ब्रेस्ट कैंसर दुनिया के लिए गंभीर समस्या नई रिसर्च में नई दवा से जगी उम्मीद की किरण
ब्रेस्ट कैंसर दुनिया के लिए गंभीर समस्या है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 2020 में 23 लाख महिलाओं ने ब्रेस्ट कैंसर का इलाज कराया जिसमें 6.85 लाख महिलाओं की मौत हो गई.
पीटीआई की ख़बर के मुताबिक अब एक नई रिसर्च में दावा किया गया है कि एक अणु से बनी दवा से ब्रेस्ट कैंसर का इलाज आसानी से किया जा सकेगा. इस रिसर्च से ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित लाखों महिलाओं में उम्मीद की किरण जगी है.
दरअसल, भारतीय-अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इस तरह के एक अणु की पहचान करने का दावा किया है. इस अणु से बनी दवा ब्रेस्ट कैंसर के इलाज में कारगर साबित हो सकती है.
नए अणु को ERX-11 कहा जाता है. यह एक पेप्टाइड या प्रोटीन बिल्डिंग ब्लॉक की नकल करता है. शोधकर्ताओं का दावा है कि यह अणु एस्ट्रोजन रिसेप्टर को बनने से रोकेगा. एस्ट्रोजन हार्मोन के साथ जब यह रिसेप्टर चिपकने लगता है, तो कैंसर कोशिकाओं शरीर में फैलने लगती है.
शोधकर्ताओं का दावा है कि इस अणु से पहली श्रेणी की दवा बनेगी. पहली श्रेणी की दवा विशेष तरह से काम करती है. यह दवा उस प्रोटीन को अपना निशाना बनाती है, जिसके कारण एस्ट्रोजन रिसेप्टर बनता है.
यह दवा ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित उन लोगों के लिए आशा की किरण है जिनका शरीर ब्रेस्ट कैंसर की पारंपरिक दवा का प्रतिरोध करने लगता है. यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास के प्रोफेसर गणेश राज ने बताया कि यह मौलिक रूप से बेहद अनोखा है, जो एस्ट्रोजन रिसेप्टर पर लगाम लगाता है.
उन्होंने कहा कि वर्तमान में जितने भी इलाज चल रहे हैं, उनमें यह सबसे कारगर साबित होगा. शोधकर्ताओं ने कहा कि ब्रेस्ट कैंसर में आमतौर पर इस बात का पता लगाने के लिए जांच की जाती है कि कैंसर के फैलने में एस्ट्रोजन रिसेप्टर का बढ़ना जरूरी है. 80 प्रतिशत मामले में एस्ट्रोजन को संवेदनशील पाया गया.
इस तरह के कैंसर के इलाज के लिए टैमोक्सिफेन हार्मोन थेरेपी का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन एक तिहाई मरीजों पर टेमोक्सिफेन काम नहीं करता. प्रोफेसर गणेश राज कहते हैं कि नया कंपाउंड बेहद कारगर है.
इससे मरीजों में अगली श्रेणी का इलाज किया जाएगा. टैमोक्सीफेन जैसी परंपरागत हॉर्मोनल दवाएं कैंसर सेल्स में एस्ट्रोजन को रिसेप्टर के साथ चिपकने से रोकती हैं. हालांकि, एस्ट्रोजन रिसेप्टर समय के साथ अपना रूप बदल लेता जिससे, यह दवा बेअसर होने लगती है.
इसके बाद कैंसर सेल्स फिर से बंटने लग जाते हैं. यानी ट्यूमर बढ़ने लगता है. नई दवा में ऐसी क्षमता है कि यह एस्ट्रोजन रिसेप्टर को बनने ही नहीं देती. एस्ट्रोजन रिसेप्टर के कारण ही ज्यादातर ब्रेस्ट कैंसर कोशिकाएं फैलने लगती हैं.