सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति-जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया
सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति-जनजाति को प्रमोशन में आरक्षण देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2006 के दिए अपने फैसले को ही बरकरार रखा है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस पर फिर से विचार करने की जरुरत नहीं है। साथ ही कोर्ट ने इस मामले को 7 जजों की संविधान पीठ के पास भेजने से भी इंकार कर दिया है। हालांकि कोर्ट ने एससी-एसटी वर्ग के पिछड़ेपन पर संख्यात्मक आंकड़े देने की बाध्यता को खत्म कर दिया है। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए आंकड़े जुटाने की जरूरत नहीं है और राज्य सरकारें चाहें तो पदोन्नति में आरक्षण लागू कर सकती हैं।प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस मांग पर सभी पक्षों की बहस सुनकर 30 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया थासुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का बीएसपी प्रमुख मायावती ने स्वागत किया है। मायावती ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला कुछ हद तक स्वागत योग्य है। उन्होंने कहा कि कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण पर रोक नहीं लगाई है और साफ कहा है कि केंद्र या राज्य सरकार इस पर फैसला लें। उन्होंने कहा कि बसपा की मांग है कि सरकार प्रमोशन में आरक्षण को तुरंत लागू करे।
आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने नागराज मामले के फैसले को कुछ बदलावों के साथ बरकरार रखा है। कोर्ट ने कहा कि इस पर फिर से विचार करना जरूरी नहीं और न ही आंकड़े जुटाने की जरूरत है। जबकि 2006 में नागराज मामले में कोर्ट ने शर्त लगाई थी कि प्रमोशन में आरक्षण से पहले यह देखना होगा कि अपर्याप्त प्रतिनिधित्व है या नहीं। इस फैसले पर पुनर्विचार के लिए दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की सविधान पीठ ने 30 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिस पर आज यानी बुधवार को निर्णय आया है।
आपको बता दें कि मायावती लगातार प्रमोशन में आरक्षण की मांग करती रही हैं। जबकि 2011 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने भी पदोन्नति में आरक्षण के उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले को रद्द कर दिया था। इसके बावजूद यूपी की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने दलित समुदाय को प्रमोशन में आरक्षण दिया था।