नशा और प्रदूषण ने युवाओं के फेफड़ों की क्षमता घटा दी है। पैदल चलने में ही सांसें फूलने लगती हैं। ऐसे में सेना भर्ती का ख्वाब कैसे पूरा हो सकता है। कानपुर में कैंट के कैविलरी ग्राउंड पर 15 दिन तक चली सेना भर्ती में करीब 92 फीसदी युवा फिजिकल फिटनेस टेस्ट में ही फेल हो गए। सेना भर्ती में करीब 55 हजार अभ्यर्थी शामिल हुए थे। इसमें करीब 4487 अभ्यर्थियों को ही सफलता मिली, जिन्हें आगे की परीक्षा में शामिल होने का मौका मिलेगा।
जनरल ड्यूटी (जीडी), क्लर्क, स्टोर कीपर टेक्निकल (एसकेटी), टेक्निकल, नर्सिंग असिसटेंट (एनए), टेक्निकल ट्रेड मैन (टीडीएन) पदों के लिए हुई भर्ती में साढ़े 17 साल से लेकर 23 साल तक के युवाओं को बुलाया गया था। भर्ती 26 सितंबर से 9 अक्तूबर तक चली थी। इसमें बाराबंकी, छिबरामऊ, कन्नौज, तिर्वा, बीघापुर, उन्नाव और खागा, फतेहपुर, गोंडा, डेरापुर, रसूलाबाद, सिकंदरा, अकबरपुर, भोगनीपुर, कानपुर नगर, औरैया, बिधुना, महोबा, बांदा, हमीरपुर, चित्रकूट और लखनऊ के 85 हजार अभ्यर्थियों ने आनलाइन आवेदन किया था।
करीब 55 हजार अभ्यर्थी फिजिकल फिटनेस टेस्ट में आए थे। सैन्य सूत्रों के मुताबिक करीब 8.2 फीसदी अभ्यर्थी टेस्ट पास कर पाए। 26 नवंबर से अलग-अलग ग्रुप की लिखित परीक्षा में सफल अभ्यर्थियों को बैठने का मौके मिलेगा। 27 जनवरी को नर्सिंग असिस्टेंट के लिए परीक्षा कराई जाएगी।
गोंडा अव्वल, कानपुर नगर चौथे नंबर पर
टेस्ट में गोंडा अव्वल रहा। 4487 में गोंडा के 470 अभ्यर्थियों को सफलता मिली। छिबरामऊ के 374, कानपुर देहात के 340, कानपुर नगर के 320, बाराबंकी के 223 अभ्यर्थी सफल रहे हैं।
ये थीं चुनौतियां
फिजिकल फिटनेस टेस्ट में 400 मीटर की चार राउंड दौड़ कराई गई थी। इस लक्ष्य को पांच से छह मिनट में पूरा करना था। इसके अलावा बीम, (जिसमें 10 अप डाउन कराया गया), 9 फीट लंबा गड्ढा फांदने का टास्क दिया गया था। इन अभ्यर्थियों का बैलेंस भी जांचा गया था।
सेना भर्ती के लिए आए जवानों का दौड़ में थकना स्टेमिना घटने का एक साक्ष्य है। प्रदूषण से फेफड़ों की क्षमता घट रही है। साथ ही सिगरेट, बीड़ी पीने की लत फेफड़ों की कार्यक्षमता को और नुकसान पहुंचा रही है। पान-गुटखा खाने से निकोटीन का बुरा असर फेफड़ों के अलावा शरीर के दूसरे अंगों को भी प्रभावित करता है। नेशनल कॉलेज आफ चेस्ट फिजिशियन के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. एसके कटियार ने बताया कि ताजा शोधों से यह प्रमाणित है कि बढ़ता प्रदूषण फेफड़ों की कार्यक्षमता घटा रहा है।
प्रदूषण से लोगों के फेफड़ों में हवा जाने के रास्ते सिकुड़ जाते हैं। फेफड़ों में हवा का प्रवेश जल्दी नहीं हो पाता। इससे व्यक्ति के मेहनत करने पर शरीर में बढ़ने वाली आक्सीजन की जरूरत पूरी नहीं हो पाती और अंग थकने लगते हैं। उन्होंने बताया कि सिगरेट, बीड़ी का धुआं फेफड़ों के चैंबर को नुकसान पहुंचाता है। पान और गुटखा की निकोटीन फेफड़ों और शरीर के दूसरे अंगों की रक्तवाहिनियों में सिकुड़न पैदा कर देती है।