भगवान गणेश की पूजा करने से होती है सभी मनोकामनाएं पूरी
हिंदू मान्यताओं के अनुसार कोई भी शुभ कार्य करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जानी जरूरी है. बुधवार को पूरे विधि विधान के साथ भगवान गणेश की पूजा की जाती है. भगवान गणेश भक्तों पर प्रसन्न होकर उनके दुखों को हरते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
भगवान गणेश खुद रिद्धि-सिद्धि के दाता और शुभ-लाभ के प्रदाता हैं. वह भक्तों की बाधा, सकंट, रोग-दोष और दरिद्रता को दूर करते हैं. शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश जी की विशेष पूजा का दिन बुधवार है.
कहा जाता है कि बुधवार को गणेश जी की पूजा और कुछ उपाय करने से समस्याएं दूर होती हैं. भगवान गणेश के अवतरण, उनकी लीलाओं और उनके मनोरम स्वरूपों का वर्णन पुराणों और शास्त्रों में प्राप्त होता है. कल्पभेद से उनके अनेक अवतार हुए हैं. आइए जानते हैं उनके पुराणों के अनुसार कैसी है गणपति बप्पा की जन्म की कहानी.
एक बार माता पार्वती ने अपने शरीर के उबटन से एक आकर्षक कृति बनाई, जिसका मुख हाथी के समान था. फिर उस आकृति को उन्होंने गंगा में डाल दिया. गंगाजी में पड़ते ही वह आकृति विशालकाय हो गई. पार्वती जी ने उसे पुत्र कहकर पुकारा. देव समुदाय ने उन्हें गांगेय कहकर सम्मान दिया और ब्रह्मा जी ने उन्हें गणों का आधिपत्य प्रदान करके गणेश नाम दिया.
एक बार देवताओं ने भगवान शिव की उपासना करके उनसे सुरद्रोही दानवों के दुष्टकर्म में विघ्न उपस्थित करने के लिए वर मांगा. आशुतोष शिव ने ‘तथास्तु’ कहकर देवताओं को संतुष्ट कर दिया और इस प्रकार भगवान गणेश का जन्म हुआ.
एक बार माता पार्वती ने विलक्षण पुत्र प्राप्ति हेतु बड़ा तप किया. जब यज्ञ पूरा हुआ तो श्री गणेश ब्राह्मण का रूप धारण कर उनके पास पहुंचे. अतिथि मानकर माता पार्वती ने उनका सत्कार किया.
श्री गणेश ने प्रसन्न होकर वर दिया कि माते, पुत्र के लिए जो तप आपने किया है उससे आपको विशिष्ट बुद्धि वाला पुत्र बिना गर्भ के ही प्राप्त होगा. वह गणनायक होगा, गुणों की खान होगा.
कहकर वे अंतर्ध्यान हो गए और पालने में बालक का स्वरूप धारण कर लिया. माता पार्वती की खुशी का ठिकाना न रहा. आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी. भव्य उत्सव मनाया जाने लगा.
चारों दिशाओं से देवी-देवता विलक्षण पार्वती नंदन को देखने पहुंचने लगे. शनिदेव भी पहुंचें लेकिन वे अपने दृष्टि अवगुण की वजह से बालक के सामने जाने से बचने लगे. माता पार्वती ने आग्रह किया कि क्या शनि देव को उनका उत्सव और पुत्र प्राप्ति अच्छी नहीं लगी.
संकोच के साथ शनि देव सुंदर बालक को देखने पहुंचे. लेकिन यह क्या, शनिदेव की नजर पड़ते ही बालक का सिर आकाश में उड़ गया. माता पार्वती विलाप करने लगीं. कैलाश में हाहाकार मच गया.
हर तरफ यही चर्चा होने लगी कि शनि ने पार्वती पुत्र का नाश किया है. तुरंत भगवान विष्णु ने गरूड़ देव को आदेश दिया कि जो भी पहला प्राणी नजर आए उसका सिर काटकर ले आओ.
उन्हें रास्ते में सबसे पहले हाथी मिला. गरूड़ देव हाथी का सिर लेकर आए. बालक के धड़ के ऊपर उसे रखा. भगवान शंकर ने उन पर प्राण मंत्र छिड़का. सभी देवताओं ने मिलकर उनका गणेश नामकरण किया और उन्हें प्रथम पुज्य होने का वरदान भी दिया. इस प्रकार श्री गणेश का जन्म हुआ.
भगवान शिव पंचतत्वों से बड़ी तल्लीनता से गणेश का निर्माण कर रहे थे. इस कारण गणेश अत्यंत रूपवान व विशिष्ट बन रहे थे. आकर्षण का केंद्र बन जाने के भय से सारे देवताओं में खलबली मच गई. इस भय को भांप शिवजी ने बालक गणेश का पेट बड़ा कर दिया और सिर को गज का रूप दे दिया.
देवी पार्वती ने अपने उबटन से एक पुतला बनाया और उसमें प्राण डाल दिए. उन्होंने इस प्राणी को द्वारपाल बना कर बैठा दिया और किसी को भी अंदर न आने देने का आदेश देते हुए स्नान करने चली गईं.
संयोग से इसी दौरान भगवान शिव वहां आए. उन्होंने अंदर जाना चाहा, लेकिन बालक गणेश ने उन्हें रोक दिया. नाराज शिवजी ने बालक गणेश को समझाया, लेकिन उन्होंने एक न सुनी. क्रोधित शिवजी ने त्रिशूल से गणेश का सिर काट दिया.
पार्वती को जब पता चला कि शिव ने गणेश का सिर काट दिया है, तो वे कुपित हुईं. पार्वती की नाराजगी दूर करने के लिए शिवजी ने गणेश के धड़ पर हाथी का मस्तक लगा कर उन्हें जीवनदान दे दिया. तभी से शिवजी ने उन्हें तमाम सामर्थ्य और शक्तियां प्रदान करते हुए प्रथम पूज्य और गणों का देव बनाया.