फर्जी किसान पा रहे ‘सम्मान’ :-
मप्र में एक तरफ प्रदेश सरकार किसानों को आत्मनिर्भर बनाने की कवायद में जुटी हुई है, वहीं दूसरी तरफ यहां किसानों के साथ धोखाधड़ी और ठगी की जा रही है। कर्जमाफी, यूरिया और उद्यानिकी घोटालों का शिकार हो चुका मप्र का किसान एक बार फिर छला गया है। इस बार उसके साथ यह छल प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में फर्जीवाड़े की शक्ल में हुआ है। अधिकारियों ने मिलीभगत करके फर्जी किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की राशि तो दिलवा ही हैं, हैरानी की बात यह है कि प्रदेश में 1,50,000 से ज्यादा ऐसे लोगों के नाम सम्मान पाने वालों की सूची में जोड़ दिए, जो इस दुनिया में हैं ही नहीं।
गौरतलब है कि 1 दिसम्बर 2018 से लागू प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि भारत सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं में से एक योजना है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम के शुरुआत में इसका लाभ केवल वे ही किसान ले सकते थे जिनके पास कृषि योग्य खेती 2 हेक्टेयर या 5 एकड़ थी। लेकिन अब मोदी सरकार ने यह बाध्यता खत्म कर दी है। इस योजना के तहत सभी किसानों को न्यूनतम आय सहायता के रूप में प्रति वर्ष 6 हजार रुपया तीन किश्तों में भुगतान किया जाता है और सहायता राशि सीधे उनके बैंक खातों में जमा हो जाती है। जिसमें प्रत्येक 4 माह के बाद किसान को 2 हजार की सहायता राशी दी जा रही है। लेकिन केंद्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना में भी देशभर में फर्जीवाड़ा शुरू हो गया है। फर्जीवाड़ा उजागर होने से प्रशासनिक महकमें में हडक़ंप मचा हुआ है। अभी तक की जांच-पड़ताल में यह तथ्य सामने आया है कि हजारों ऐसे भूमिहीन, टैक्स भरने वाले, नौकरी पेशा, धनाढ्य लोग किसान बनकर सम्मान निधि की रकम पा रहे हैं, जिनके लिए यह योजना बनी ही नहीं है। यह सब हुआ कृषि विभाग, राजस्व विभाग, पटवारियों और दलालों की मिलीभगत से, जिन्होंने लाखों अपात्रों के नाम सूची में जुड़वा कर सरकार को करोड़ों की चपत दे दी।
शिवराज की मंशा पर फेर रहे पानी
मप्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लगातार कोशिश रही है कि यहां के किसान देश में सबसे संपन्न किसानों में गिने जाएं। इसके लिए उन्होंने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के 6000 रुपए के अलावा मप्र के किसानों को 4000 रुपए की अतिरिक्त सम्मान निधि देने के लिए मुख्यमंत्री किसान सम्मान निधि योजना शुरू की है। ऐसा करने वाला मध्यप्रदेश देश का पहला राज्य बन गया है। इस तरह सम्मान निधि के 10 हजार रुपए पाने लालच में हजारों या कहें कि लाखों फर्जी लोगों ने किसान के रूप में सूची मे अपने नाम जुड़वा लिए। उनके साथ अपनी भी कमाई कर डालने के लिए राजस्व, कृषि विभाग के अधिकारियों और दलालों का तंत्र सक्रिय हो गया और तमाम औपचारिकताएं पूरी होना दिखाकर सूची में नाम जोड़ दिए गए। इस पोर्टल पर सूची में किसानों की संख्या अचानक बहुत अधिक बढऩा देखकर सरकार चौंकी और प्रविष्टियों की पड़ताल में फर्जीवाड़ा पकड़ा गया। इसके बाद केंद्र सरकार ने राज्य का पोर्टल बंद कर दिया। श्योपुर कलेक्टर ने तो एसडीएम और तहसीलादारों को किसान निधि पा रहे सभी किसानों की जांच के निर्देश भी दे दिए। फर्जीवाड़े के सामने