। दो सौ में से आधे से ज्यादा बच्चों ने स्कूल बंद होने और गरीब मातापिता के रोजगार छिनने के कारण भीख मांगना स्वीकार किया। कई बच्चे आदतन भीख मांगने वाले भी मिले।
कोरोना की मार झेल रहे बच्चों की हालत अब सरकार से भी छिपी नहीं है। हर साल बाल भिक्षावृत्ति रोको अभियान के नाम पर महज औपचारिकता निभाने वाला महिला एवं बाल विकास और श्रम विभाग भी ये मान रहा है कि कोरोना की वजह से बाल भिखारियों की संख्या बढ़ी है। महिला बाल विकास के मुताबिक साल 2019 में जिले में एक भी बाल भिखारी नहीं मिला था। इस साल जून से लेकर अक्टूबर तक 25 बच्चों को रेस्क्यू करके जरूरी सुविधाएं मुहैय्या कराई गई है। कुछ बच्चों को आश्रय गृह भी भेजा गया। वहीं पांच बाल श्रमिक भी मिले हैं।
चाइल्ड लाइन दुर्ग के मुताबिक 200 से ज्यादा भीख मांगने वाले बच्चों को चिन्हित करके उन्हें लगातार ट्रैक किया जा रहा है। ज्यादातर बच्चे झुग्गी, झोपड़ी और सड़क किनारे रहने वाले परिवारों के हैं। यूनिसेफ छत्तीसगढ़ और मीडिया कलेक्टिव फॉर चाइल्ड राइट्स फेलोशिप के तहत भी कोविड 19 के कारण इस साल बच्चों के जीवन पर पड़ने वाले शरीरिक, सामाजिक, आर्थिक प्रभाव का अध्ययन किया जा रहा है। जिसमें से बाल भिक्षावृत्ति भी एक गंभीर समस्या बनकर उभरी है। कोरोना लॉकडाउन के कारण मां-बाप का रोजगार छीन गया। लॉकडाउन खुला तो संक्रमण फैलने के डर से उन्हें दोबार काम नहीं मिला। जिसके कारण वे भीख मांग रहे। 2. स्कूल बंद होना और ऑन लाइन पढ़ाई का साधन नहीं होना भी एक बड़ी वजह। 3. रिक्शा, ठेला, मजदूरी और सड़क किनारे दुकान लगाकर गुजारा करने वाले गरीब परिवारों का रोजगार ठप हो गया। भुखमरी के आगे परिवार बेबस है। 4. कोरोना के कारण छोटे दुकानों में काम नहीं मिल रहा। पहले पढ़ाई के साथ कहीं मजदूरी भी करते थे पर लॉकडाउन के बाद वो भी बंद हो गया। 5. पिता की नशे की लत से घर का राशन बिक गया। गरीबी और भूख से तड़पकर भीख मांग रहे। 6. घरवालों ने भीख मांगने भेजा। 7. पलायन करके दूसरे राज्यों से लौटे प्रवासी श्रमिकों को रोजगार नहीं मिला।