राष्ट्रपति ने जनपद गोरखपुर में महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय का भूमि पूजन एवं शिलान्यास किया
भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविन्द जी ने आज जनपद गोरखपुर में विकास खण्ड भटहट के पिपरी गांव में महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय का भूमि पूजन एवं शिलान्यास किया। इस अवसर पर आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति जी ने कहा कि महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय के शिलान्यास कार्यक्रम के दौरान भगवान इंद्रदेव भी अपना आशीर्वाद देने के लिए हमारे बीच पधारे हैं। उन्होंने कहा कि शास्त्रों में मान्यता है कि शुभ कार्य संपन्न होने के दौरान यदि आकाश से पानी की बूंदे गिरने लगें, तो कहा जाता है कि कार्य शुभ से अत्युत्तम शुभम हो गया।
राष्ट्रपति जी ने योग के माध्यम से सामाजिक जागरण की अलख जगाने वाले गुरु गोरखनाथ के कथन का उल्लेख करते हुये कहा कि ’यद् सुखम् तद् स्वर्गम्, यद् दुःखम् तद् नरकम्’ अर्थात जो सुख है वही स्वर्ग है, और जो दुख है, वही नरक है। उन्होंने कहा कि वैदिक काल से ही आरोग्य होने पर विशेष बल दिया जाता है। वेद, पुराण, उपनिषद और प्राचीन ग्रंथों में भी आरोग्य की महत्ता के बारे में वर्णन है। उन्होंने कहा कि ‘शरीरमाद्यं खलुु धर्म साधनम्’ अर्थात शरीर ही समस्त कर्तव्यों को पूरा करने का प्रथम साधन है, इसलिए शरीर को स्वस्थ रखना बेहद आवश्यक है। शरीर निरोगी एवं स्वस्थ रहे, इसी उद्देश्य को सफल बनाने के लिए आयुष विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही है। राष्ट्रपति जी ने कहा कि शिलान्यास कार्य करते हुए बेहद प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि शरीर को स्वस्थ रखने के लिए भारत में अनेक प्रकार की चिकित्सा पद्धतियां प्रचलित रही हैं। भारत सरकार ने आयुर्वेद, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, सिद्ध और होम्योपैथी चिकित्सा पद्धतियों, जिन्हें सामूहिक रूप से ‘आयुष’ के नाम से जाना जाता है, के विकास के लिए निरंतर प्रयास किए हैं। इन चिकित्सा पद्धतियों की व्यवस्थित शिक्षा और अनुसंधान के लिए भारत सरकार ने, वर्ष 2014 में‘ आयुष’ मंत्रालय का गठन किया था। इसी प्रकार उत्तर प्रदेश सरकार ने भी वर्ष 2017 में आयुष विभाग की स्थापना की थी और अब, राष्ट्रीय स्तर की सुविधाओं से युक्त आयुष विश्वविद्यालय स्थापित किये जाने का सराहनीय निर्णय लिया है। मुझे विश्वास है कि इस विश्वविद्यालय से सम्बद्ध होकर प्रदेश के आयुष चिकित्सा संस्थान अपने-अपने क्षेत्र में बेहतर कार्य कर सकेंगे।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि मुझे बताया गया है कि पारम्परिक एवं प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों की विश्वसनीयता एवं स्वीकार्यता को अन्तर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप स्थापित किये जाने और जन-स्वास्थ्य में योग की उपयोगिता को देखते हुए, एक शोध संस्थान की स्थापना भी इस विश्वविद्यालय में की जाएगी। उन्होंने कहा कि भारत में प्राचीन काल से ही अनेक चिकित्सा पद्धतियां प्रचलित रही हैं। देश में सिद्ध चिकित्सा पद्धति का विकास नाथों एवं सिद्धों द्वारा किया गया। आज के समय में यह पद्धति, दक्षिण भारत में अधिक लोकप्रिय है। ऐसा विश्वास है कि खनिजों और धातुओं को औषधि के रूप में तैयार करके, आपातकालीन दवाइयों के रूप में इनके प्रयोग के प्रवर्तकों में बाबा गोरखनाथ प्रमुख रहे हैं। इसलिए, उत्तर प्रदेश में स्थापित किए जा रहे आयुष विश्वविद्यालय का नाम महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय रखा जाना सर्वथा उचित है।