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आइये जानते है क्या है गुरु रविदास जयंती का पूरा इतिहास

देशभर में आज गुरु रविदास जी की जयंती मनाई जा रही है. संत रविदास ने अपनी कालजयी रचनाओं से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में अपनी अहम भूमिका निभाई.

संत रविदास सिर्फ कवि ही नहीं बल्कि समाज सुधारक, दार्शनिक, भविष्यद्रष्टा, जैसी अनेक विशेषताओं से विभूषित थे. उनके व्यक्तित्व को एक जाति विशेष तक सीमित नहीं किया जा सकता है.

कहा जाता है कि गुरु रविदास से प्रभावित होकर मीराबाई ने उन्हें अपना गुरु मान लिया था. राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिले में मीरा के मंदिर के आमने एक छोटी छतरी बनी है, जिसमें संत रविदास के पद चिन्ह दिखाई देते है.

संत रविदास जी की जयंती के अवसर पर उन्हें याद किया जाता है. साथ ही साथ उनके बारे में लोगों को बताया भी जाता है. आज भी करोड़ों लोग संत रविदास को अपना आदर्श मानकर उनकी पूजा करते हैं. इस अवसर पर जगह जगह सांस्कृतिक कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जाता है.

संत रविदास को जयदेव, नामदेव और गुरुनानक जैसे महान संतों की अविरल परंपरा की महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में जाना जाता है. वे अपनी भक्ति में भाव और सदाचार के महत्व पर जोर देते थे.

उन्होंने अपनी अनेक रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी लोकवाणी के अद्भुत प्रयोग से मानव धर्म और समाज पर अमिट प्रभाव पड़ा, जिसका असर आज भी देखने को मिलता है.

अपने सहज-सुलभ उदाहरणों वाले और साधारण भाषा में दिए जानें वाले प्रवचनों और प्रबोधनों के कारण संत रविदास भारतीय समाज में आदरणीय और पूजनीय हैं.

वे भारतीय वर्ण व्यवस्था को भी समाज और समय अनुरूप ढालने में सफल हो चले थे. उन्होंने अपना पूरा जीवन धर्म की राह पर चलकर जिया. साल 1584 को उन्होंने शरीर त्याग दिया.

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