आने के बाद केंद्र ने तो 5 फीसदी हितग्राहियों के फिजीकल वेरिफिकेशन की बात की है, लेकिन मप्र सरकार अब सभी किसानों की पात्रता की जांच करवा रही है। अब 4000 रुपए का लाभ पाने के लिए किसानों को अपने पात्र होने का प्रमाण फिर देना होगा और यह काम मैदानी स्तर पर शुरू भी हो गया है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के तहत मप्र में बड़ी संख्या में आयकर भरने और पेंशन लेने वाले किसानों ने किसान सम्मान निधि की राशि ले ली। इस मामले में खुलासा होने के बाद राज्य शासन के निर्देश पर भोपाल जिला प्रशासन की टीम द्वारा कार्रवाई की गई। इस कार्रवाई में किसान सम्मान निधि राशि के लिए घोषणा पत्र भरने वाले किसानों में करीबन 350 आयकरदाता और 200 सरकारी कर्मचारी ने जानकारी छिपाई थी। इस मामले में जिला प्रशासन की टीम ने अब तक कार्रवाई में सारे 500 से अधिक ऐसे लोगों को पकड़ा है। जिन्होंने झूठे घोषणा पत्र भरे हैं। इसके साथ ही साथ उनके खाते में किसान सम्मान निधि राशि के 6000 रुपए की 6 किस्ते भी जमा हो चुकी है। हालांकि राज्य शासन के निर्देश के बाद कार्रवाई के डर से इनमें से 70 प्रतिशत लाभार्थियों ने राज्य शासन को डिमांड ड्राफ्ट के जरिए 1 करोड़ 25 लाख की राशि अदायगी की।
कैसे हुई घोटाले की शुरुआत
केंद्र सरकार की अधिकृत वेबसाइट पीएमकिसान डॉटजीआभीडॉटइन के मुताबिक वर्तमान में इस योजना के तहत देशभर में 11 करोड़ 33 लाख कुल लाभार्थी पंजीकृत हैं। इसमें मप्र में लाभार्थियों की संख्या 77 लाख 43 हजार 415 है, जबकि पंजीयन कराने वालों की संख्या 83 लाख 96 हजार 780 है। अभी तक की जांच-पड़ताल में यह तथ्य सामने आया है कि देश में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना लागू होने के साथ ही किसानों के पंजीयन के फर्जीवाड़े की शुरूआत हो चुकी थी। कृषि विभाग, राजस्व विभाग, पटवारियों और दलालों की मिलीभगत से योजना में सुनियोजित तरीके से फर्जीवाड़ा शुरू कर दिया गया। लेकिन सरकार की नजर में भी गड़बड़ी सामने आ चुकी थी। उसने 8 राज्यों के करीब एक लाख 20 हजार खातों से पैसा वापस भी लिया, क्योंकि खाताधारकों के नाम, पते व अन्य विवरण आपस में मेल नहीं खा रहे थे। सरकार के योजना में धांधली को लेकर उस समय कान खड़े हुए, जब पिछले सितंबर के महीने में अब तक का सबसे बड़ा घोटाला तमिलनाडु में सामने आया, जहां फर्जीवाड़ा करने वालों ने सिस्टम में सेंध लगाकर 110 करोड़ रुपए खातों से निकाल लिए। जांच में पाया गया कि अफसरों और कृषि विभाग द्वारा रखे गए अनुबंधित कर्मचारियों ने स्कीम में बेईमानी की। इन लोगों ने जिला अधिकारियों के लाग-इन आईडी और पासवर्ड का दुरुपयोग किया। स्कीम का फायदा दिलाने रकम के 50-50 फीसदी बंदरबाट का फार्मूला अपनाते हुए भूमिहीनों को सूची में जोड़ दिया गया। सूची में शिक्षक, किसान, टैक्स चुकाने वाले भी बड़ी संख्या में पैसे लेकर शामिल कर दिए गए। इस फर्जीवाड़े के काम में सरकारी अधिकारी शामिल थे, जो नए लाभार्थियों में जुडऩे वाले दलालों को लॉगिन और पासवर्ड प्रदान करते थे। किसानों के नाम पर लाखों अपात्रों ने इस योजना का लाभ उठा लिया और जरूरतमंद किसान वंचित रह गए। गौरतलब है कि शुरू में योजना में छोटे-सीमांत किसानों के अलावा ऐसे किसी भी व्यक्ति को शामिल होने की पात्रता नहीं थी, जो आयकर देता हो या 10 हजार से अधिक पेंशन पाने वाला किसान हो। कोई भी नौकरीपेशा, डॉक्टर, इंजीनियर, सीए, वकील या आर्किटेक्ट हो और कहीं भी खेती भी करता हो। लेकिन इन सारे मापदंड़ों को दरकिनार कर अपात्रों को योजना में न केवल शामिल किया गया, बल्कि लाभ भी दिया गया।
