महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में 15 साल पहले पड़ी थी प्राइवेट मार्केट और कलेक्शन सेंटर की नींव

केंद्र सरकार की तरफ से लाए गए कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन व सरलीकरण) कानून-2020 का आज भले ही कांग्रेस विरोध कर रही हो, लेकिन 15 साल पहले महाराष्ट्र में उसने ही प्राइवेट मार्केट और कलेक्शन सेंटर की नींव डाली थी। वर्ष 2005-06 में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख ने प्राइवेट मार्केट और कलेक्शन सेंटर की स्थापना के लिए डायरेक्ट मार्केटिंग लाइसेंस (डीएमएल) को हरी झंडी दी थी।

प्राइवेट मार्केट वास्तव में थोक मंडी हैं, जिनकी स्थापना निजी उद्यमियों ने की है। कलेक्शन सेंटर के संचालन में बिग बास्केट व रिलायंस फ्रेश जैसी बड़ी कंपनियों ने प्रवेश किया और खेत से ही किसानों के उत्पादों की खरीद की शुरुआत हुई। मंडियों से बाहर निजी कारोबारियों द्वारा किसानों के उत्पाद की खरीद की इस शुरुआत के 15 साल हो चुके हैं।

विपणन निदेशक देते हैं लाइसेंस : उद्यमियों को निजी बाजार की स्थापना के लिए राज्य सरकार के विपणन निदेशक लाइसेंस जारी करते हैं। शर्त यह है कि इस प्रकार के बाजार की स्थापना के लिए कम से कम पांच एकड़ जमीन होनी चाहिए। इसके अलावा उसमें नीलामी हॉल, शेड्स, प्रतीक्षालय तथा आवागमन के लिए सड़क की व्यवस्था भी अनिवार्य है। इस प्रकार के बाजार की स्थापना में करीब 4-5 करोड़ रुपये की लागत आती है।

18 बाजार, चार हजार करोड़ का कारोबार : महाराष्ट्र में अब तक 18 प्राइवेट मार्केट की स्थापना हो चुकी है। इनमें रूई, सोयाबीन व चना आदि की खरीदबिक्री होती है। कुछ प्राइवेट मार्केट में सभी प्रकार के अनाज के साथ-साथ अन्य कृषि उत्पादों की भी खरीद होती है, जबकि कुछ में फसल विशेष की खरीद की जाती है। वर्ष 2019-20 में इन 18 प्राइवेट मार्केट में 100.88 लाख क्विंटल अनाज की खरीद हुई, जबकि 4,357.88 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ। प्राइवेट बाजार की स्थापना के लिए लाइसेंस लेते समय पांच लाख रुपये की गारंटी ली जाती थी, लेकिन जब निजी कंपनियों ने इस तरफ कदम बढ़ा दिया तो इस नियम में काफी ढील दे दी गई।

एफपीसी को 1,100 लाइसेंस : विपणन निदेशक ने हाल के वर्षों में फार्मर प्रोड्यूसर्स कंपनीज (एफपीसी) को करीब 1,100 डीएमएल जारी किए हैं। इन्हें बड़े पैमाने पर छूट प्रदान की गई है, जिससे वे बड़े कॉरपोरेट घरानों को टक्कर दे सकें। हालांकि, किसानों के लिए डीएमएल धारक बेहतर विकल्प होते हैं, क्योंकि वे खेत से ही उत्पाद खरीद लेते हैं। किसानों को समय पर आमदनी हो जाती है, जिससे उन्हें परिवार की जरूरतों की पूर्ति व अगले फसल की तैयारी में मदद मिलती है।

प्राइवेट मार्केट का नियंत्रक कौन : विपणन निदेशक के माध्यम से महाराष्ट्र सरकार राज्य में कारोबार करने वाले वैकल्पिक बाजारों का नियंत्रण करती है। इन प्राइवेट मार्केट को हर साल लाइसेंस का नवीकरण कराना होता है। इनके खिलाफ अनियमितता की शिकायत मिलने पर विपणन निदेशक कार्रवाई कर सकते हैं। इनकी बैंक गारंटी भी जब्त की जा सकती है। डीएमएल धारक को 1.05 फीसद सेस का भुगतान उस कृषि बाजार उत्पाद समिति (एपीएमसी) को करना पड़ता है, जिसके क्षेत्र में वे कारोबार करते हैं। हालांकि, इस पर डीएमएल धारक आपत्ति जताते रहे हैं। उनका कहना है कि जब वे एपीएमसी से किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं लेते तो सेस का भुगतान क्यों करें।

किसानों को भी लाभ : केंद्र की तरफ से नया कानून पारित होने के बाद डीएमएल धारकों की तरफ से की जाने वाली आपत्ति खुद ही खत्म हो गई है। एफपीसी का कहना है कि सितंबर से अक्टूबर के बीच उन्होंने किसानों से तेल का कारोबार करने वाली कंपनियों के लिए करीब 2,600 टन सोयाबीन की खरीद की है, जिसकी कीमत 10 करोड़ रुपये से ज्यादा होती है। सेस के प्रावधान के रहते ऐसा संभवन नहीं था। इससे जहां कंपनियों को लाभ हुआ है वहीं किसानों को भी मुनाफा हुआ है।

एमएसपी का प्रावधान : महाराष्ट्र में प्राइवेट मार्केट भले ही किसानों से सीधी खरीद कर रहे हों, लेकिन सरकार की तरफ से घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे अनाज की खरीद करने की आजादी उन्हें नहीं है। अगर, ऐसा पाया गया तो उनका लाइसेंस भी रद हो सकता है। हालांकि, इसका प्रतिकूल प्रभाव भी पड़ता है। बाजार में जब अनाज की कीमत कम होती है तो कई डीएमएल धारक किसानों से खरीद बंद कर देते हैं, क्योंकि उन्हें एमएसपी पर भुगतान करना पड़ता है।

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