सुप्रीम कोर्ट का एससी/एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने के लिए मानदंड तय करने से इनकार
नईदिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) को पदोन्नति में आरक्षण देने के मुद्दे पर अहम फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने एससी/एसटी के लिए आरक्षण की शर्तों को कम करने से इनकार कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बिना आंकड़े के नौकरियों में प्रमोशन में रिजर्वेशन नहीं दिया जा सकता है। प्रमोशन में रिजर्वेशन देने से पहले राज्य सरकारों को आंकड़ों के जरिए ये साबित करना होगा कि एससी/एसटी का प्रतिनिधित्व कम है। समीक्षा अवधि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित की जानी चाहिए। इससे पहले, शीर्ष अदालत ने कहा था कि वह एससी और एसटी को पदोन्नति में आरक्षण देने के अपने फैसले को फिर से नहीं खोलेगा क्योंकि यह राज्यों को तय करना है कि वे इसे कैसे लागू करते हैं।
जस्टिस एल. नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने विषय में अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल, अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल बलबीर सिंह और विभिन्न राज्यों की ओर से पेश हुए अन्य वरिष्ठ वकीलों सहित सभी पक्षों को सुना है। पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति बी आर गवई भी शामिल हैं। पीठ ने 26 अक्टूबर 2021 को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
फैसला सुरक्षित रखते हुए कोर्ट ने कहा था कि अदालत सिर्फ इस मुद्दे पर फैसला करेगा कि आरक्षण अनुपात पर्याप्त प्रतिनिधित्व के आधार पर होना चाहिए या नहीं। केंद्र ने पीठ को बताया था कि यह सत्य है कि देश की आजादी के 75 साल बाद भी एससी/एसटी समुदाय के लोगों को अगड़े वर्गों के समान मेधा के स्तर पर नहीं लाया गया है। वेणुगोपाल ने दलील देते हुए कहा था कि एससी और एसटी समुदाय के लोगों के लिए ग्रुप ‘ए’ श्रेणी की नौकरियों में उच्चतर पद हासिल करना कहीं अधिक मुश्किल है और वक्त आ गया है कि रिक्तियों को भरने के लिए शीर्ष न्यायालय को एससी, एसटी तथा ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) के वास्ते कुछ ठोस आधार देना चाहिए।
अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि एससी/एसटी को अछूत माना जाता था और वे बाकी आबादी के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते थे. इसलिए आरक्षण होना चाहिए। वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में नौ राज्यों के आंकड़ों का हवाला दिया था और उन्होंने बताया था कि उन सभी ने बराबरी करने के लिए एक सिद्धांत का पालन किया है ताकि योग्यता का अभाव उन्हें मुख्यधारा में आने से वंचित न करे। देश में पिछड़े वर्गों का कुल प्रतिशत 52 प्रतिशत है। यदि आप अनुपात लेते हैं, तो 74.5 प्रतिशत आरक्षण देना होगा, लेकिन हमने कट ऑफ 50 प्रतिशत निर्धारित किया है। यदि शीर्ष अदालत आरक्षण पर फैसला मात्रात्मक आंकड़े और प्रतिनिधित्व की पर्याप्तता के आधार पर राज्यों पर छोड़ देगी तो हमनें चीजें जहां से शुरू की थी वहीं पहुंच जाएंगे।