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उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा निराला स्मृति समारोह का आयोजन

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा शनिवार 20 फरवरी, 2021 को निराला स्मृति समारोह का आयोजन यशपाल सभागार में किया गया।

डाॅ. सदानन्द प्रसाद गुप्त, मा. कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान की अध्यक्षता में आयोजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में डाॅ. सूर्यप्रसाद दीक्षित, वरिष्ठ साहित्यकार, लखनऊ तथा विशिष्ट अतिथि  के रूप में डाॅ0 आनन्द कुमार सिंह, भोपाल उपस्थित थे।

समारोह में वाणी वंदना की प्रस्तुति श्रीमती पूनम श्रीवास्तव द्वारा की गयी तथा इसी अवसर पर निराला जी के गीत क्रमशः ‘भारती जय विजय करे‘, ‘सुख का दिन डूब-डूब जाय‘ एवं ‘सखि वसंत आया‘ की संगीतमयी प्रस्तुति की गयी।

अभ्यागतों का स्वागत करते हुये श्रीकांत मिश्रा, निदेशक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने  कहा कि उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान साहित्यकारों की स्मृतियों को अक्षुण्य बनाने के लिए विभिन्न आयोजन समय-समय पर करता रहता है।

कोविड काल में हमने सुरक्षा की दृष्टि से आॅनलाइन कार्यक्रमों को प्राथमिकता दी। महामारी के बचाव एवं स्वयं को सुरक्षित रखने की प्राथमिकता को दृष्टिगत रखते हुए हमने हिन्दी संस्थान के स्थापना दिवस 30 दिसम्बर, 2020 को काव्य गोष्ठी का आयोजन किया, जो आप सबके सहयोग से सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।

उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा छायावाद के आधार स्तम्भ के रूप में प्रतिष्ठित सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की स्मृति में आयोजित इस सारस्वत समारोह के अध्यक्ष, डाॅ0 सदानन्द प्रसाद गुप्त माननीय कार्यकारी अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान, मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ0 सूर्य प्रसाद दीक्षित एवं हमारे अनुरोध पर भोपाल से पधारे विशिष्ट अतिथि श्री आनन्द कुमार सिंह के प्रति हम ह्दय से आभारी हैं।

विश्वास है कि निराला जी के बहुआयामी व्यक्तित्व एवं कृतित्व के अनेक पक्ष विद्वान वक्ताओं के विचारों से उद्घाटित होंगे।

निराला स्मृति समारोह के अवसर पर पधारे सभी साहित्यकारों, हिन्दी सेवियों, मीडिया कर्मियों का बहुत-बहुत स्वागत और अभिनन्दन करते हुए हम अत्यन्त हर्ष एवं गर्व का अनुभव कर रहें हैं।

विशिष्ट अतिथि के रूप में पधारे डाॅ0 आनन्द कुमार सिंह, भोपाल ने कहा-भारती और सरस्वती की परिकल्पना को वे प्रसाद जी से ग्रहण कर आगे तक ले जाते हैं। निराला की कविता भारती सरस्वती को एकरूपता प्रदान करने वाली कविता है। निराला जी की कविता में भरत की विशालता दिखायी देती है।

निराला जी ने तुलसीदास की कविता में भारतीय सांस्कृतिक इतिहास को अलग ढंग से देखने का प्रयास किया है। निराला अपने प्रतीकों के माध्यम से जाग्रति की बात करते हैं। निराला अपनी कविता में सारस्वत सभ्यता का चित्रण करते हैं। बसंत ऋतु निराला को इसलिए प्रिय है क्योंकि वह सरस्वती के प्राकट्य की ऋतु है।

मुख्य अतिथि के रूप में पधारे डाॅ. सूर्य प्रसाद दीक्षित ने निराला जी की 125वीं जयंती के अवसर पर उन्हें नमन करते हुये कहा- निराला गद्य को जीवन के संग्राम की भाषा कहा। निराला जीवन संग्राम से जुड़े लेखक हैं।

उनका साहित्य जगत प्रवेश गद्य के माध्यम से हुआ। 1918 में आयी महामारी का वर्णन निराला के उपन्यास ‘कुल्ली भाट‘ में मिलता है। अभिव्यक्ति की क्षमता को गद्य कहा जाता है। निराला ने साहित्य को तत्समय प्रचलित लगभग सभी विधाओं में लेखन किया। निराला के गद्य में जीवंतता है।

अध्यक्षीय उद्बोधन में डाॅ. सदानन्द प्रसाद गुप्त ने कहा-निराला को लेकर जो आख्यान सुनियोजित ढं़ग से गढ़ा गया उसे तोड़ने का काम किया गया। निराला का गद्य उनकी कविता की भाँति महत्वपूर्ण है। निराला और प्रसाद बीसवीं शताब्दी के दो बड़े कवि हैं जो विश्व साहित्य के बड़े कवियों से प्रतिस्पद्र्धा करते दिखायी देते हैं।

आचार्य शुक्ल ने निराला को बहुवस्तुनिष्ट कवि कहा। साथ ही निराला की कविता को संगीत व संगीत को कविता के निकट लाने वाला कवि कहा है। प्रखर आशावाद निराला की कविता का महत्वपूर्ण वैशिष्ट्य है।

निराला की कविताएँ अद्धैतवाद को कर्म वाद में बदलने के प्रतिफल स्वरूप लिखी गयी हैं। राष्ट्रीय चेतना का स्वर निराला की कविता में देखने को मिलता है। निराला के गद्य में व्यंग्य का चुटीलापन है।

वे व्यंग्य भी बड़ी सहजता से लिखते है। भाषा पर उनका दृष्टिकोण व्यापक है। निराला गहरी आस्तिकता के कवि हैं। ‘राम की शक्ति‘ उनकी महत्वपूर्ण रचना है।
समारोह का संचालन डाॅ. अमिता दुबे, सम्पादक, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने किया।

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