मप्र में अनुमान से अधिक लाभार्थी
मप्र में सरकार को इस बड़े घपले का पता तब चला, जब उसके पास पहुंची लाभार्थी किसानों की संख्या अनुमान से कहीं ज्यादा हो गई। सतना का उदाहरण लें, तो वहां ऐसे किसानों की संख्या एक हजार से भी ज्यादा है। सूची में उन भूमिहीन फर्जी किसानों की संख्या ज्यादा है, जिन्होंने स्व पंजीयन किया है, लेकिन स्वपंजीयन के बाद उनकी पहचान को तहसीलदार ने सत्यापित किया है, इसके बाद उनके खातों में किसान सम्मान निधि की राशि मिलने लगी। सवाल यह है कि इतना बड़ा घोटाला तहसीलदार, पटवारी की जानकारी या उनके शामिल हुए बिना संभव है क्या? इन भूमिहीनों को किसान निधि की राशि मिलने का पता ही नहीं चलता, अगर ग्वालियर के भू-अभिलेख एवं बंदोबस्त विभाग अपर आयुक्त ने सतना कलेक्टर को पत्र न लिखा होता। पत्र में साफ-साफ लिखा गया कि भूमिहीनों को दी गई किसान सम्मान निधि वापस ली जाए, योजना से उनके नाम काटे जाएं। राज्य में किसानों को सम्मान निधि का फायदा दिलाने के नाम पर रकम की बंदरबांट की गरज से राजस्व विभाग के अफसरों ने इतनी तत्परता दिखाई कि 1,50,000 से ज्यादा मृत किसानों के नाम भी सूची में जोड़ दिए गए। बाद में यह फर्जीवाडा विभाग के ही साफ्टवेयर ने पकड़ा। योजना का लाभ पाने पंजीयन कराने के लिए आधार कार्ड की जानकारी अनिवार्य है। पोर्टल में जब आवेदनों की आधार कार्ड से जांच हुई, तो संबंधित नाम के आगे मृत लिखा आ गया। यह भी पता इसलिए चल पाना संभव हो पाया, कि मृत्यु प्रमाण-पत्र के लिए आधार कार्ड की जानकारी अनिवार्य है। तमिलनाडु, असम और उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र की तरह मप्र में भी फर्जी किसान बनकर सम्मान निधि में करोड़ों की धांधली सामने आने पर केंद्र सरकार के कान खड़े हुए। सरकार ने योजना का लाभ लेने वाले सभी राज्यों को निर्देश दिए हैं कि 5 फीसदी लाभार्थियों का रैंडम फिजीकल वेरीफिकेशन कर अपात्रों की पहचान की जाए। साथ ही धोखेबाजों पर नकेल कसकर उनसे रकम वापस ली जाए।
देश भर में फैला फर्जीवाड़ा गिरोह का नेटवर्क
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में फर्जीवाड़े का नेटवर्क पूरे देश में फैला है। क्षेत्र के बड़े माफिया के संरक्षण में बिचौलिए कृषि विभाग के समानांतर व्यवस्था चलाकर भूमिहीन युवाओं, बच्चों को किसान सम्मान निधि का लाभ दिलाते रहे हैं। तमिलनाडु और उत्तरप्रदेश के बाद मप्र में बड़े स्तर पर प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में घोटाला सामने आया। कृषि और राजस्व विभाग के अधिकारियों ने दलालों के साथ मिलकर भूमिहीन लोगों को भी प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना का फायदा पहुंचा दिया। इतना ही नहीं उत्तरप्रदेश में तो प्राइमरी स्कूल में पढऩे वाले बच्चों के बैंक खातों में भी प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना की रकम पहुंची है। मप्र में तो लगभग हर जिले में मृत किसान योजना का लाभ ले रहे हैं। साथ ही हजारों किसान ऐसे मिले, जिन्होंने अलग-अलग पता, आधार और बैंक खाते से पंजीयन करा लिया और विभागीय