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भगवान गणेश की इस विधि से पूजा करने पर भक्तों पर जल्दी होते है प्रसन्न

सनातन धर्म में कई सारे देवी देवता हैं. जिनको सप्ताह के सातों दिन के हिसाब से पूजा जाता है. किसी भगवान का रोद्र रूप है तो कोई अत्यंत सौम्य रूप में दर्शन देते हैं. सबकी पूजा विधि अलग है.

कुछ भगवान अपने भक्तों पर जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं, तो वहीं कुछ अपने भक्त की कड़ी परीक्षा लेते हैं. हिंदू देवी देवताओं से जुड़े प्रसंग काफी रोचक हैं. आपने गौर किया होगा कि हर देवी देवता की अपनी एक सवारी होती है.

जो एक से बढ़कर एक है. वहीं शुभ कार्य में प्रथम पूजनीय गणेश भगवान की सवारी एक छोटा सा चूहा है. गणेश जी को बुद्धी के देवता भी कहा जाता है. वाद विवाद और तर्क वितर्क में गणेश जी

का मुकाबला कोई नहीं कर सकता है. गणेश जी की काया भारी भरकम है उसके हिसाब से मूषक अत्यंत छोटा है. आइए जानते हैं कि आखिर मूषक कौन हैं और कैसे भगवान गणेश की सवारी बनें.

एक राक्षस था जिसका नाम गजमुखासुर था. वो बहुत बलवान था उसके बल के कारण सभी देवी देवता काफी परेशान थे. एक बार सभी देवी देवता गणेश जी की शरण में जाते हैं और गणेश जी से प्रार्थना करते हैं.

तभी भगवान गणेश उन्हें आश्वासन देते हैं कि वो देवताओं की रक्षा के लिए उस राक्षस से युद्ध करेंगे. गणेश जी और गजमुखासुर के बीज युद्ध होता है. जिसमें गणेश जी का एक दांत टूट जाता है.

गणेश जी वही टूटा हुआ दांत लेकर और अत्यंत क्रोधिक होकर गजमुखासुर पर भयानक से भयानक प्रहार करते हैं. जिससे डर कर गजमुखासुर चूहे की तरह वहां से भाग जाता है. इस कथा में यह निस्कर्ष निकलता है कि यही गजमुखासुर भगवान गणेश की सवारी बनेगा.

देवराज इंद्र के दरबार में एक गंधर्व था जिसका नाम क्रोच था. उसका स्वभाव बड़ा ही चंचल था. एक बार इंद्र के दरबार में किसी गंभीर विषय पर सभा चल रही थी. उस सभा में उस गंधर्व का मन नहीं लग रहा था. वो बार बार अप्सराओं के साथ हंसी मजाक करने में लगा था.

यह सब देख देवराज इंद्र क्रोधित हो उठे और उस गंधर्व को श्राप दे दिया कि तुम्हारी हरकतें चूहे जैसी है तुम चूहा बन जाओगे. गंधर्व तुरंत ही एक बड़ा सा चूहा बन गया. वो चूहा सीधे जाकर ऋषि पराशर के आश्रम में गिरा. जहां पर उसने बहुत उत्पात मचाया और बहुत तोड़ फोड़ किया.

ग्रंथ वेदों को काट दिया, खाने का सामान भी खराब कर दिया. यह सब देख ऋषि पराशर दुखी हुए, और सोचने लगे कि ऐसा क्यों हुआ कि मेरे आश्रम की शांति एक बड़े चूहे ने नष्ट कर दी. महर्षि पराशर ने यह सारी घटना भगवान गणेश को बताई. यह सब सुन भगवान गणेश उस चूहे को पकड़ने के लिए पाताल लोक तक अपना पाश लेकर गए.

वहां जाकर उन्होंने उस चूहे के गले में अपना पाश डाला और उस चूहे को खींच कर बाहर ले आए. पाश के कारण चूहा बेहोश हो गया. जब वो होश में आया तो उसने देखा कि भगवान गणेश उसके समक्ष खड़े हैं.

वो उनसे माफी मांगने लगा. फिर गणेश जी ने उससे कहा तुम कोई वरदान मांग लो मुझसे, तो उस मूषक को थोड़ा अहंकार आ गया उसने कहा कि ऐसा नहीं है कि आप ही मुझे वरदान दे सकते हैं, वरदान तो मैं भी आपको दे सकता हूं.

गणेश जी थोड़ा सा मुस्कुराए और बोले तुम मुझे वरदान देना चाहते हो तो तुम मेरी सवारी बन जाओ. और गणेश जी उसके ऊपर चढ़ गए. भगवान गणेश का भारी शरीर होने के कारण मूषक से चलते नहीं बन रहा था.

उसने भगवान से प्रार्थना करी कि आप अपना वजन थोड़ा कम कर लीजिए. तब भगवान गणेश ने ऐसा ही किया. तभी से वो मूषक भगवान गणेश की सवारी बन गया.

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