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सेंट्रल विस्टा मामला: सुप्रीम कोर्ट से प्रोजेक्ट को मिली मंजूरी

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सेंट्रल विस्टा क्षेत्र के पुनर्विकास के लिए केंद्र की योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया और सेंट्रल विस्‍टा प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी है।

सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि केंद्र द्वारा पावर का प्रयोग उचित है। मार्च स्टैंड की अधिसूचनाओं सहित मास्टर प्लान 2021 के भूमि उपयोग में बदलाव की पुष्टि की गई। इसके साथ ही पर्यावरण समिति की सिफारिशें उचित हैं।

केंद्र ने परियोजना का यह कहते हुए सख्ती से बचाव किया है कि इससे बहुत अधिक धनराशि बचती (1,000 करोड़ रुपये तक का वार्षिक किराया खर्च) है। इसके साथ ही लगभग 100 वर्षीय संसद भवन संकट के संकेत दे रहा था और कई सुरक्षा मुद्दों का सामना कर रहा था, जिसमें गंभीर आग का खतरा भी शामिल था। इसको देखते हुए एक आधुनिक इमारत के निर्माण की आवश्यकता थी।

दिसंबर में नए संसद भवन के शिलान्यास समारोह से कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस बात से नाराजगी जताई थी कि केंद्र सरकार सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत निर्माण कार्य कर रही है।

याचिकाओं के एक समूह की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट साइट पर कोई निर्माण या विध्वंस कार्य या पेड़ों की कटाई नहीं होगी। अदालत ने कहा कि इस तरह का निर्देश तब तक मान्य रहेगा जब तक कि वह दलीलों पर फैसला नहीं कर देता, जिसने सेंट्रल विस्टा परियोजना का विरोध किया है।

केंद्रीय विस्टा परियोजना पर विपक्ष ने उठाए थे सवाल

विपक्ष के नेताओं ने केंद्रीय विस्टा परियोजना के शिलान्यास समारोह को उस समय करना गलत बताया, जब देश के किसान केंद्र द्वारा पारित तीन कृषि कानूनों पर हफ्तों से विरोध कर रहे थे।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने महत्वाकांक्षी सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट पर सवाल उठाते हुए नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा सरकार की मेगा-शहरी विकास योजना को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि यह एक बड़ी राशि है, जबकि भारत वित्तीय संकट का सामना कर रहा है।

शिवसेना के संजय राउत ने केंद्रीय विस्टा परियोजना पर 1,000 करोड़ रुपये खर्च करने की आवश्यकता पर भी सवाल उठाया। उन्‍होंने कहा कि नरेंद्र मोदी सरकार को बहस और संसद सत्र आयोजित करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी।

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