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि महायोगी गुरु गोरखनाथ जी का जीवन उदात्त था। उन्होंने सदाचरण, ईमानदारी, कथनी व करनी के मेल और बाह्य आडंबरों से मुक्ति की शिक्षा दी। योग को उन्होंने ‘दया दान का मूल’ कहा। उनके चरित्र, व्यक्तित्व एवं योग सिद्धि से सन्त कबीर इतने प्रभावित थे कि उन्होंने गुरु गोरखनाथ को ‘कलिकाल में अमर’ कहकर उनकी प्रशस्ति की। गोस्वामी तुलसीदास ने भी योग के क्षेत्र में गुरु गोरखनाथ की प्रतिष्ठा स्वीकार करते हुए कहा कि ‘गोरख जगायो जोग’ अर्थात् गुरु गोरखनाथ ने जन-साधारण में योग का अभूतपूर्व प्रसार किया।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि भारत में योग मार्ग उतना ही प्राचीन है, जितनी प्राचीन भारतीय संस्कृति है। योग को प्रतिष्ठित करने वाले गुरु गोरखनाथ निश्चय ही अत्यन्त महिमामय, अलौकिक प्रतिभा सम्पन्न, युगदृष्टा महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने समस्त भारतीय तत्व चिन्तन को आत्मसात करके साधना के एक अत्यन्त निर्मल मार्ग का प्रवर्तन किया। इसीलिए वे कहते थे ‘योगशास्त्रम् पठेत् नित्यं किम् अन्यैः शास्त्र-विस्तरैः’ अर्थात् नित्य प्रति योगशास्त्र का अध्ययन करना ही पर्याप्त है, अन्य शास्त्र पढ़ने की आवश्यकता ही क्या है। भारतवर्ष, विविधताओं में एकता का उत्तम उदाहरण है। जो कुछ भी लोकोपयोगी है, कल्याणकारी है, सहज उपलब्ध और सुगम है, उसे अपनाने में भारतवासी संकोच नहीं करते।
देश में विभिन्न प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों का प्रचलन भी हमारी इसी सोच का परिणाम है। योग, आयुर्वेद और सिद्ध चिकित्सा, विश्व को भारत की देन है। भगवान धन्वंतरि को जहां आयुर्वेद का जनक माना जाता है, वहीं ऋषि अगस्त्य को सिद्ध चिकित्सा के संस्थापक के रूप में जाना जाता है। भारत में यूनानी चिकित्सा पद्धति भी अनेक क्षेत्रों में खूब लोकप्रिय है। जिस तरह चरक और सुश्रुत को औषधि-शास्त्र एवं शल्य-चिकित्सा का प्रवर्तक माना जाता है, उसी तरह से यूनानी चिकित्सा पद्धति के प्रणेता हिप्पोक्रेटीस को पश्चिमी दुनिया में चिकित्सा शास्त्र का जनक कहा जाता है।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि ऋग्वेद के समय से योग का जुड़ाव भारत के जन-मानस के साथ रहा है। सिंधु घाटी सभ्यता में मिले पुरावशेषों से भी प्रमाणित हुआ है कि योग हमारी जीवन शैली का अंग रहा है। वर्तमान में, योग की लोकप्रियता एवं महत्ता सर्वविदित है। योग को जीवन में उतार लेने पर व्यक्ति, आरोग्य के साथ-साथ सकारात्मक ऊर्जा से भर उठता है और मानसिक, शारीरिक तथा भावनात्मक तौर पर मजबूत बनता है। तनाव और चिंता से भरे आधुनिक समय में मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य का मार्ग, योग से उपलब्ध होता है। महर्षि पतंजलि ने अपने महान ग्रंथ ‘योगशास्त्र’ की रचना करके समस्त मानवता को एक आदर्श जीवन पद्धति की अमूल्य शिक्षा दी है।