Main Slideदेशबड़ी खबर

कश्मीरी पंडितों की तरह ही बेदख़ल क्यों हैं ब्रू आदिवासी :-

कश्मीर घाटी से कश्मीरी पंडितों के पलायन की कहानी तो सबको पता है और इस पर राजनीति भी खूब होती है लेकिन कितने लोगों को ये पता है कि अपने ही देश में 32,000 ब्रू आदिवासियों को बेघर कर दिया गया है।

Last and final Bru tribal repatriation process to start on June 2 | India  News,The Indian Express

क्यों उन्हें अपना प्रदेश मिज़ोरम छोड़ त्रिपुरा में बसना पड़ा और वहाँ से भी उनको उजाड़ा जा रहा है। उनके साथ हिंसा हो रही है और उन्हें स्थाई तौर पर बसाने के ख़िलाफ़ स्थानीय लोग सड़कों पर आ गये हैं। क्यों उन्हें अपने ही देश में पराया कर दिया गया है। पिछले दिनों ये मामला इतना भड़का कि त्रिपुरा में हिंसा हुई और दो लोगों की जान चली गयी। ये वाक़या तब हुआ जब राज्य के कंचनपुर उप-डिवीजन में मिज़ोरम के ब्रू शरणार्थियों को बसाने के सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन हुआ। पुलिस ने ब्रू आदिवासी समुदाय के सदस्यों के पुनर्वास के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे लोगों पर लाठीचार्ज किया और गोलीबारी की। इसमें एक अग्निशमन अधिकारी बिस्वजीत देबबर्मा की गई मौत हो गयी, जिन पर घर लौटते समय उत्तरी त्रिपुरा के पानीसागर में हमला किया गया था। गोलीबारी में मारे गए दूसरे व्यक्ति की पहचान 40 वर्षीय बढ़ई श्रीकांत दास के रूप में हुई।

इस मामले में अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक राजीव सिंह ने मीडिया से कहा, ‘पुलिस आत्मरक्षा में गोली चलाने के लिए मजबूर हो गई थी। भीड़ ने बिना अनुमति के राष्ट्रीय राजमार्ग को अवरुद्ध कर दिया था। हमने उनको रोकने की कोशिश की और भीड़ के हिंसक हो जाने के बाद हल्का लाठीचार्ज किया और गोलीबारी की। भीड़ अनियंत्रित हो गई और उसने पुलिस से हथियार छीनने की कोशिश की।’

दूसरी तरफ हड़ताल आहूत करने वाली संयुक्त आंदोलन समिति (जेएमसी) ने दावा किया है कि पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर गोलीबारी की जबकि वे शांतिपूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे। जेएमसी के संयोजक सुशांत बरुआ ने कहा, ‘हमारे प्रदर्शनकारी शांतिपूर्ण रूप से विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। पुलिस ने बिना उकसावे के उन पर गोलियां चला दीं। एक व्यक्ति की मौके पर ही मौत हो गई और कई अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए।’

बरुआ ने यह भी दावा किया कि समाज कल्याण मंत्री संतन चकमा और स्थानीय विधायक भगवान दास ने प्रदर्शनकारियों से मुलाकात की थी और लिखित आश्वासन दिया था कि उनकी मांग जल्द ही पूरी होगी।

23 साल पहले मिज़ोरम में जातीय संघर्ष के चलते ब्रू (या रियांग) समुदाय के 37,000 लोगों को अपने घरों से भागकर पड़ोसी राज्य त्रिपुरा आने के लिए मजबूर होना पड़ा था। 5,000 लोग लौट चुके हैं। इस साल जनवरी में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे जिससे बचे हुए 32,000 लोगों को त्रिपुरा के शिविरों में स्थायी रूप से बसने की अनुमति मिल सके। हालाँकि इसका त्रिपुरा में बंगाली और मिज़ो समुदायों द्वारा स्वागत नहीं किया गया।

नवगठित संगठन नागरिक सुरक्षा मंच द्वारा ज्ञापन, प्रदर्शन और प्रेस कॉन्फ्रेंस के साथ शुरू हुए विरोध प्रदर्शन ने जल्द ही कानून व्यवस्था की चुनौती पैदा कर दी है। प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रीय राजमार्ग 8 को अवरुद्ध कर दिया और राज्य पुलिस के साथ उनकी हिंसक झड़पें हुईं। स्थानीय जातीय संगठन मिज़ो कन्वेंशन ने नागरिक सुरक्षा मंच के साथ मिलकर संयुक्त आंदोलन समिति (जेएमसी) का गठन किया है। जेएमसी ने कहा है कि 1,500 से अधिक ब्रू परिवारों को कंचनपुर में बसने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

पिछले 10 महीनों में राज्य सरकार ने त्रिपुरा के छह जिलों में 12 पुनर्वास स्थलों पर तीन-तीन सौ परिवारों को बसाने की योजना बनाई है। इनमें से छह स्थलों को कंचनपुर सब-डिवीजन में स्थापित करने का प्रस्ताव है, जिसका जेएमसी द्वारा विरोध किया जा रहा है। कई आंदोलनों के बाद कंचनपुर में अनिश्चितकालीन हड़ताल भी शुरू हुई है।

