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हिन्दू धर्म में सफला एकादशी का विशेष महत्व जाने शुभ मुहूर्त

हिन्दू धर्म में हर एकादशी का अपना विशेष महत्व होता है. जिनमें से एक सफला एकादशी भी है. सफला एकादशी इस साल यानी 2021 की पहली एकादशी है. पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को सफला एकादशी के नाम से जाना जाता है यह 9 जनवरी 2021 को पड़ेगी.

धार्मिक मान्यता के अनुसार, विधि विधान से सफला एकादशी का व्रत करने से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उसे सर्वत्र सभी कार्यो में सफलता मिलती है. किंतु इसकी संपूर्णता के लिए व्रत में रात्रि जागरण करना जरूरी होता है.

यही नहीं परिवार में किसी एक के भी एकादशी का व्रत करने से कई पीढ़ियों के सुमेरू सरीखे पाप भी नष्ट हो जाते हैं. इस प्रकार देखा जाये तो सफला एकादशी का व्रत दशमी तिथि से ही शुरू हो जाता है. इस लिए सफला एकादशी का व्रत करने वाले को दशमी तिथि की रात में एक ही बार भोजन करना चाहिए.

एकादशी तिथि प्रारम्भ – 08 जनवरी 2021 की रात 9 बजकर 40 मिनट पर
एकादशी तिथि समाप्त – 09 जनवरी 2021 की शाम 7 बजकर 17 मिनट पर

पद्म पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार, चम्पावती नगरी में महिष्मान राजा के पांच पुत्र थे. सबसे बड़ा पुत्र लुम्भक चरित्रहीन था. वह हमेशा देवताओं की निन्दा करना, मांस भक्षण करना

समेत अन्य पाप कर्मों में लिप्त रहता था उसके इस बुरे कर्मों के कारण राजा ने उसे राज्य से बाहर निकाल दिया. घर से बाहर जाने के बाद लुम्भक जंगल में रहने लगा.

पौष की कृष्ण पक्ष की दशमी की रात्रि में ठंड से वह सो न सका और सुबह होते-होते वह ठंड से प्राणहीन सा हो गया. दिन में जब धूप के बाद कुछ ठंड कम हुई तो उसे होश आई और वह जंगल में फल इकट्ठा करने लगा.

इसके बाद शाम में सूर्यास्त के बाद यह अपनी किस्मत को कोसते हुए उसने पीपल के पेड़ की जड़ में सभी फलों को रख दिया, और उसने कहा ‘इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु प्रसन्न हों.

इसके बाद एकादशी की पूरी रात भी अपने दुखों पर विचार करते हुए सो ना सका. इस तरह अनजाने में ही लुम्भक का एकादशी का व्रत पूरा होगया. इस व्रत के प्रभाव से वह अच्छे कर्मों की ओर प्रवृत हुआ.

उसके बाद उसके पिता ने अपना सारा राज्य लुम्भक देकर ताप करने चला गया. कुछ दिन के बाद लुम्भक को मनोज्ञ नामक पुत्र हुआ, जिसे बाद में राज्यसत्ता सौंप कर लुम्भक खुद विष्णु भजन में लग कर मोक्ष प्राप्त करने में सफल रहा.

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