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नए कृषि कानून : मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आधिकारियों को दिए थे ये निर्देश

नए कृषि कानूनों के खिलाफ देश भर के किसान संगठनों ने मंगलवार को ‘भारत बंद’ का आह्वान कर रखा था, लेकिन उत्तर प्रदेश में भारत बंद पूरी तरह अपना असर नहीं दिखा सका. सूबे में ज्यादातर जगहों पर कुछ लोगों ने रोड जाम किए और ट्रेनें भी रोकी, लेकिन बाजार-दुकाने रोजाना की तरह खुली रहीं.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर प्रशासन ने ऐसी सख्ती बरती, जिससे न तो विपक्षी पार्टियों के नेताओं को घर से बाहर निकलने का मिला और न ही बड़ी तादाद में किसान सड़क पर उतर सके. ऐसे पांच प्रमुख कारण रहे, जिसके चलते यूपी में भारत बंद फीका रहा.

1.विपक्षी पार्टी के नेता नजरबंद
किसान संगठनों के भारत बंद का सूबे की सभी विपक्षी पार्टियों ने समर्थन किया था. इसके चलते योगी सरकार ने पहले से ही भारत बंद को लेकर कमर कस ली थी. प्रदेश के विपक्ष के बड़े से बड़े और छोटे से छोटे नेताओं को उनके घरों में पुलिस ने नजरबंद कर रखा था या फिर हिरासत में ले लिए गए. इसके चलते सपा, कांग्रेस, बसपा सहित तमाम विपक्षी पार्टियों के नेता और कार्यकर्ता सड़क पर उतर नहीं सके. भारत बंद सूबे में फीका रहने की यह एक बड़ी वजह बनी.

2. बाजार-दुकान बंद न कराई जाएं
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आधिकारियों को निर्देश दिया था कि पर्याप्त व्यवस्था करें कि आम लोगों को ‘भारत बंद’ के कारण कोई असुविधा न हो. पुलिस प्रशासन से यह भी सुनिश्चित करने के लिए कहा था कि भारत बंद के दौरान व्यापारियों को उनके प्रतिष्ठानों-दुकानों के शटर नीचे करने के लिए मजबूर न किया जाए.

ऐसे ही सभी दफ्तर और बाजार खुले रहने के निर्देश दिए गए थे. ऐसे में प्रशासन ने बाकायदा अनाउंस कर रखा था कि जो भी दुकानदार दुकान खोलना चाहता है, वह खोल सकता है और उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस प्रशासन की होगी. ऐसे में किसान संगठन ने बाजार और दुकाने बंद कराने के बजाय रोड जाम किए और ट्रेनें भी रोकी.

3. बड़े किसान नेता दिल्ली बॉर्डर पर
उत्तर प्रदेश के बड़े किसान नेताओं ने दिल्ली बॉर्डर पर आंदोलन की बागडोर संभाल रखी है, जिसके चलते प्रदेश और अपने इलाके की सड़कों पर नहीं उतर सके. किसान सियासत का सबसे ज्यादा पश्चिम यूपी में प्रभाव है. किसान यूनियन से जुड़े बड़े नेताओं के दिल्ली में रहने के चलते किसान को सड़क पर लेकर कोई उतर नहीं सका. इसके अलावा महेंद्र सिंह टिकैत के न होने के चलते अब राजनीतिक दलों की तरह किसान भी अलग अलग खांचे में बंट गए हैं, उनके पास प्रभावी नेतृत्व नहीं रह गया है. इसके चलते यूपी के किसान एकजुट नहीं रह गए हैं.

4. प्रशासन ने सख्त रुख अपनाया
दिल्ली की सीमा से लगे सभी जिलों में विशेष सतर्कता बरती जा रही है और अतिरिक्त बलों को वहां तैनात किया गया है. सरकार ने एडीजी और आईजी रैंक के सभी अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे अपने-अपने क्षेत्रों में गश्त सुनिश्चित करें और सीमा क्षेत्रों को जोड़ने वाले राजमार्गों पर भी निगरानी रखें.

साथ ही सरकार ने पुलिस अधिकारियों से किसानों के साथ किसी भी प्रकार के टकराव से बचने के लिए निर्देश दिया था और साथ ही सभी जिला पुलिस प्रमुखों को स्थानीय किसान संगठनों के साथ संवाद बनाए रखने के निर्देश दिए थे. किसान यूनियन से जुड़े बड़े नेता तो दिल्ली बॉर्डर पर थे तो मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ और सहारनपुर जैसे जिलों में छोटे नेताओं के साथ पुलिस पूरे दिन लगी रही. ऐसे में छिटपुट नेताओं ने अपने स्तर पर कहीं रोड जाम की तो कहीं किसान कम संख्या में मंडी में पहुंचे.

5. विपक्ष नहीं बना सका रणनीति
यूपी के सत्ताधारी दल ने जिस रणनीति के तहत भारत बंद को बेअसर करने की कोशिश की उसी तरह विपक्षी दलों की ओर से कोई रणनीति नहीं दिखी. किसानों के समर्थन में सपा प्रमुख अखिलेश यादव के एक दिन पहले उतरने पर केस दर्ज किए और उन्हें कन्नौज जाने की इजाजत नहीं दी.

इसके जरिए सरकार एक बड़ा संदेश देने में सफल रही थी. इसके चलते सपा विधान परिषद सदस्य राजपाल कश्यप, आनंद भदौरिया, सुनील साजन और आशु मलिक भारत बंद के समर्थन में सड़क पर उतरने के बजाय विधान भवन परिसर में स्थित चौधरी चरण सिंह की प्रतिमा के सामने बैठकर अपना विरोध दर्ज कराते रहे. वहीं, बसपा ने भारत बंद का समर्थन तो किया लेकिन उनका एक भी नेता सड़क पर नहीं दिखा और कांग्रेस के नेता नजरबंद रहे.

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