सुशांत बरुआ ने कहा, ‘ब्रू शरणार्थियों से अपनी ‘पैतृक भूमि’ को बचाने के लिए यह आंदोलन शुरू किया गया है। एक महीने पहले स्थानीय प्रशासन द्वारा 1,500 परिवारों को बसाने का आश्वासन दिया गया था, जबकि सरकार कंचनपुर में 5,000 ब्रू परिवारों को बसाने की योजना बना रही है।’ बरूआ कहते हैं, ‘हालांकि सीमित संसाधनों वाले क्षेत्र में अधिक शरणार्थियों को बसाने के विचार का हम शुरू से विरोध करते रहे हैं, लेकिन हमने केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा हस्ताक्षरित समझौते का सम्मान किया और इसके लिए सहमत हुए। लेकिन अब जिला प्रशासन ने कंचनपुर में कुल 12 में से 6 पुनर्वास स्थलों को स्थापित करने और 5,000 ब्रू परिवारों को बसाने का प्रस्ताव दिया है।’ बरुआ ने कहा कि इस प्रक्रिया से निर्विवाद रूप से जनसांख्यिकीय असंतुलन पैदा होगा।

बरुआ ने यह भी आरोप लगाया कि कंचनपुर के आसपास के 650 बंगाली परिवार और जंपुई हिल रेंज के 81 मिज़ो परिवार, जो ब्रू समुदाय द्वारा किए गए अत्याचारों के कारण भाग गए थे, को अभी दो दशकों में फिर से बसाया नहीं जा सका है। कंचनपुर के सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट चांदनी चंद्रन ने अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर 5,000 ब्रू परिवारों को बसाने के संबंध में कोई नीतिगत निर्णय लेने की बात से इनकार किया है। उन्होंने कहा कि पुनर्वास के लिए परिवारों का चयन अभी भी जारी है और कोई आंकड़ा नहीं बताया जा सकता है।

वैसे, उत्तरी त्रिपुरा के जिला मजिस्ट्रेट नागेश कुमार बी द्वारा 28 अक्टूबर को राज्य के राजस्व विभाग के अधिकारी को एक पत्र लिखा गया है। इसमें जिला प्रशासन ने जिले में 6,000 ब्रू शरणार्थियों के स्थायी पुनर्वास के लिए 137.46 करोड़ रुपये की आवश्यकता का अनुमान लगाया है। आंकड़ों से पता चलता है कि कंचनपुर उप-मंडल में छह स्थानों पर 5,000 ब्रू परिवारों को बसाने की योजना बनाई गई है। मिशा ने कहा, ‘हम इस आंदोलन के कारण एक आर्थिक नाकेबंदी से पीड़ित हैं। हमें इस महीने भी राहत पैकेज के अनुसार खाद्यान्न नहीं मिला है और यदि यह हड़ताल जारी रहती है तो हमें नहीं पता कि हम कैसे जिंदा रहेंगे। चारों ओर दहशत का माहौल है।’ मिशा ने सरकार से क्षेत्र में कानून व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का आग्रह किया।

त्रिपुरा में ब्रू लोगों के पुनर्वास के लिए हुए समझौते के अनुसार, केंद्र सरकार ने 600 करोड़ रुपये के वित्त पोषण के साथ एक विशेष विकास परियोजना की घोषणा की। प्रत्येक परिवार को घर बनाने के लिए 0.03 एकड़ भूमि, आवास सहायता के रूप में 1.5 लाख रुपये और जीविका के लिए एकमुश्त नकद लाभ के रूप में 4 लाख रुपये, दो हजार रुपये का मासिक भत्ता और पुनर्वास की तारीख से दो साल के लिए मुफ्त राशन मिलने का प्रावधान है।

दो दशक पहले उन्हें यंग मिज़ो एसोसिएशन, मिज़ो ज़िरवलाई पावल और मिज़ोरम के कुछ जातीय सामाजिक संगठनों द्वारा निशाना बनाया गया था, जिन्होंने मांग की थी कि राज्य में ब्रू समुदाय को मतदाता सूची से बाहर रखा जाए।

अक्टूबर 1997 में हुए जातीय संघर्ष के बाद लगभग 37,000 ब्रू भागकर त्रिपुरा पहुंच गए, जहां वे राहत शिविरों में शरण लिए हुए थे। तब से, 5,000 से अधिक लोग नौ चरणों में मिजोरम लौट आए हैं, जबकि 32,000 लोग अभी भी उत्तरी त्रिपुरा में छह राहत शिविरों में रहते हैं।

अब सवाल ये है कि क्या हम इतने असहिष्णु हो गये हैं कि अपने ही देशवासियों के लिये हमारे दिल में जगह नहीं है? और हम उन्हें पराया बनाने पर तुले हैं? वो भी ऐसे समय में जब केंद्र सरकार पड़ोसी देशों में प्रताड़ित भारतीयों को गले लगाने और नागरिकता देने को तैयार है।

Related Articles

Back to top button