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि एक अन्य आयुष चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद को, दुनिया की प्राचीनतम औषधीय चिकित्सा प्रणालियों में से एक माना जाता है। आयुर्वेदिक उपचार में मन, शरीर और आत्मा के बीच संतुलन बनाए रखते हुए समग्र स्वास्थ्य प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित किया जाता है। आज, इंटीग्रेटिव सिस्टम ऑफ मेडिसिन अर्थात् समेकित चिकित्सा पद्धति का विचार पूरी दुनिया में मान्य हो रहा है। अलग-अलग चिकित्सा पद्धतियां एक दूसरे की पूरक प्रणाली के रूप में लोगों को आरोग्य प्रदान करने में सहायक हो रही हैं। राष्ट्रपति भवन में, ऐलोपैथिक चिकित्सा क्लीनिक के साथ-साथ‘ आयुष आरोग्य केंद्र’ की सुविधा भी उपलब्ध है। हाल ही में, राष्ट्रपति भवन परिसर में एक ‘आरोग्य वन’ विकसित करने का काम शुरू किया गया है।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि भारतीय चिकित्सा पद्धति मंे विशेष तौर पर प्राकृतिक चिकित्सा की बात हो, तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का स्मरण स्वाभाविक है। वे प्राकृतिक चिकित्सा के प्रबल पक्षधर थे और कहा करते थे कि शारीरिक उपचार के साधन, हमारी प्रकृति में ही मौजूद हैं। वे इस बात से बहुत व्यथित रहते थे कि आधुनिक शिक्षा का संबंध हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन के साथ नहीं है। विद्यार्थियों को अपने गांव और खेतों के बारे में ज्ञान नहीं होता। गांधी जी कहा करते थे कि हम सब को अपने शरीर के, गांव के, अपने आस-पास के क्षेत्र के बारे में ज्ञान होना चाहिए। विद्यार्थियों को गांव के खेतों में पैदा होने वाली फसलों तथा वनस्पतियों के बारे में जानकारी होनी चाहिए। हमारे खेतों में, हमारी रसोई में और हमारे वन-क्षेत्र में औषधीय वनस्पतियों, स्वास्थ्य-रक्षक मसालों और जड़ी-बूटियों का खजाना मौजूद है। इनके बारे में जानकारी होने से सामान्य रोगों का उपचार कम खर्च में हो सकता है और जीवन सुगम हो सकता है।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि कोविड-19 के विरुद्ध लड़ाई में, विशेषकर महामारी के प्रकोप की दूसरी लहर में आयुष चिकित्सा पद्धतियों ने लोगों की इम्युनिटी बढ़ाने तथा उन्हें संक्रमण से मुक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, आदिवासी समाज में जड़ी-बूटियों और वन-औषधियों के ज्ञान की समृद्ध परंपरा रही है परन्तु पिछले दो दशकों में, पूरे देश में, आयुष चिकित्सा पद्धतियों की लोकप्रियता में बहुत बढ़ोत्तरी हुई है। औषधीय जड़ी-बूटियों एवं वनस्पतियों की मांग बढ़ी है। इससे हमारे किसानों और वनवासियों की आय में वृद्धि हो रही है और युवाओं को रोजगार भी मिल रहा है। मुझे विश्वास है कि गोरखपुर में महायोगी गुरु गोरखनाथ आयुष विश्वविद्यालय की स्थापना से ‘आयुष’ पद्धतियों की शिक्षा एवं लोकप्रियता को और बढ़ावा मिलेगा।
राष्ट्रपति जी ने कहा कि लोक-जीवन में एक कल्याणकारी कहावत प्रचलित है, ‘पहला सुख निरोगी काया’। गोस्वामी तुलसीदास ने भी कहा है कि ‘बड़े भाग मानुष तनु पावा, सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा’ अर्थात् बड़े भाग्य से ही हमें यह मानव शरीर प्राप्त होता है। यह शरीर देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, ऐसा सभी ग्रंथों में कहा गया है। उन्होंने कहा कि ऐसे दुर्लभ मानव शरीर और मन की रक्षा के लिए आयुष विश्वविद्यालय की स्थापना की दिशा में, प्रदेश की राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल और मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ द्वारा किए गए प्रयासों की मैं सराहना करता हूं।