मिलीभगत से इनका सत्यापन भी हो गया। इसके बाद इन्हें दोहरा लाभ मिलने लगा यानी एक ही किसान के अलग-अलग बैंक खातों से दो किश्तें पहुंचने लगीं। उधर जहां एक ओर योजना के वास्तविक हकदार किसान प्रधानमंत्री की इस योजना का लाभ पाने के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहे हैं, वहीं यहां दलालों के गिरोह ने अपात्र लोगों से रकम लेकर कंप्यूटर से फर्जी खतौनी और अन्य कागजात तैयार कर लोगों के नाम पात्र लोगों की सूची में जोड़ दिए। मप्र के कई किसानों का कहना है कि किसान सम्मान निधि योजना में नाम चढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष मिलने वाली 6 हजार रुपए की राशि में से आधी रकम पर सौदा तय होता है। खंडवा जिले में ज्यादातर गांवों की सूची में दर्जनों नाम ऐसे हैं, जो उस गांव में रहते ही नहीं हैं। मप्र की तरह असम में 9 लाख से ज्यादा फर्जी किसान प्रधानमंत्री की इस सबसे बड़ी योजना का लाभ उठाते पाए गए हैं, जिनकी पहचान कर ली गई है। कृषि मंत्री अतुल बोरा ने माना है कि फर्जी पाए गए नौ लाख लोगों के नाम हटाने के लिए विभाग को आदेश दे दिए गए हैं। केंद्र सरकार ने 5 फीसदी वेरिफिकेशन करने को कहा है, लेकिन राज्य सरकार सौ फीसदी की सत्यता को फिर से जांचेगी। असम में कई जिला अधिकारियों पर कार्रवाई की गाज गिरी है, जबकि कई अफसरों के खिलाफ एफआईआर की गई है।
अप्लाई करने के बावजूद नहीं मिला लाभ!
मप्र सहित देशभर में जहां एक तरफ प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम में लगातार फर्जीवाड़ा सामने आ रहा है, वहीं आवेदन करने के बावजूद देश के 1.35 करोड़ किसानों को अब तक प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम का लाभ नहीं मिल सका है। किसी न किसी रिकॉर्ड में गड़बड़ी की वजह से उनका वेरिफिकेशन नहीं हो पाया है। इस योजना में जगह-जगह हो रहे फर्जीवाड़ा को देखते हुए सरकार इस कोशिश में जुटी है कि फर्जी लोगों को इसका लाभ न मिले और जो सही मायने में किसान हैं उन्हें हर हाल में पैसा मिले। ऐसे में जिस भी आवेदक के रिकॉर्ड में कोई गड़बड़ी है उसका ढंग से सत्यापन किया जा रहा है। यह संख्या कुल आवेदन की 10.6 फीसदी है। यूपी में सबसे ज्यादा 35,38,082 किसानों का सत्यापन पेंडिंग है। इस मामले में दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र है जहां 7,92,584 किसानों का रिकॉर्ड वेरिफाई नहीं हुआ है। तीसरे स्थान पर मध्य प्रदेश है जहां 7,36,292 किसान इंतजार कर रहे हैं कि उनका डाटा चेक करके पैसे दिए जाएं। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कहते हैं कि सितंबर महीने में ही पता चला कि तमिलनाडु में इस स्कीम में सबसे बड़ा घोटाला हुआ। करीब 110 करोड़ से अधिक रकम अवैध रूप से निकाल ली गई। इसमें अब तक 96 कांट्रैक्ट कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर दी गईं हैं। 34 अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू की गई है। 