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अगर आपको भी है स्लिप डिस्‍क तो इस दर्द से ऐसे पाए राहत

आमतौर पर ये माना जाता है कि किसी ऐक्सिडेंट या भारी चीज को उठाने की वजह से स्लिप डिस्‍क की समस्‍या होती है लेकिन बता दें कि आजकल ये समस्‍या युवाओं में काफी तेजी से बढ़ने लगी है.

इसके बढ़ते मामलों की वजह है बढ़ती असक्रियता और घंटों खराब पोश्चर के साथ लैपटॉप या कंप्यूटर पर काम करना. विशेषज्ञ बताते हैं कि पिछले कुछ सालों में 40 वर्ष से कम उम्र के युवाओं में ये समस्‍या काफी तेजी से बढ़ी है और वे इससे निजात पाने के लिए डॉक्‍टरों और क्‍लीनिक के चक्‍कर लगा रहे हैं.

कानपुर के स्पाइन सर्जन डॉ अंकुर गुप्ता ने इस तकलीफ के इलाज में कारगर एक तकनीक के बारे में बताया है. इसका नाम है माइक्रो डिस्केक्टॉमी माइक्रो डिस्केक्टॉमी में ऑपरेशन के जरिए दबी हुई नस को खोला जाता है, जिससे स्लिप डिस्क के दर्द से राहत मिल सकती है.

रिपोर्ट में डॉ गुप्ता ने एक केस का जिक्र करते हुए बताया कि 35 साल के अनिल कुमार एक निजी कंपनी में काम करते हैं. कोरोना काल में उन्हें घर पर ही रहकर काम करना पड़ा. घर पर रहने के कारण काम करते वक्त उनके बैठने का तरीका ठीक नहीं रहा.

इस कारण उनकी कमर में दर्द रहने लगा. धीरे-धीरे तकलीफ इतनी बढ़ गई कि उनके लिए चलना तो दूर, खड़े रहना भी मुश्किल हो गया था. हालत ये हो गई कि कमर दर्द के साथ उनके दोनों पैरों में सुन्नपन, झनझनाहट, जलन, खिंचाव और भारीपन महसूस होने लगा. डॉ गुप्ता के अनुसार ये लक्षण स्लिप डिस्क की वजह से सायटिका के होते हैं. .

अनिल कुमार के केस में डॉक्टर से एडवाइज लेने पर जांच में पता चला कि उनकी कमर में नस दबी हुई है. डॉक्टर ने उन्हें एक नई तकनीक माइक्रो डिस्केक्टॉमी से ऑपरेशन कराने के लिए कहा ताकि दबी हुई नस को ठीक किया जा सके.

जिससे उनकी तकलीफ हमेशा के लिए दूर हो सके. ऑपरेशन का नाम सुनते ही अनिल घबरा गए. उनके मन में पारंपरिक सर्जरी वाली तकलीफ भरी बातें चलने लगीं.

डॉक्टर ने उनके मन से भय निकालने के लिए कुछ ऐसे लोगों से मिलवाया जिन्होंने इस नई तकनीक से ऑपरेशन करवाया और अब वे ठीक हो चुके हैं. आपको बता दें कि अब अनिल भी ऑपरेशन कराकर हेल्दी हैं.

– माइक्रो डिस्केक्टॉमी तकनीक में एक इंच चीरे के द्वारा विशेष उपकरणों के जरिए स्पाइन की हड्डी में दबी हुई नस को खोल दिया जाता है.
– इस ऑपरेशन को अंजाम देने में लगभग एक घंटे का समय लगता है.
– ऑपरेशन के बाद दबी नस के खुल जाने पर दर्द और पैरों की तकलीफ दूर हो जाती है.
– रोगी को एक दिन बाद चलने की अनुमति मिल जाती है.
– डॉक्टर का कहना है कि ये सर्जरी पूरी तरह सुरक्षित और कारगर है.
– ऑपरेशन के डेढ़ से 2 सप्ताह बाद मरीज अपने सभी काम आसानी से करने लगता है.

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