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आइये जानते है कैसे होती है सिजोफ्रेनिया बीमारी और क्या है इसका इलाज

सिजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है. ये बीमारी ज्यादातर बचपन में या फिर किशोरावस्था में होती है. सिजोफ्रेनिया के मरीज को ज्यादातर भ्रम और डरावने साए दिखने की शिकायत होती है.

इस रोग में रोगी के विचार, इमोशन और व्यवहार में असामान्य बदलाव आ जाते हैं जिनके कारण वह कुछ समय लिए अपनी जिम्मेदारियों और अपनी देखभाल करने में असमर्थ हो जाता है. इसे मनोविदलता भी कहते हैं. पूरी दुनिया में 24 मई को वर्ल्ड सिजोफ्रेनिया डे मनाया जाता है.

इस दिन को मनाने का मकसद लोगों को इस बीमारी के बारे में जागरूक करना है. इस बार वर्ल्ड सिजोफ्रेनिया डे की थीम- बेहतर मानसिक स्वास्थ्य की खोज करना है. मायोक्लिनिक की खबर के अनुसार सिजोफ्रेनिया के मरीज को इस बीमारी से जूझने में कभी कभी जिंदगी भर भी संघर्ष करना पड़ सकता है.

सिजोफ्रेनिया को मानसिक रोगों में सबसे खतरनाक समस्या माना जाता है. पूरी दुनिया की करीब 1 फीसदी आबादी सिजोफ्रेनिया की शिकार है जबकि भारत में इस बीमारी के मरीजों की संख्या करीब 40 लाख के आसपास है.

सिजोफ्रेनिया का मरीज बहुत आसानी से जिंदगी से निराश हो सकता है और कई बार तो मरीज को आत्महत्या करने की भी प्रबल इच्छा होती है. यह बीमारी परिवार के करीबी सदस्यों में अनुवांशिक रूप से जा सकती है इसलिए मरीज के बच्चों या भाई-बहन में यह होने की संभावना अधिक होती है.

अत्यधिक तनाव, सामाजिक दबाव और परेशानियां भी बीमारी को बनाए रखने या ठीक न होने देने का कारण बन सकती हैं. मस्तिष्क में रासायनिक बदलाव या कभी-कभी मस्तिष्क की कोई चोट भी इस बीमारी की वजह बन सकती है. आइए जानते हैं इस बीमारी के बारे में सबकुछ.

-व्यक्ति अकेला रहने लगता है.

-वह अपनी जिम्मेदारियों तथा जरूरतों का ध्यान नहीं रख पाता.

-व्यक्ति अक्सर खुद में ही मुस्कुराता या बुदबुदाता दिखाई देता है.

-रोगी को विभिन्न प्रकार के अनुभव हो सकते हैं जैसे की कुछ ऐसी आवाजें सुनाई देना जो अन्य लोगों को न सुनाई दें. कुछ ऐसी वस्तुएं, लोग या आकृतियां दिखाई देना जो दूसरों को न दिखाई दें, या शरीर पर कुछ न होते हुए भी सरसराहट या दबाव महसूस होना.

-रोगी को ऐसा विश्वास होने लगता है कि लोग उसके बारे में बातें करते है, उसके खिलाफ हो गए हैं या उसके खिलाफ कोई षड्यंत्र रच रहे हैं.

-लोग उसे नुकसान पहुंचाना चाहते हैं या फिर उसका भगवान से कोई सम्बन्ध है.

-रोगी को लग सकता है कि कोई बाहरी ताकत उसके विचारों को नियंत्रित कर रही है या उसके विचार उसके अपने नहीं हैं.

-रोगी असामान्य रूप से अपने आप में हंसने, रोने या अप्रासंगिक बातें करने लगता है.

-सिजोफ्रेनिया का मरीज बहुत आसानी से जिंदगी से निराश हो सकता है और कई बार तो मरीज को आत्महत्या करने की भी प्रबल इच्छा होती है.

अगर आपके परिवार के किसी सदस्य को कभी भी सिजोफ्रेनिया की शिकायत नहीं रही है तो किसी सामान्य इंसान को ये बीमारी होने की संभावना 1 फीसदी से भी कम होती है. हालांकि अगर किसी के माता-पिता को ये बीमारी हो जाए तो संतान को सिजोफ्रेनिया होने का खतरा 10 फीसदी तक बढ़ जाता है.

डॉक्टरों के अनुसार दिमाग में एक न्यूरो ट्रांसमीटर पाया जाता है, जिसे डोपामाइन कहा जाता है. अगर डोपामाइन में असंतुलन आ जाए तो सिजोफ्रेनिया हो सकता है. अन्य न्यूरोट्रांसमीटर जैसे सेरोटोनिन को भी इसमें शामिल किया जा सकता है.

कई विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चे के जन्म से पहले अगर मां तनाव में रहे या फिर उसे कोई वायरल इंफेक्शन हुआ हो, तो बच्चे में सिजोफ्रेनिया होने के चांस बढ़ सकते हैं लेकिन इस बात पर विशेषज्ञों में मतभेद हैं और इस पर रिसर्च चल रही है.

कई बार तनाव भरे अनुभवों के कारण भी सिजोफ्रेनिया के लक्षण दिखाई दे सकते हैं. कई मामलों में सिजोफ्रेनिया के असली लक्षण दिखाई देने से पहले लोगों में बुरा व्यवहार करने, बेचैनी और ध्यान न केंद्रित कर पाने की समस्याएं होने लगती हैं. इसकी वजह से इंसान की जिंदगी में अन्य समस्याएं जैसे रिलेशनशिप प्रॉब्लम, तलाक और बेरोजगारी जैसी दिक्कतें हो सकती हैं.

कई बार नशीले पदार्थों का सेवन करने की वजह से भी इंसान को सिजोफ्रेनिया हो सकता है. इन ड्रग्स में मरिजुआना और एलएसडी का नशा करने वालों को सिजोफ्रेनिया होने का खतरा सबसे ज्यादा होता है.

इसके अलावा ऐसे लोग जो सिजोफ्रेनिया का इलाज करवा रहे हैं या फिर किसी अन्य मानसिक बीमारी से परेशान हैं, वह अगर गांजे का सेवन करते हैं तो सिजोफ्रेनिया की बीमारी उन्हें अपनी चपेट में ले सकती है.

इस दुनिया में कोई भी बीमारी लाइलाज नहीं है, जरूरत है तो सिर्फ मरीज की इच्छाशक्ति और सही इलाज की. सिजोफ्रेनिया की बीमारी का भी इलाज संभव है. मनोवैज्ञानिक इस बीमारी के इलाज के लिए काउंसलिंग, साइकोथेरेपी और थेरेपी सेशन की मदद लेते हैं. साइकोलॉजिकल काउंसलिंग से सिजोफ्रेनिया के लक्षणों को ठीक करने में काफी हद तक मदद मिलती है.

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