अयोध्या : ‘पांच सौ साल के संघर्षों की कड़ी में बड़ी घटना थी 6 दिसम्बर बाबरी विध्वंस’ :-
छह दिसम्बर 92 की घटना राम मंदिर आंदोलन का वह अहम पड़ाव है जहां से एक स्वर्ग तो दूसरा नर्क का रास्ता खोलने में सक्षम था। कालचक्र के प्रवाह में घड़ियां बीतती गई और फिर अंधेरा छंट गया। यहां से अब स्वर्ग की नैसर्गिक यात्रा का श्रीगणेश हो चुका है। इसकी पटकथा नौ नवम्बर 2019 को सुप्रीम कोर्ट के फैसले में ही लिख दी गई थी। रामलला के पक्ष में आए फैसले के बाद 30 सितम्बर 2020 को सीबीआई कोर्ट के फैसले ने रामनगरी को अपराध बोध से मुक्त कर नया इतिहास लिखने को प्रेरित किया है। इसकी शुरुआत भी केंद्र व प्रदेश सरकारों के जरिए हो रही है।
उदर सभी हिन्दू संगठन राम मंदिर का चरम लक्ष्य हासिल करने के बाद आंदोलन की कड़वी यादों को विस्मृत करने की प्रक्रिया में है। वहीं दूसरी ओर कोविड-19 की महामारी ने विपक्ष को भी संयत रहने पर मजबूर कर दिया है। विहिप के केन्द्रीय मंत्री राजेन्द्र सिंह पंकज कहते है कि व्यक्तिगत जीवन या फिर समाज जीवन समय के साथ उतार-चढ़ाव तो आता ही है। पांच सौ साल से चल रहे संघर्ष में कई ऐसे मुकाम आए होंगे जब हर्ष और विषाद की स्थितियां बनी होगीं। उसी कड़ी में छह दिसम्बर भी एक बड़ी घटना थी। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक आपादाओं के निशान एक दिवस में नहीं खत्म होते बल्कि समय के साथ धीरे-धीरे मिटते है। इसी को जीवन कहा गया है। गिरते-उठते लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते ही रहना ही काम है। विहिप संरक्षक पुरुषोत्तम नारायण सिंह ने कहा कि जिनकी संकल्प शक्ति मजबूत और दृढ़ होती है, उन्हें लक्ष्य अवश्य मिलता है और जो कमजोर हुए वह लक्ष्य से भटक जाते हैं।
वह कहते हैं कि 1984 में विश्व हिन्दू परिषद ने कोई नया आंदोलन नहीं छेड़ा था बल्कि जिस मुद्दे पर समाज सदियों से आंदोलित था, उसी आंदोलन को सही दिशा दी और व्यवस्थित तरीके से जारी रखा। उन्होंने बताया कि संगठन ने तय किया था कि हम किसी से लड़ेंगे नहीं सिर्फ लक्ष्य पर डटे रहेंगे और समाज को भी डटे रहने के लिए प्रेरित करते रहेंगे। हमने यही किया और हमारे साथ पूरा समाज भी डट गया। उन्होंने कहा कि किसी व्यक्ति या एक संगठन से बढ़कर समाज की ताकत होती है। सामूहिक संकल्प के आगे सरकार क्या भगवान भी द्रवित हो जाते हैं। यही हुआ भी। हम सबके सौभाग्य की बात है कि राम मंदिर का निर्माण हमारे जीवनकाल में शुरू हो गया है।
जगदगुरु रामदिनेशाचार्य का कहना है कि युद्धभूमि में खड़े अर्जुन को भगवान श्रीकृष्ण ने जो उपदेश दिया था, वह यह कि सबकुछ पूर्व नियत है, तुम केवल निमित्त मात्र हो। ऐसे में तुम्हें अपने कर्तव्य पथ से च्युत नहीं होना चाहिए। जिन्हें मारने के लिए तुम्हारे हाथ कांप रहे है, वह पहले से मरे हुए है। उन्होंने कहा कि गीता का उपदेश महाभारत तक सीमित नहीं था। वह इस संसार पर भी लागू होता है। हम कर्म के अधिकारी फल तो ईश्वर के हाथ है। राम मंदिर का कार्य तो ईश्वरीय कार्य था, यहां भी वही हुआ जो परमात्मा की इच्छा थी।