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जाने आज प्रदोष व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का बहुत अधिक महत्व होता है. प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा की जाती है. इस दिन भोलेनाथ के साथ साथ माता पार्वती की पूजा करने का भी विधान है. प्रदोष व्रत के दिन भोलेनाथ की पूजा करने से भक्तों हर मनोकामना पूरी होती है.

हर माह में दो बार प्रदोष व्रत पड़ता है. एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में. साल में कुल 24 प्रदोष व्रत पड़ते हैं. इस समय सावन का महीना चल रहा है और सावन मास भोलेनाथ का प्रिय महीना है.

ऐसे में सावन मास में पड़ने वाले प्रदोष व्रत का अधिक महत्व होता है. इस बार सावन माह का पहला प्रदोष व्रत आज है. आइए जानते हैं प्रदोष व्रत के शुभ मुहूर्त के बारे में और इस दिन कैसे करें भोलेनाथ की पूजा.

कृष्ण पक्ष में पड़ने वाला प्रदोष व्रत 5 अगस्त (गुरुवार) को है. इस प्रदोष व्रत को गुरु प्रदोष व्रत के नाम से भी जाना जाता है.

इस व्रत कथा के अनुसार एक बार इंद्र और वृत्तासुर की सेना में घनघोर युद्ध हुआ. देवताओं ने दैत्य-सेना को पराजित कर नष्ट-भ्रष्ट कर डाला. यह देख वृत्तासुर अत्यंत क्रोधित हो स्वयं युद्ध को उद्यत हुआ.

आसुरी माया से उसने विकराल रूप धारण कर लिया. सभी देवता भयभीत हो गुरुदेव बृहस्पति की शरण में पहुंचे. बृहस्पति महाराज बोले- पहले मैं तुम्हें वृत्तासुर का वास्तविक परिचय दे दूं.

वृत्तासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ है. उसने गंधमादन पर्वत पर घोर तपस्या कर शिवजी को प्रसन्न किया. पूर्व समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था. एक बार वह अपने विमान से कैलाश पर्वत चला गया.

वहां शिवजी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान देख वह उपहासपूर्वक बोला- हे प्रभो! मोह-माया में फंसे होने के कारण हम स्त्रियों के वशीभूत रहते हैं किंतु देवलोक में ऐसा दृष्टिगोचर नहीं हुआ कि स्त्री आलिंगनबद्ध हो सभा में बैठे.

चित्ररथ के यह वचन सुन सर्वव्यापी शिवशंकर हंसकर बोले- हे राजन! मेरा व्यावहारिक दृष्टिकोण पृथक है. मैंने मृत्युदाता-कालकूट महाविष का पान किया है, फिर भी तुम साधारणजन की भांति मेरा उपहास उड़ाते हो.

माता पार्वती क्रोधित हो चित्ररथ से संबोधित हुईं- अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्‍वर के साथ ही मेरा भी उपहास उड़ाया है अतएव मैं तुझे वह शिक्षा दूंगी कि फिर तू ऐसे संतों के उपहास का दुस्साहस नहीं करेगा.

अब तू दैत्य स्वरूप धारण कर विमान से नीचे गिर, मैं तुझे शाप देती हूं. जगदम्बा भवानी के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हुआ और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न हो वृत्तासुर बना.

गुरुदेव बृहस्पति आगे बोले- ‘वृत्तासुर बाल्यकाल से ही शिवभक्त रहा है. अतः हे इंद्र! तुम बृहस्पति प्रदोष व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो. देवराज ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया.

गुरु प्रदोष व्रत के प्रताप से इंद्र ने शीघ्र ही वृत्तासुर पर विजय प्राप्त कर ली और देवलोक में शांति छा गई. अत: प्रदोष व्रत हर शिव भक्त को अवश्य करना चाहिए.

जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव…॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव…॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव…॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव…॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव…॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव…॥

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥

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