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आइये जाने महात्मा गांधी से जुड़े इन किस्सों को

नील की खेती के खिलाफ शुरू हुआ चम्पारण सत्याग्रह भारतीय स्वंतत्रता संघर्ष के लिए मील का पत्थर साबित हुआ. कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में चम्पारण के किसानों के दर्द को सुनने के बाद महात्मा गांधी 11 अप्रैल 1917 को मोतिहारी पहुंचे थे.

गुजरात के काठियावाड़ से मोतिहारी स्टेशन पर पहुंचे मोहन दास के साथ डॉ.राजेन्द्र प्रसाद भी थे. चम्पारण के गांवों में पहुंचने पर किसानों की पीडा के साथ-साथ गरीबी को उन्होंने नजदीक से देखा.

साथ ही अशिक्षा के कारण हो रही परेशानियों को भी देखा. महात्मा गांधी ने सामाजिक आन्दोलन और फिर जन-जन के आन्दोलन की शुरुआत करने के पहले अपने पारम्परिक पहनावे को बदल दिया. अब उन्होंने खाली बदन पर सिर्फ धोती पहन कर रहने का प्रण किया.

चम्पारण के किसानों के दर्द देख मोहन दास ने संघर्ष करना शुरू किया और किसानों को एकजुट किया. किसानों के बीच रहनुमा बने मोहन दास ने लोगों के मन में बड़ा स्थान बना लिया.

चम्पारणवासियों ने इसके बाद से ही उन्हें बापू कहना शुरू कर दिया. नील के खेती से परेशान किसानों की समस्या को लेकर उन्होंने अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ आवाज बुलन्द की. समस्या के निदान के किसानों को एकजुट करने के कारण अंग्रेजी सत्ता घबरा गयी

और उन्हें चम्पारण छोडने का फरमान जारी किया. एसडीओ कोर्ट में हाजिरी लगाने के दौरान महात्मा गांधी के हजारों समर्थक न्यायालय परिसर में महात्मा गांधी के जयकारे लगाने लगे. जिस कारण कोर्ट को विवश होकर महात्मा गांधी को रिहा करना पड़ा था.

रिहाई के बाद वे सामाजिक परिवर्तन के बिना आन्दोलन को जीत पाने में अपने को असमर्थ महसूस करने लगे और सबसे पहले लोगों को शिक्षित करने के लिए एक के बाद एक 11 स्कूलों की स्थापना की.

साथ ही गन्दगी से गांव को निजात दिलाने के लिए सफाई के महत्व को लोगों को समझाते महात्मा गांधी ने सफाई अभियान चलाया. नील की खेती के खिलाफ किसानों को एकजुट करने से अंग्रेजी सत्ता ने तीनकठिया प्रथा को समाप्त कर दिया और किसानों के जमीन को वापस लौटाया.

चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी समारोह के अध्यक्ष प्रो. चन्द्रभूषण पाण्डेय बताते हैं कि नील की खेती से जमीन की उर्वरा शक्ति खत्म होती जाती थी, जिससे किसान नील की खेती नहीं करना चाहते थे.

खेती नहीं करने पर अंग्रेस उन्हें तरह-तरह की यातनाएं देते. यातना से परेशान किसान एकजुट हुए और महात्मा गांधी का नेतृत्व मिलते ही आन्दोलन को शुरू किया था.

कहा जाता है कि गांधी जी को बापू नाम बिहार के चम्पारण जिले के रहने वाले गुमनाम किसान से मिला था. दरअसल राजकुमार शुक्ला ने गांधी जी को एक चिट्ठी लिखी थी. इस चिट्ठी ने ही उन्हें को चम्पारण आने पर विवश कर दिया था.

उस गुमनाम किसान को आज दुनिया राजकुमार शुक्ल के नाम से जानती है. बता दें कि बिहार के चंपारण जिले में गांधी जी ने निलहा अंग्रेजों द्वारा भारतीय किसानों पर किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाई थी.

जानकारों के अनुसार सही मायनों में अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ बापू के आंदोलन की शुरुआत चम्पारण से ही हुई थी. गांधी जी जब चम्पारण पहुंचे तो यहां एक कमरे वाले रेलवे स्टेशन पर अपना कदम रखा उस वक्त किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी कि इस धरती से मिलने वाला प्यार उन्हे देशभर में बापू के नाम से मशहूर बना देगा.

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