इस अवसर पर महामहिम राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल जी ने कहा कि गोरखपुर अंचल एक विलक्षण अंचल है। उन्हांेने कहा कि गोरखपुर की धरती को भगवान बुद्ध, महायोगी गोरखनाथ, कबीर, गीता प्रेस के संस्थापक श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार एवं कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद के कर्म क्षेत्र होने का सौभाग्य प्राप्त है। उन्होंने कहा कि गोरखपुर विश्व को गणतन्त्र देने वाला अंचल भी है और चौरी चौरा तथा राम प्रसाद बिस्मिल जैसे स्वाधीनता के पुण्य प्रतीकों वाला अंचल भी हैै। उन्हांेने गोरखपुर अचंल की धरती को नमन करते हुये कहा कि भारत अपनी जिन विशिष्टताओं के कारण दुनिया में जाना जाता है, उनमंे से एक प्रमुख विशिष्टता यहां जन्मी एवं विकसित योग परम्परा है। महर्षि महायोगी गुरु गोरक्षनाथ योग एवं योग परम्परा के प्रवर्तक हैं। महायोगी गुरु गोरक्षनाथ द्वारा प्रवर्तित योग एवं योग परम्परा की प्रधान पीठ होने के कारण आज भी गोरखनाथ मंदिर योग का वाहक है।
राज्यपाल जी ने कहा कि गोरखपुर की पावन धरती पर प्रदेश का पहला आयुष विश्वविद्यालय प्रदेशवासियों के लिए गर्व की बात है। उन्हांेने कहा कि पूर्ण रूप से प्राकृतिक सिद्धांतों पर आधारित आयुर्वेद विश्व का प्राचीनतम चिकित्सा विज्ञान है। आयुर्वेद के प्राचीनतम गन्थों में चरक संहिता, सुश्रुत संहिता और अष्टाग हृदयम् प्रमुख हैं। विश्व में आयुष पद्धति की लोकप्रियता निरन्तर बढ़ रही है। विश्वविद्यालय की स्थापना से शोध को बढ़ावा मिलेगा, वहीं दूसरी ओर आयुर्वेद, योग, यूनानी, होम्योपैथी और प्राकृतिक चिकित्सा संस्थानों को एक ही छत के नीचे लाना संभव होगा।
इस अवसर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि हम सबका सौभाग्य है कि परम्परागत चिकित्सा पद्धति को वैश्विक मंच पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने नई पहचान दिलायी है और आज पूरी दुनिया उसका लोहा मानती है। 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में मनाया जाना उसका एक प्रमाण है। भारत सरकार द्वारा वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री जी के मार्गदर्शन व निर्देशन में आयुष मंत्रालय का अलग से गठन करते हुए भारत की परम्परागत चिकित्सा पद्धतियों को व्यावहारिक स्वरूप प्रदान करने और उसके माध्यम से प्रत्येक नागरिक के लिए आरोग्यता प्रदान करने का जो लक्ष्य निर्धारित किया, उसी का अनुसरण करते हुए उ0प्र0 सरकार ने भी अपनी परम्परागत चिकित्सा पद्धतियों, आयुर्वेद, योग, यूनानी, होम्योपैथिक आदि इन सभी चिकित्सा पद्धतियों को एक साथ जोड़ते हुए आयुष विभाग का गठन कर के इन्हें प्रोत्साहित करने का कार्य किया है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि डेढ़ वर्ष पूर्व पूरी दुनिया कोरोना महामारी से त्रस्त थी और उस दौरान दुनिया का कोई भी देश ऐसा नहीं होगा, जिसने इस महामारी से लड़ने के लिए अपनीे प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करने हेतु भारत की इन परम्परागत चिकित्सा पद्धतियों का अनुसरण न किया हो। उन्होंने कहा कि आज विदेशों में लोग हल्दी का पानी पीने के लिए लाइन में खड़े रहते हैं, लेकिन हमारे यहां हर भोजन में हल्दी का सेवन प्राचीनकाल से होता है। प्रधानमंत्री जी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री जी ने संयुक्त राष्ट्र संघ के मंच से परंपरागत विधा को वैश्विक मंच पर ले जाने का कार्य किया।