13 जिलों में एफआईआर दर्ज करके 52 लोगों को गिरफ्तार किया गया है। यूपी के बाराबंकी जिले में बड़ा घोटाला हुआ है। ढाई लाख अपात्रों को पैसा मिल गया है। प्रशासन ने धनराशि वापसी का अभियान शुरू किया है। सितंबर में ही गाजीपुर में इसी तरह का मामला सामने आया। बताया गया है कि यहां भी 1.5 लाख फर्जी किसानों 1.5 लाख के नाम डिलीट किए गए हैं। वहीं मप्र में भी फर्जीवाड़े के मामले सामने आ रहे हैं। वेरीफिकेशन करवाकर अपात्रों से रिकवरी की कोशिश जारी है। प्रधानमंत्री किसान स्कीम के आवेदनकर्ताओं के नाम और बैंक अकाउंट नंबर में गड़बड़ी है। बैंक अकाउंट और अन्य कागजातों में नाम की स्पेलिंग भिन्न है। जिसकी वजह से स्कीम का ऑटोमेटिक सिस्टम उसे पास नहीं करता। कई जिले ऐसे हैं जहां पर सवा-सवा लाख किसानों का डेटा वेरीफिकेशन के लिए पेंडिंग है। जब राज्य सरकार किसान के डाटा को वेरीफाई करके केंद्र को भेजती है तब जाकर किसान को पैसा मिलता है।
जिलेवार अपात्रों से हो रही वसूली
प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में फर्जीवाड़ा सामने आने के बाद सरकार ने जिलेवार जांच शुरू करा दी है। जिसमें यह बात सामने आई है कि बड़ी संख्या में फर्जी दस्तावेज से पंजीयन कराकर योजना का लाभ ले लिया गया है। खंडवा तहसील में ही करीब 2300 ऐसे पंजीयन सामने आए हैं, जो अपात्र पाए गए हैं। इनसे अब तक 25 लाख रुपए वसूले जा चुके हैं। खंडवा में अपात्रों ने कृषि भूमि नहीं होने के बावजूद स्वयं को किसान बताकर पंजीयन करा लिया और 2018-19 में छह-छह हजार रुपए की राशि ले ली। कई शासकीय सेवक और आयकर दाताओं ने भी लाभ ले लिया। अपात्रों का डाटा समग्र आईडी के माध्यम से खंगाला गया और राशि वसूल करने के लिए तहसीलदार ने नोटिस जारी किए जा रहे हैं। रतलाम जिले में 15242 किसान अपात्र घोषित किए गए हैं, जबकि दो लाख 52 हजार 887 किसान पात्र हैं। अपात्रों में ऐसे लोग भी हैं जो सरकारी नौकरी के साथ खेती करते हैं और इनकम टैक्स के दायरे में आते हैं। झाबुआ में 30 हजार खाते ऐसे थे, जो अटक गए थे। वजह यह थी कि डुप्लीकेट आधार कार्ड किसानों ने लगा दिए। पुराने समय से कई किसानों के पास दो-दो आधार कार्ड बने हुए थे और उन्होंने अलग-अलग अपडेट कर दिए थे। इनकी जांच हो रही है। भू-अभिलेख के अधीक्षक सुनील कुमार राहणे के अनुसार जिले में एक लाख 33 हजार किसान पात्रता रख रहे थे, लेकिन तकनीकी त्रुटि से एक लाख 3 हजार किसानों के खाते में ही प्रथम किस्त जमा हो पाई। बड़वानी जिले में ऐसे 889 किसानों के खातों में राशि आ गई है, जो आयकर दाता हैं। अधीक्षक भू-अभिलेख मुकेश मालवीय ने बताया कि संबंधित तहसीलदारों के माध्यम से इन किसानों को नोटिस जारी किए गए हैं। खरगोन जिले में 1 लाख 85 हजार किसानों को योजना का लाभ मिल रहा है। 9 गांवों में सत्यापन करने पर 86 किसान अपात्र मिले हैं। इनसे 4 लाख 44 हजार रुपये की वसूली होगी। अन्य गांवों में सत्यापन कार्य की गति धीमी है। संयुक्त संचालक, कृषि, इंदौर आलोक मीणा कहते हैं कि नियम है कि किसान सम्मान निधि उन्हीं किसानों को मिलनी चाहिए, जिनके पास कृषि भूमि है। हर जिले में सम्मान निधि का काम भू-अभिलेख विभाग कर रहे हैं। किसान के जमीन के खसरे के हिसाब से उसके खाते में ही राशि मिलती है। फिर भी गड़बड़ी हो रही है तो इसकी जांच होना जरूरी है।
