एनपीए के लिए अति आशावान बैंकर व धीमी विकास दर जिम्मेदार: रघुराम राजन
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने संसदीय समिति को बताया कि बैंकों के अति आशावान, सरकार की नीतिगत प्रक्रिया में सुस्ती और आर्थिक विकास की धीमी प्रक्रिया जैसे कारक डूबे हुए कर्ज (एनपीए) की राशि बढ़ाने में मुख्य रूप से जिम्मेदार रहे। आकलन समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी को सौंपे गए नोट में राजन ने कहा है कि यूपीए और एनडीए दोनों सरकारों में कई तरह की शासन संबंधी समस्याएं थीं। मसलन, कोयला खदानों का संदिग्ध आवंटन और जांच के डर से केंद्र सरकार की धीमी नीतिगत योजनाओं का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
उन्होंने कहा कि सरकार की नीतिगत योजनाएं आज की तारीख तक पर्याप्त रफ्तार से आगे नहीं बढ़ पाई हैं। इस वजह से समय के साथ परियोजनाओं की लागत और कर्ज की राशि भी बढ़ती गई। देश में बिजली की भारी किल्लत के बावजूद बिजली संयंत्र परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। एनपीए का बड़ा हिस्सा 2006 से 2008 के दौरान बढ़ा, जबकि उस समय आर्थिक विकास दर मजबूत स्थिति में थी। इससे पहले बिजली संयंत्रों जैसी पूर्ववर्ती अधोसंरचना परियोजनाएं समय पर और बजट के अंदर पूरी हो गई थीं।
उन्होंने कहा, यह ऐसा दौर था, जब बैंकों ने बड़ी गलतियां कीं। वे अतीत की विकास दर और भविष्य के परफॉर्मेंस को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते रहे। लिहाजा, इन परियोजनाओं में अधिक से अधिक निवेश करते रहे। कई बार तो बैंक अपनी तरफ से कोई आकलन किए बगैर सिर्फ प्रमोटरों के निवेश बैंक की रिपोर्ट के आधार पर ही कर्ज देने को मंजूरी देते रहे। उदाहरण पेश करते हुए उन्होंने कहा कि एक प्रमोटर ने मुझे बताया कि उस समय बैंक कैसे उसे मनचाही राशि भरते हुए चेक देने के लिए तैयार हो जाते थे।