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि उ0प्र0 के अन्दर इससे पहले राज्य में जितने मेडिकल कॉलेज थे, अलग-अलग विश्वविद्यालयों से जुड़े हुए थे। उनका सत्र नियमित नहीं था, उनके पाठ्यक्रम में अन्तर दिखाई देता था। लेकिन राज्य सरकार ने वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री जी के कर-कमलों द्वारा प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के नाम पर मेडिकल युनिवर्सिटी का शिलान्यास किया। जिसने प्रदेश के सभी मेडिकल कॉलेजों को इस युनिवर्सिटी से सम्बद्धता प्रदान करते हुए एकरूपता लाने का कार्य किया है।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि प्रदेश सरकार के पास टेक्निकल एजुकेशन से जुड़ा हुआ विश्वविद्यालय है, जो इंजीनियरिंग कॉलेजों को एक मंच, एक सूत्र के साथ जोड़ने के लिए डॉ0 ए0पी0जे0 अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय, उ0प्र0 के रूप में कार्य कर रहा है। लेकिन हमारी परम्परागत चिकित्सा पद्धति के लिए कोई एक ऐसा मंच नहीं दिख रहा था, इसलिए उ0प्र0 के अन्दर आयुष विश्वविद्यालय बनाने का निर्णय लिया गया है। उन्होंने कहा कि उ0प्र0 के अन्दर 94 आयुष महाविद्यालय हैं, जिसमें लगभग 67 आयुर्वेद के, 12 होम्योपैथी, 15 यूनानी चिकित्सा के महाविद्यालय हैं। जिसमें 7500 स्नातक स्तर पर और 525 सीटें अभी परास्नातक स्तर पर हैं। इन सबको सम्बद्ध करने के लिए आयुष विश्वविद्यालय यहां पर कार्य करना प्रारम्भ करेगा, जिससे हमें अपने शैक्षिक सत्र को उत्तर प्रदेश के अन्दर एक पाठ्यक्रम के साथ, एक साथ संचालित करने में सफलता प्राप्त होगी। उ0प्र0 के अन्दर आयुष के विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य होगा।
मुख्यमंत्री जी ने कहा कि महायोगी गुरु गोरखनाथ योग के व्यावहारिक स्वरूप एवं कई आसनों यथा गोरख आसन, मत्स्येंद्रासन तथा आयुर्वेद के रस शास्त्र के जनक हैं। उन्होंने कहा कि इस विश्वविद्यालय की स्थापना ग्रामीण क्षेत्र में की गई है, जो कि आजादी के बाद विकास से कोसों दूर थे। विश्वविद्यालय को गांव के द्वार तक पहुंचाने का मतलब है कि विकास लोगों तक पहुंच रहा है। उन्होंने कहा कि समयबद्ध ढंग से इस विश्वविद्यालय के निर्माण कार्य को पूरा किया जायेगा। विश्वविद्यालय वैश्विक मंच पर एक सम्मानजनक स्थान दिलाएगा।
इस अवसर पर आयुष मंत्री श्री धर्म सिंह सैनी ने कहा कि यह उनके लिए हर्ष और गौरव की बात है कि महामहिम राष्ट्रपति जी द्वारा इस विश्वविद्यालय का शिलान्यास हो रहा है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री जी की भी इस संदर्भ में विशेष रुचि रही है। उन्होंने बताया कि 70 एकड़ क्षेत्रफल मे बन रहे इस विश्वविद्यालय की लागत लगभग 300 करोड़ रुपए है एवं यह विश्वविद्यालय 03 वर्ष में बनकर तैयार हो जाएगा।
इस अवसर पर कृषि मंत्री श्री सूर्य प्रताप शाही, सांसद गोरखपुर श्री रवि किशन, जनप्रतिनिधिगण, अपर मुख्य सचिव आयुष श्री प्रशान्त त्रिवेदी सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारीगण उपस्थित थे।