हर हाल में वापस लिए जाएंगे 6000 रुपए!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी किसान योजना में पहली बार बड़ा घोटाला आने के बाद सरकार सतर्क हो गई है। कृषि मंत्रालय ऐसे फर्जीवाड़े को रोकने के लिए एक स्टेंडर्ड आपरेटिंग सिस्टम तैयार कर रहा है। इसमें वास्तविक हितग्राहियों की असली पहचान की जिम्मेदारी राज्य सरकार की होगी। जो नई गाइडलाइंस जारी की गई है, उनके मुताबिक किसान सम्मान निधि का आवेदन पटवारी के माध्यम से सारा एप पर आवेदन और किसान की फोटो अपलोड करेगा। तहसीलदार को पूरी जानकारी दी जाएगी। तहसीलदार भुगतान की जानकारी आयुक्त भू-अभिलेख को देगा। पैन कार्ड व अन्य डेटा से भी योजना के खाताधारकों की जांच होगी। सभी लाभार्थी राज्यों से 5 फीसदी खाताधारकों का रेंडम फिजीकल वैरिफिकेशन कलेक्टरों से कराने के लिए कहा गया है। सरकार का इशारा साफ है कि जो इसके हकदार नहीं हैं, उन्हें पैसा नहीं मिलेगा। अगर किसी तरह से लाभ ले लिया है तो उसे वापस लिया जाएगा। गलत तरीके से लिया गया पैसा वापस न करने पर कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है। लापरवाही करने वाले अधिकारियों, कर्मचारियों पर भी एक्शन होगा। इस स्कीम के तहत अब तक 94 हजार करोड़ रुपए किसानों के बैंक अकाउंट में भेजे जा चुके हैं।
50 लाख से अधिक खाते निशाने पर
देशभर में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना में हुए फर्जीवाड़े की जद में करीब 50 लाख से अधिक खाते जांच की जद में हैं। अभी तक तमिलनाडु में 110 करोड़ तो महाराष्ट्र में 208 करोड़ रुपए का घोटाला उजागर हुआ है। अधिकारियों, स्थानीय नेताओं और दलालों की मिलीभगत से इस पूरे खेल को अंजाम देने का खुलासा हुआ है। आंकलन के मुताबिक देश में कोरोना संकट आने के बाद जिन लोगों को इस योजना में जोड़ा गया, उसमें ज्यादातर अपात्र लोग थे। कोरोना संकट के चलते लगे लॉकडाउन में सरकार ने योजना के क्लीयरेंस नार्मस में कुछ छूट प्रदान की थी, जिसका लाभ उठाकर ऑनलाइन धोखाधड़ी के जरिए यह सारा फर्जीवाड़ा किया गया। इस पूरे घोटाले के बारे में बताते हुए तमिलनाडु के प्रमुख सचिव गगनदीप सिंह बेदी कहते हैं कि अगस्त में तमिलनाडु में बड़ी संख्या में अपात्र लोगों के इस स्कीम का फायदा उठाने का मामला सामने आया था। उधर कृषि मंत्रालय के अफसरों का कहना है कि देशभर में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का डाटा मिलाया जा रहा है। मप्र सहित देशभर में बड़े स्तर पर फर्जीवाड़ा सामने आ रहा है। अफसरों ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे अधिक फर्जीवाड़ा हुआ है। दलालों ने ग्रामीणों से सारे कागजात लेकर उन्हें अफसरों से प्रधानमंत्री किसान योजना के तहत अप्रूव करा लिया। यह वही समय था जब कोरोना संकट के चलते जिला प्रशासन कोरोना महामारी की रोकथाम के उपाय करने में व्यस्त था। इससे पहले कलेक्टर लाभार्थियों के नाम को उनके जमीन रिकॉर्ड और राशन कार्ड चेक करके मंजूरी देते थे। शुरुआती जांच में यह भी पता चला है कि लिस्ट में जोड़े गए बहुत से अपात्रों को इसके बारे में जानकारी ही नहीं थी। उन्हें दलालों ने सरकार की ‘कोरोना कैश’ नामक योजना से मदद दिलाने का भरोसा दिलाकर उनकी डिटेल्स ले ली और फिर आसानी से घोटाले को अंजाम दे दिया। अफसरों का दावा है कि फर्जीवाड़ा करने वाला कोई भी व्यक्ति बच नहीं पाएगा। उधर मप्र के किसान संगठानों ने दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने की मांग की है। किसान नेता शिवकुमार शर्मा कक्का जी कहते हैं की मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि ठगों और भ्रष्टों के निशाने पर किसान और उनके हित वाली योजनाएं ही क्यों रहती हैं। इसमें कहीं न कहीं सरकार की नीतियां भी दोषी हैं।