एकादशी व्रत को विशेष महत्व आज भगवान विष्णु की विधिवत पूजा-अर्चना करने से भक्तों की होगी मनोकामनाएं पूरी
हिंदू धर्म में एकादशी व्रत को विशेष महत्व दिया जाता है. आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पापांकुशा एकादशी के नाम से जाना जाता है. ऐसे में आज पापांकुशा एकादशी है.
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पापरुपी हाथी को व्रत के पुण्यरुपी अंकुश से भेदने के कारण इस तिथि का नाम पापांकुशा एकादशी पड़ा. इस दिन मौन रहकर भगवान विष्णु की अराधना करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है.
मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा-अर्चना करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस व्रत से एक दिन पहले दशमी के दिन गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर का सेवन नहीं करना चाहिए. इस व्रत के प्रभाव से व्रती बैकुंठ धाम प्राप्त करता है.
एकादशी तिथि 15 अक्टूबर को शाम 06 बजकर 05 मिनट से प्रारंभ हो चुकी है, जो कि 16 अक्टूबर (शनिवार) शाम 05 बजकर 37 मिनट तक रहेगी. व्रत का पारण 17 अक्टूबर (रविवार) को किया जाएगा. व्रत पारण का मुहूर्त 17 अक्टूबर को सुबह 06 बजकर 28 मिनट से सुबह 08 बजकर 45 मिनट तक रहेगा.
पापांकुशा एकादशी व्रत को बेहद खास माना जाता है. मान्यता है कि इस पुण्य व्रत का पालन करने से यमलोक में यातनाएं नहीं सहनी पड़ती हैं. इस व्रत को करने से मनुष्य अपने जीवन में किए गए समस्त पापों से एक बार में ही मुक्ति पा सकता है.
-सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं.
-घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें.
-भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें.
-भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी अर्पित करें.
-अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें.
-भगवान की आरती करें.
-भगवान को भोग लगाएं.
-इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का ही भोग लगाएं.
-भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें. ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं.
-इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें.
-इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें.
एक समय विंध्य पर्वत पर क्रोधन नामक बहेलिया रहता था जो कि बहुत ही क्रूर और कपटी था. उसके अंत समय में यमराज के दूतों ने जब उस दुष्ट बहेलिया को कल उसके जीवन के अंतिम दिन होने की बात बताई.
तो वह घबरा गया और अपने प्राण को बचाने के लिए महर्षि अंगिरा के पास मदद के लिए गया. तब महर्षि ने उसे पापों से मुक्ति दिलाने वाले पापांकुशा एकादशी का व्रत करने को कहा. बहेलिया ने वैसा ही किया. इससे उसके सारे पाप नष्ट हो गए और भगवान विष्णु की कृपा से उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई.